न्याय

नेहा दीक्षित: “क्राइम सीन की जांच कर, अलग-अलग कड़ियों को जोड़ना खोजी पत्रकारिता है.”

F-रेटेड इंटरव्यूह के चौथे एपिसोड में हमारे साथ हैं नेहा दीक्षित, जो एक स्वतंत्र पत्रकार हैं और दिल्ली में रहती हैं. उन्होंने कई विभिन्न माध्यमों में चर्चित एवं प्रसिद्ध संस्थानों के साथ काम किया है. इसमें प्रमुख हैं: कारवां, आउटलुक, द वायर, न्यूज़मिनिट, अल जज़ीरा टीवी, और वॉशिंगटन पोस्ट.

निधि सुरेश: ब्रेकिंग न्यूज़ के दौर में निःशब्द और मौन सवालों का क्या मतलब है?

F – रेटेड इंटरव्यूह के तीसरे एपिसोड में मिलते हैं निधि सुरेश से जो हमें लखीमपुर और हाथरस ले जाती हैं और घटनास्थल पर अपराध के बाद होने वाली हिंसा को अपनी पत्रकारिता के ज़रिए दिखाती हैं. वह स्थानीय पत्रकारों के साथ काम करने के लिए रणनीतियां आज़माती हैं और धीमे और शांत प्रश्नों के महत्त्व पर प्रकाश डालती हैं, तब भी (और विशेष रूप से) जब पत्रकारों की भीड़ एक कहानी को कवर कर रही हो.

नीतू सिंह: एक मुकम्मल कहानी के पीछे क्या-क्या होता है?

F रेटेड इंटरव्यूह के दूसरे एपिसोड में मिलिए नीतू सिंह से जो एक स्वतंत्र पत्रकार, मीडिया प्रशिक्षक और शेड्स ऑफ रूलर इंडिया यू-ट्यूब चैनल की संस्थापक हैं. पत्रकारिता के अपने करियर की शुरुआत ग्रामीण मीडिया संस्थान ‘गांव कनेक्शन’ से करने वाली नीतू अपने काम के ज़रिए इस सोच को चुनौती देती हैं कि एक रिपोर्टर का काम सिर्फ़ घटना के बारे में जानकारी देना भर है.

कहते हैं कानून के हाथ बहुत लंबे होते हैं, पर क्या होगा जब कानून का दिल भी बहुत बड़ा हो?

पुनर्स्थापनात्मक न्याय/ रिस्टोरेटिव जस्टिस के दूसरे हिस्से में पढ़िए ज़मीनी स्तर पर यह कैसे काम करता है और जेल में बंद महिला कैदियों के जीवन में इसकी क्या भूमिका है.

प्रियंका दूबे: एक क्राइम रिपोर्टर की दुनिया

F – रेटेड इंटरव्यू के पहले एपिसोड में मिलिए द्विभाषी लेखक एवं पत्रकार प्रियंका दूबे से. इस एपिसोड में प्रियंका, 14 साल के अपने खोजी रिपोर्टिंग करियर के दौरान हिंसा, सामाजिक न्याय और मानवधिकारों से जुड़े मामलों पर व्यापक स्तर पर लिखने, खुद की तैयारी, जीवन पर उसके प्रभाव और कविताओं के साथ, पर विस्तार से बातचीत कर रही हैं.

“हिंसा की तलाश थी और प्यार मिल गया.”

महिला कैदियों की ज़िंदगी के बारे में हम बहुत कम जानते हैं. लोक कल्पनाओं और कहानियों में या तो वे सिरे से गायब होती हैं या सामाजिक नियमों का उल्लंघन करने वाली, असाधारण, बिगड़ी हुई महिला के रूप में उनका चित्रण किया जाता है. पर, एक आम महिला कैदी का जीवन कैसा है? उसकी आपराधिकता क्या है? इसके जड़ में क्या छिपा होता है? उस महिला कैदी के डर, सपने और चाहतें क्या हैं? उसके लिए जेल के बाद की दुनिया कैसी होती है?

क्या किसी अपराधी द्वारा माफी मांग लेना, उसे जेल भेजकर सज़ा दिलाने से ज़्यादा न्यायपूर्ण है?

दो भागों में प्रकाशित यह लेख पुनर्स्थापनात्मक न्याय / रिस्टोरेटिव जस्टिस से हम क्या समझते हैं, इसकी संभावनाओं और प्रक्रियाओं के बारे में विस्तार से बात करता है, खासकर भारत के संदर्भ में. लेख का पहला भाग पुनर्स्थापनात्मक न्याय के दुनिया में उभार पाने, भारत में किशोर न्याय कानून के साथ समानता, यौन अपराधों में भूमिका एवं मध्यस्तता से बिलकुल अलग होने के बारे में है.

अपराध को देखने का नारीवादी नज़रिया क्या है?

प्रोजेक्ट 39 ए, भारतीय संविधान के अनुच्छेद 39-ए से प्रेरित है. अनुभवजन्य शोध की पद्धतियों का उपयोग कर आपराधिक न्याय प्रणाली में प्रथाओं और नीतियों की पुन: पड़ताल के साथ-साथ प्रोजेक्ट 39 ए का उद्देश्य कानूनी सहायता, यातना, फोरेंसिक, जेलों में मानसिक स्वास्थ्य और मृत्युदंड पर नई बातचीत शुरू करना है.

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