शराफत भाई की ज़िंदगी बदलने वाली है. पहली पत्नी के इंतकाल के बाद उन्होंने दूसरी शादी कर ली. एक तरफ उनकी बढ़ती उम्र और दूसरी तरफ उनकी बेगम रूखसाना पर जवानी अपने लाव-लश्कर लेकर बढ़ती ही जाती है. इसके बीच जो घटता है वो समाज की क्रूर सच्चाई को भी सामने लाता है.
अमरबेल, एक परजीवी बेल, जिस पेड़ पर चढ़ती है उसे चूसना शुरू करती है और धीरे धीरे उसे सुखाती जाती है. पर पेड़ों को सुखाने के दौरान आहार के अभाव में वो खुद भी सुखती जाती है. इस कहानी में कौन किसे सुखा रहा है और अमरबेल होकर भी क्यों रुखसाना बेगम की किस्मत पीलेपन से भरी रहती है? जानने के लिए सुनिए, कहानी अमरबेल, रिज़वाना फातिमा की आवाज़ में.
इस्मत चुगताई की यह कहानी वाणी प्रकाशन से छपी ‘चिड़ी की दुक्की’ किताब में प्रकाशित है. पॉडकास्ट को तैयार करने के लिए हम इस कहानी को संपादित करके आपको सुना रहे हैं.
ये कहानी हमारे संस्करण ‘मज़ा और खतरा’ का हिस्सा है. इस संस्करण के अंतर्गत आने वाली बोलती कहानियां की शृंखला की अन्य कहानियों के लिए हमारे साथ बने रहें.
‘बोलती कहानियां’ में हर बार हम लेकर आते हैं जेंडर, यौनिकता, सत्ता, जाति, जेंडर आधारित हिंसा जैसे विषयों पर एक नई रोचक कहानी. निरंतर ट्रस्ट के पिटारे के साथ-साथ हिंदी साहित्य के विशाल भंडारे से चुनकर निकाली गई इन कहानियों के कई उपयोग हो सकते हैं. इन्हें जेंडर कार्यशालाओं में सुनाया जा सकता है, जहां गंभीर एवं जटिल विषयों पर बातचीत के लिए ये कहानियां सहायक का काम करती हैं. इन कहानियों को स्कूली विद्यार्थियों, कम्यूनिटी लाइब्रेरी, यूथ ग्रुप्स, प्रौढ़ शिक्षा केंद्र, पुरूषों के चर्चा समूहों में भी संबंधित विषयों पर बातचीत के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है, जो आमतौर पर उनके विमर्श के केंद्र से बाहर ही रहते हैं. निरंतर ट्रस्ट ने खुद इन कहानियों का इस्तेमाल फील्ड वर्कशॉप्स में किया है और इनसे वहां कभी गहरी, कभी रोचक और कभी चौका देने वाली चर्चाएं निकलकर सामने आई हैं.
प्रोडक्शन द्वारा सादिया सईद
प्रस्तुति द्वारा रिज़वाना फातिमा
आवरण चित्र: समीक्षा खेरदे
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