केसवर्कर डायरी | एपिसोड 3: संडे का दिन

पिछले एक साल में द थर्ड आई टीम ने उत्तर-प्रदेश के बांदा, ललितपुर और लखनऊ से जुड़ी 12 केसवर्करों के साथ मिलकर लेखन, थियेटर एवं कला आधारित शिक्षाशास्त्र (पेडागॉजी) पर काम किया. इस गहन प्रक्रिया से कुछ शब्द निकले और उनपर चर्चा करते-करते हिंसा की शब्दावली ने जन्म लिया. यह शब्दावली केसवर्करों द्वारा तैयार की गई है और यह उनके काम, अनुभव और ज़िंदगी के प्रति उनकी समझ और ज्ञान को समेटे हुए है.

लड़कियां या औरतें समझौता करना कहां से सीखती हैं? कैसे वे मायके और ससुराल में सभी को खुश रखने के लिए अपनी खुद की ज़िंदगी को होम करने के लिए तैयार हो जाती हैं? सच यह है कि पैदा होने से लेकर बड़े होने तक अपने आसपास मां, बहन, दादी, चाची, नानी,,, इन सभी को वे समझौता करते ही देखती हैं. और इस तरह घर-परिवार की खुशी के लिए अपने आप ही वे समझौता करने लगती हैं. क्या होता है जब कोई औरत इस चक्र को तोड़कर खुद के लिए खड़ी होती है? उस समय कौन उसका साथ देता है?

केसवर्कर्स डायरी के तीसरे एपिसोड में एक केसवर्कर हमें अपने संडे के दिन के बारे में बताती है, सप्ताह का वह दिन जब अपने बेटे के साथ वह अपने पति के गांव जाती है जहां गांव के लोगों के तीखे सवालों के साथ-साथ उसकी सबसे प्यारी सहेली— एक महुआ का पेड़— उसका इंतज़ार कर रहा है.

केसवर्कर्स डायरी, एक ऑडियो शृंखला है जो जेंडर आधारित हिंसा से जुड़े मामलों पर काम करने वाली 12 केसवर्करों के अनुभवों से निकलकर आई है. उत्तर-प्रदेश के ललितपुर, बांदा और लखनऊ ज़िले में काम करने वाली ये सभी केसवर्कर हत्या, बलात्कार, अपहरण, बच्चों के यौन शोषण, दहेज हत्या और घरेलू हिंसा जैसे मुद्दों पर काम करती हैं.

यह ऑडियो शृंखला ‘केसवर्कर्स द्वारा हिंसा की शब्दावली’ का एक हिस्सा है जिसमें जेंडर आधारित हिंसा से जुड़े उन महत्त्वपूर्ण शब्दों को शामिल किया गया है, जिनकी मदद से ज्ञान और समझ का निर्माण होता है.

इस पॉडकास्ट को हुमा ने आवाज़ दी है.

प्रोजेक्ट निर्माता – दिप्ता भोग और आस्था बाम्बा

प्रोजेक्ट फेसिलिटेटर – अपेक्षा वोहरा

पॉडकास्ट निर्माता – जूही जोतवानी

स्क्रिप्ट सहायक – आस्था बाम्बा, दिप्ता भोग, माधुरी आडवाणी, सुमन परमार और अपेक्षा वोहरा

आवरण चित्र – शिवम रस्तोगी

द थर्ड आई की पाठ्य सामग्री तैयार करने वाले लोगों के समूह में शिक्षाविद, डॉक्यूमेंटरी फ़िल्मकार, कहानीकार जैसे पेशेवर लोग हैं. इन्हें कहानियां लिखने, मौखिक इतिहास जमा करने और ग्रामीण तथा कमज़ोर तबक़ों के लिए संदर्भगत सीखने−सिखाने के तरीकों को विकसित करने का व्यापक अनुभव है.

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