जिसमें हम भारत के अलग-अलग राज्यों के शिक्षकों से मिलेंगे और जानेंगे कि कैसे वे इस ‘नए सामान्य’ के अनुरूप अपने आप को और अपने पढ़ने-पढ़ाने के तरीके को ढाल रहे हैं. सबसे पहले हम बात कर रहे हैं पुणे में रहने वाली भाव्या से. जिन्हें यह अहसास हुआ कि उनके विद्यार्थियों का डाटा पैक न होने से कहीं ज़्यादा बड़ी चिंता यह है, कि वे अपने गांव वापस नहीं जाना चाहते. ये प्रवासियों की कहानी का दूसरा पहलू है.
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