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एपिसोड 3

एकल इन द सिटी Ep 3: अकेले और चलना चाहिए

अकेले और चलना चाहिए
एकल इन द सिटी के इस तीसरे एपिसोड में मिलिए अनु से जो छत पर बने अपने कमरे से हमारा परिचय करवाती हैं. आज से करीब 76 साल पहले वर्जिनिया वुल्फ ने अपने लेख ‘अ रूम ऑफ़ वन्स ओन’ में लिखा था कि रचनात्मक रचने के लिए लड़कियों और महिलाओं के पास अपना एक कमरा होना चाहिए. किसे पता था कि अजमेर जिले के केकड़ी गांव में 31 साल की अनु उस ‘अपना एक कमरा’ को इतने सम्मान के साथ चरितार्थ कर रही होगी.

इस एपिसोड में अनु, अपने कमरे को एक दोस्त, परिवार के एक सदस्य की तरह देखती हैं. “मैं सुबह 5.30 बजे उठ जाती हूं. मुझे सुबह कटोरी में चाय पीना बहुत अच्छा लगता है. ये मोमेंट मेरी रोज़मर्रा की ज़िन्दगी में सबसे अहम है.”

क्या आपने कभी सोचा है कि एकल लड़की के लिए चाभी का गुच्छा उसके अस्त्र-शस्त्र हो सकते हैं? कैसा होता है एकल होना? पडोसियों और दूसरे लोगों की नज़र में एकल लड़की या महिला जहां सवालों की लड़ी होती हैं, वहीं खुद के लिए उनके कई सवाल सुलझते जाते हैं. कैसे? आइए इस पॉडकास्ट के ज़रिए अनु के साथ उसकी भावनगरी में घूमते हुए इस गुत्थी के धागे साथ मिलकर खोलते हैं.

आवरण : नंदिनी मोइत्रा

संगीत: भावनगरी, गायन: अनाहिता

माधुरी को कहानियां सुनाने में मज़ा आता है और वे अपने इस हुनर का इस्तेमाल महिलाओं के विभिन्न समुदायों और पीढ़ियों के बीच संवाद स्थापित करने के माध्यम के रूप में करती हैं. जब वे रिकार्डिंग या साक्षात्कार नहीं कर रही होतीं तब माधुरी को यू ट्यूब चैनल पर अपने कहानियों का अड्डा पर समाज में चल रही बगावत की घटनाओं को ढूंढते और उनका दस्तावेज़ीकरण करते पाया जा सकता है. समाज शास्त्र की छात्रा होने के नाते, वे हमेशा अपने चारों ओर गढ़े गए सामाजिक ढांचों को आलोचनात्मक नज़र से तब तक परखती रहती हैं, जब तक कॉफ़ी पर चर्चा के लिए कोई नहीं टकरा जाता. माधुरी द थर्ड आई में पॉडकास्ट प्रोड्यूसर हैं.
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