“आप तो एक महिला ज़ोमैटोकर्मी की तलाश में थीं न, और मैं वह नहीं हूं, तो क्या मैं अभी भी आपकी कहानी का हिस्सा हूं?” कुछ ही मिनट पहले ट्रांसमैन की अपनी असल पहचान को मेरे सामने ज़ाहिर करने के बाद बनी ने मुझसे ये सवाल पूछा.
मैंने इस लेख के लिए बनी (बदला हुआ नाम) से सम्पर्क किया था. मैं कुछ गिग वर्कर्स से बात कर जानना चाहती हूं कि कैसे महिला गिग वर्कर्स अपने घर और आसपास की जगहों पर अपने काम के ज़रिए शहर को आकार दे रही हैं. उसने मुझसे उन समस्याओं पर बात की जिनका सामना ज़ोमैटो डिलीवरी पार्टनर के रूप में काम करने वाली महिलाओं को करना पड़ता है. बनी ने बताया कि एप्प पर दर्ज उनके नामों की परवाह किए बिना ग्राहक कैसे तय मानसिकता से ग्रसित होकर सभी डिलीवरी कर्मियों के लिए पुरुषवाचक सर्वनाम का उपयोग करते हैं और यह भी बताया कि मॉल के सर्विस यार्ड में, जहां ज़ोमैटो और स्विगी टी-शर्ट में पुरुषों की भीड़ होती है, प्रवेश करते समय उन्हें कितना अटपटा महसूस होता है.
अगले दिन, मैं बनी के पीछे बजाज विक्रांत पर बैठी थी. जनवरी का महीना था और मुम्बई की हवा में भी थोड़ी-थोड़ी ठंडक मौजूद थी. पर, हम थाणेवालों को दोपहर के वक़्त जिस पसीने की आदत है, उसने हमारी शर्ट पर अभी दाग़ नहीं छोड़े थे. हमने सबसे पहले मनपाड़ा में नेचुरल्स से दो मैंगो आइसक्रीम का ऑर्डर लिया और हाइड पार्क के पास ग्राहक को डिलिवर किया. मोटरबाइक का उपयोग करने के बावजूद बनी के पास ज़ोमैटो की साइकिल आईडी थी (यह अलग बात है कि बनी 8वीं क्लास से ही मोटरबाइक चला रहा है). मैं भरसक कोशिश कर रही थी कि मेरी उपस्थिति को कोई नोटिस न करे. मैं सवाल पूछने और चुप रहने के बीच संतुलन बनाने की भी पूरी कोशिश कर रही थी. जल्दी ही, मुझे एहसास हुआ कि ऑर्डर की डिलीवरी के दौरान मुझे बाइक के साथ बाहर अकेले इंतज़ार में खड़े रहना पड़ेगा क्योंकि सोसाइटी के सुरक्षा गार्ड डिलीवरी कर्मचारी के अलावा शायद ही किसी और को अंदर जाने देते हैं. वैसे अच्छा ही था क्योंकि वो मेरे नोट्स लेने का समय होगा, मैंने ख़ुद से कहा.
मैंने मान लिया था कि ग्राहकों के लोकेशन्स तो बहरहाल मेरे लिए नए होंगे लेकिन रेस्तरां के मामले में शायद ऐसा नहीं होगा. थाणे में जन्मी और पली-बढ़ी होने के कारण, मुझे लगता था कि मैं अपने इलाके के खाने-पीने वाली जगहों को अच्छी तरह जानती हूं—वसंत विहार सर्कल, हीरानंदानी मीडोज़ प्लाज़ा, आम्रपाली आर्केड, थाणे के अभिजात वर्ग का गौरव- विवियाना मॉल, और उसी मार्ग पर अवस्थित पुराने और सीधे-सादे कोरम मॉल से परिचित हूं. लेकिन तीसरे ही ऑर्डर के दौरान, मैं ग़लत साबित हो गई, क्योंकि हमें वसंत विहार सर्कल के पास एक अपरिचित संकरी गली में जाना पड़ा जहां मेक्सिबे – बरिटोस एंड मोर नाम का एक छोटा लेकिन भरोसेमंद रेस्तरां था (अभी तक यह गूगल मैप पर अपनी जगह नहीं बना पाया है).
मुझे लगता है कि उन्होंने बनी को एक क़ीमती झोला दिया था क्योंकि उसे मैक्सिकन प्लेस के अलावा एक रेस्तरां से 16 बर्गर लेने थे. आने वाले लोगों के लिए गेट पर रखे रजिस्टर, सुरक्षा गार्डों और प्रतीक्षा कक्षों से युक्त ग्राहकों की लोकेशन मेरे लिए ऐसे परिचित गेट-बंद समुदाय में तब्दील हो गईं, जिसमें बनी गुम हो जाता, और मैं अपनी नोटबुक के साथ बाहर खड़ी उसका इंतज़ार कर रही होती.
अब रेस्तरां मेरे लिए अजनबी होते जा रहे थे, शांत गलियों में ये मेरे लिए प्रायः रसोई तक सिमट कर रह गए थे. बनी की बाइक पर पीछे बैठ सफ़र करते हुए अभी कुछ घंटे बीते होंगे, जब उसने मुझसे पूछा था कि क्या मेरा कोई बॉयफ्रेंड है. मैंने कहा कि आजकल एक ट्रांस व्यक्ति के साथ मेरा मेलजोल है. जिस क्षण मैंने "ट्रांस" कहा, बनी ने स्वीकार करते हुए कहा, "ओह हां, बिल्कुल, ट्रांस."
हर बार, जब हम थाणे पश्चिम के अंतिम छोरों पर होते, बनी यह सोच-सोच कर घबराता रहता कि अगला ऑर्डर हमें पक्का थाणे से बाहर का मिलेगा और हर बार उसने यह सुनिश्चित किया कि जब हम शहर के अंदरूनी हिस्से में पहुंच जाएं, तभी एप्प पर वह अपना पार्टनर फीडबैक जमा करे, ताकि बाद वाले ऑर्डर्स उसे शहर के सेंट्रल एरिया में मिल सकें. (जब तक कर्मचारी द्वारा एप्प पर फीडबैक जमा नहीं किया जाता, अगला ऑर्डर नहीं आता है). 24/7 खुली रहने वाली शराब की दुकानों के बारे में बताने और पुलिस वालों की पसंदीदा जगहों को चिह्नित करने के बाद, हम चरई (मखमली तालाब के पास थाणे पश्चिम के दक्षिणी इलाक़े) में ऑर्डर के तैयार होने का इंतज़ार कर रहे थे. हमारी बातचीत का सिलसिला जारी था और एक बात से दूसरी बात निकलती जाती थी.
ये हमारी मुलाक़ात का दूसरा दिन था. मुझे याद है उसी दौरान बनी ने मुझसे कहा था कि लोग उसे एक महिला की तरह देखते हैं लेकिन असल में वह खुद को एक मर्द के रूप में देखता है और मैं उससे एक मर्द की तरह ही बात करूं. तभी उसने मुझसे अनुरोध किया कि मैं उसे बनी बुलाऊं.
मुझे बस इतना याद है कि उस बातचीत की शुरुआत बिल्लियों से हुई थी, जैसा कि अक्सर मेरी ज़िन्दगी में क्वियर विषयों पर बातचीत की शुरुआत में होता है.
गिग वर्कर्स किसी भी शहर में एक बहुत ही विशिष्ट स्थान रखते हैं. उनके काम के लिए यह ज़रूरी है कि उनके दिमाग़ में शहर का छोटे से छोटा और बड़े से बड़ा नक्शा अच्छी तरह छपा हो, इस बोध के साथ कि समय के साथ यह कैसे बदलता रहता है. उनकी कमाई के कारकों में से एक यह भी है कि वे सामान और सेवाओं को वितरित करने के लिए कितनी दूरी तय करते हैं.
वे सार्वजनिक और निजी स्थानों, उद्यमिता और रोज़गार, पहचान और गुमनामी की जो विभाजन रेखा है, ठीक उसी पर खड़े होते हैं. कहने के लिए वे कंपनी के "साझेदार" हैं लेकिन उनके लक्ष्य, कमीशन और काम को ठीक तरह से करने या न करने के मामलों में निलंबन का फैसला कम्पनी करती है. टी-शर्ट, हेलमेट और "बॉस" का न होना उन्हें गुमनामी तो देता है.
लेकिन, ग्राहकों के फोन पर उनके नाम की उपस्थिति उनकी पहचान के कुछ अंश उन्हें वापस लौटा भी देती है. फेयरवर्क इंडिया 2021 की रिपोर्ट का अनुमान है कि भारत में 11 सबसे लोकप्रिय एप्प पर 15 लाख वर्कर्स काम करते हैं. इसमें जेंडर से संबंधित कोई अलग से डेटा उपलब्ध नहीं है. नवंबर 2021 में प्रकाशित हिन्दू बिज़नेस लाइन अख़बार की एक रिपोर्ट बताती है कि भोजन या पार्सल देने वालों की तुलना में सैलून सेवाओं की पेशकश करने वाले प्लेटफार्मों पर महिलाओं की संख्या अधिक है. इसमें दावा किया गया है कि ज़ोमैटो डिलीवरी पार्टनर्स में केवल 0.5 फीसदी महिलाएं हैं, वहीं अर्बन कम्पनी के लिए यह आंकड़ा बढ़कर 33 फीसदी हो जाता है.
बेटरप्लेस – एक ऑनलाइन फर्म द्वारा 2019 में जारी एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत में गिग इकॉनमी 14 लाख से अधिक नौकरियां प्रदान करती है, जिसमें राइडशेयर ड्राइवर, डिलीवरी वर्कर, ब्यूटी एंड वेलनेस वर्कर, मेंटेनेंस वर्कर और इसी तरह के अन्य कर्मचारी शामिल हैं.
गिग वर्कर्स स्वाभाविक रूप से यूनियन नहीं बना पाते क्योंकि अव्वल तो कोई एक साझा जगह नहीं होती जहां वे साथ मिलकर काम करते हों या फ़िर एक दूसरे से बात कर सकें. जहां से काम मिलता है वो तकनीक और एल्गोरिदम से जुड़ी व्यवस्था है जिसका कोई चेहरा नहीं होता.
गिग वर्कर्स की सामूहिकता पर शोध करने वाली विद्वान डॉन गियरहार्ट का कहना है, “यूनियन, किसी एल्गोरिदम से मोल-भाव नहीं कर सकती, एप्प के सामने अपनी मांग नहीं रख सकती या तकनीकी समीकरणों से बातचीत नहीं कर सकती.” यह तभी संभव हो सकता है जब गिग वर्कर्स एक साथ मिलकर एक समूह के रूप में सामने आएं. यह एक चुनौतीपूर्ण काम ज़रूर है लेकिन कोविड महामारी की वजह से लगाए गए लॉकडाउन ने इस चुनौती को आगे मुकम्मल करने में मदद की है.
राष्ट्रीय स्तर पर दो महासंघ – ऑल इंडिया गिग वर्कर्स यूनियन (AIGWU) और इंडियन फेडरेशन ऑफ ऐप-बेस्ड ट्रांसपोर्ट वर्कर्स (IFAT) – क्रमशः अगस्त 2020 और सितंबर 2019 में बनाए गए थे. AIGWU का गठन वास्तव में वेतन कटौती के खिलाफ़ स्विगी कर्मचारियों के विरोध के दौरान किया गया था. इनकी शुरुआती मांगों में से एक वेलफेयर बोर्ड की स्थापना और गिग श्रमिकों के लिए सामाजिक सुरक्षा से जुड़े लाभों का विस्तार शामिल था, जिसे हाल ही में सामाजिक सुरक्षा संहिता द्वारा संबोधित किया गया है. लेकिन समय के साथ, गिग वर्कर्स ने कम कमीशन, पेट्रोल-डीज़ल की कीमतों में बढ़ोतरी और रोज़मर्रा के काम को पूरा करने में लगातार हो रही बढ़ोतरी के विरोध में सामूहिक रूप से विरोध किया है.
प्रेरणा * 21 साल की युवती है, जिसने पूरे लॉकडाउन के दौरान दिसंबर 2021 तक अमेज़न के लिए पैकेज डिलीवरी का काम किया. पूजा 30 साल की हैं, वे गुड़गांव में ब्यूटी सर्विस प्रदान करने वाली अर्बन कम्पनी के साथ बतौर पार्टनर जुड़ी हुई हैं. 27 साल के बनी ज़ोमैटो के लिए थाणे में फुड डिलीवरी, यानी खाना पहुंचाने का काम करते हैं.
बनी और प्रेरणा दोनों ही कोविड की वजह से हुए लॉकडाउन के तुरंत बाद प्लेटफॉर्म से जुड़ गए थे क्योंकि कोविड के दौरान दोनों शैक्षिक परामर्शदाता और ड्राई-क्लीनर की अपनी पहले वाली नौकरियां गवां चुके थे. इसके तुरंत बाद ही अर्बन क्लैप को अर्बन कम्पनी के रूप में रीब्राण्ड किया गया, उत्पादों की लागत और कमीशन के प्रतिशत बढ़ने लगे, परिणामस्वरूप सैकड़ों ब्यूटीशियनों ने इसका विरोध करना शुरू कर दिया. मैं पूजा से उस समय मिली जब वे अपने जीवन में एक अप्रत्याशित मील का पत्थर पार करने जा रही थीं. अर्बन कम्पनी के लिए काम करने वाली महिलाएं एकजुट हो रही थीं. पहली बार अपनी समस्याओं पर चर्चा करने और कम्पनी प्रबंधन से बातचीत शुरू करने के लिए वे एक साथ आ रही थीं और पूजा उनमें से एक थी.
प्रेरणा, पूजा और बनी के साथ अपनी मुलाकात और इंटरव्यू के माध्यम से मैंने महसूस किया कि शहर के साथ उनके सम्बंधों में प्लेटफॉर्म के नीरस एल्गोरिदम के साथ-साथ उन असंख्य लोगों का अप्रत्याशित रवैया भी शामिल है जिनसे उनका रोज़ ही साबक़ा पड़ता है.
डिलीवरी से जुड़े गिग वर्क के लिए शहर की हर छोटी बड़ी सड़कों-गलियों के बारे में बारीक जानकारी की आवश्यकता होती है. एक डिलीवरी पार्टनर के पास नेविगेशन के लिए नक्शे को लगातार देखते रहने की सुविधा नहीं होती क्योंकि उसे एक निश्चित अवधि के भीतर अपने दोपहिया वाहन से ऑर्डर या पैकेज को डिलीवर करना होता है. प्रेरणा ने क़बूल किया कि अमेज़न डिलीवरी पार्टनर बनने से पहले उसे पता ही नहीं था कि ठाणे पश्चिम में वसंत विहार के पड़ोस का इलाका इतना विस्तृत है. अब, वह आपको इलाके की हर इमारत की लोकेशन और दिशा बता सकती है.
जब उसने डिलीवरी पार्टनर के रूप में काम शुरू किया था, तब शुरू-शुरू में पैकेज डिलीवर करने में उसको काफी वक़्त लगता था और कई दिनों तक तो वह रात के 11-11 बजे तक बाहर ही घूमती रह जाती थी. लेकिन, जैसे-जैसे वह रास्तों से परिचित होती गई, उसकी डिलीवरी की रफ़्तार भी बढ़ती गई.
वैसे तो बनी को ज़ोमैटो से जुड़े अभी ज़्यादा समय नहीं बीता है लेकिन शहर के बारे में उसका ज्ञान कई परतों वाले एक माइंड मैप की तरह है. एक परत में जहां थाणे शहर की तमाम सड़कें बिल्कुल स्पष्ट दर्ज हैं जो बिना मैप का इस्तेमाल किए ही किसी भी लोकेशन पर ड्राइव करना उसके लिए सम्भव बनाता है. वहीं एक और परत है जिसमें उन जगहों के नक्शे दर्ज हैं जहां पर सामान्यतः ट्रैफिक पुलिस मौजूद रहा करती है और (जो बिना हेलमेट के गाड़ी चलाने के कारण उसे रोक सकती है और चालान काट सकती है) ट्रैफिक पुलिस को कैसे चकमा देना है यह तरकीब भी उसके दिमाग़ में दर्ज है, साथ ही उसके दिमाग़ में वैसी जगहें भी दर्ज हैं जहां ऑर्डर डिलीवरी करने के दौरान सुकून के पलों में वह आराम से बैठकर धूम्रपान कर सकता है.
यह नक्शा ख़ुद में उन ख़ास रेस्तरांओं को भी समायोजित करता है जहां वह वॉशरूम का उपयोग करने के लिए जा सकता है या कि भूख लगने पर जहां उसे नाश्ता और चाय मिल सकती है. उदाहरण के लिए, अगर वह कोल्बाद में है तो वह अज्जी-चा वड़ा पाव में दाल वड़े खाएगा और अगर वह देवदया नगर में है तो नुक्कड़ के स्टाल पर मूंग भज्जी खाएगा. वह ज़ोमैटो की शर्ट पहनने से बहुत परहेज़ करता है क्योंकि इसका चमकीला लाल रंग उसे नापसंद है, लेकिन वह यह भी जानता है कि उसे कोरम मॉल के सर्विस यार्ड में प्रवेश करने से पहले इसे पहनना होगा क्योंकि वहां डिलीवरी वर्कर्स की वर्दी को लेकर नियम बड़े सख़्त हैं.
उसके माइंड मैप में एक और परत है जिसकी मदद से वह यह अनुमान लगा लेता है कि ऐप अब आगे उसे कहां भेजेगा. “मेरे को पता है कि अगर मैं तीन हाथ नाके गई हूं या वाघले एस्टेट गई हूं तो 101% मुझे कम्पनी मुलुंड ही भेजेगी, ये मेरे को पता है.” वह वसंत विहार को अपना कार्यस्थल मानता है. कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता कि ऑर्डर लेकर कहां से और कहां जाना है, वह फूड डिलीवर करते ही वसंत विहार की ओर वापस चल पड़ता है, जब तक कि रास्ते में कोई नया ऑर्डर न आ जाए. वह अपने घर से ज़्यादा दूर न रहे और रात के 11:30 बजे कहीं मुलुंड या भांडुप में न फंस जाए, इसके लिए भी वह अपने ज्ञान का उपयोग कर सिस्टम को अपने पक्ष में करने की ख़ूबी भी जानता है.
मेरे लिए ये सवाल एक पहेली थी कि बनी हेलमेट पहनने से इंकार क्यों करता है, वह भी तब जब वो बाकी ड्राइवर्स की ख़राब ड्राइविंग के बारे में शिकायत भी करता रहता है. मेरे पूछने पर बनी ने कहा, “बार-बार इसे खोलने, उतारने और फिर पहनने में बहुत ज़्यादा परेशानी होती है.” उस वक़्त तो मुझे उसकी बात समझ नहीं आई, लेकिन पूरा दिन उसके साथ बिताने के बाद मुझे पता चला कि दिन में 25 बार वो अपनी बाइक पर चढ़ने और उतरने का काम करता है, और उतनी बार हेलमेट उतारना-पहनना मेहनत और समय लेने वाला काम है.
आख़िरकार, जब आपका काम तकनीक के एलगोरिदम पर निर्भर करता है और हर पल पैसे और अपने टारगेट तक पहुंचने से बंधा है तो अपना समय बचाने के लिए आप भी एलगोरिदम की तरह काम करना सीख जाते हैं. बनी को भी समझ आ गया है जब एक दिन में 25 बार एक ही काम करना हो तो उसे आसानी या शॉर्ट कट के ज़रिए कैसे पूरा किया जा सकता है. लेकिन इसमें रिस्क भी हमेशा जुड़ा होता है. बनी के लिए यहां हेलमेट न पहनना एक बड़ा रिस्क है.
इस लेख के लिए मैं जिन तीन गिग वर्कर्स से बात कर रही थी उन तीनों के पास अपने-अपने दोपहिया वाहन हैं: प्रेरणा और पूजा के पास स्कूटर है और बनी के पास मोटरबाइक.
बनी और प्रेरणा के विपरीत पूजा को ग्राहकों के पास जाने के लिए अपने ही वाहन के इस्तेमाल की बाध्यता नहीं है. लेकिन, चूंकि अर्बन कम्पनी के पार्टनरों को 15-20 किलोग्राम वज़न वाले किट लेकर जाने पड़ते हैं, इसलिए सार्वजनिक परिवहन का उपयोग इसका विकल्प नहीं हो सकता है.
पूजा और बनी सुरक्षा और स्वतंत्रता के नज़रिए से दोपहिया वाहनों के उपयोग को देखते हैं: बकौल पूजा अपना स्कूटर होने की वजह से काम के बीच में जो ख़ाली वक़्त बचता है, उस दौरान वे कस्टमर लोकेशन के इर्द-गिर्द भटकने के बजाय अपने दोस्तों के घर जा सकती हैं. आमतौर पर, शहर में बिना किसी परेशानी और उत्पीड़न के, उसकी मुक्त आवाजाही को स्कूटर मुमकिन बनाता है, “उल्टे सीधे केस मतलब किसी ने बदतमीज़ी कर दी या कोई ऑटो में बैठ गया साथ में, छेड़ने लग गया. ऐसी चीज़ें-हरकतें बहुत देखी हैं. जबसे मैंने अपनी स्कूटी ली है ना, मैं बहुत सेफ़ फ़ील करती हूं. क्योंकि मेरी स्कूटी होती है तो मुझे ना कोई रोकने वाला है, ना कोई मुझे टोकने वाला है, ना मुझे रास्ते में कोई डिस्टर्ब करने वाला है.”
बनी और पूजा ने बताया कि ग़लत जगह पर गाड़ी पार्क करने के कारण कई बार सुरक्षा गार्डों ने उन्हें डांटा-फटकारा और उनपर चिल्लाए भी हैं. पूजा को अक्सर आवासीय सोसायटी के बाहर ही अपनी गाड़ी खड़ी करने के लिए कहा जाता है और उससे यह अपेक्षा की जाती है कि वह भारी-भरकम किट को अपने कंधों पर लाद कर ले जाए. अर्बन कम्पनी के साथ तीन साल तक ब्यूटीशियन के रूप में काम करने के बाद, पूजा में इस तरह के मनमाने नियमों के ख़िलाफ आवाज़ बुलंद करने का आत्मविश्वास विकसित हुआ है,
“मैं तो भिड़ जाती हूं. मेरी स्कूटी अगर मना कर दी कि सोसायटी में नहीं जाएगी तो मैं मना कर देती हूं. ‘भाई मेरा बैग ले के चलो. लिफ्ट तक पहुंचा दो. मैं स्कूटी यहीं खड़ी कर दूंगी. बीस किलो का बैग है. आप उठाओ’. तो फिर मजबूरी में उनको बोलना पड़ता है कि ‘जाओ आप’.”
इस काम में कुछ हद तक आज़ादी और खुद पर निर्भर होने या अपनी मर्ज़ी से काम करने का अहसास जुड़ा है. जब आप अपने काम का समय, छुट्टियों के दिन और ब्रेक का समय ख़ुद ही निर्धारित करते हैं तो निश्चित रूप से आपको आज़ादी और एजेंसी की भावना का बोध होता है, लेकिन यह लचीलापन अक्सर बढ़ाचढ़ा कर पेश किया जाता है. स्वतंत्र शोध संस्था ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन द्वारा 2020 में जेंडर और गिग अर्थव्यवस्था पर किए गए एक अध्ययन के अनुसार, यह लचीलापन उन लोगों के लिए कम ही अहमियत रखता है जिनकी प्राथमिक आय का स्रोत गिग वर्क ही है. उदाहरण के लिए, बनी को सप्ताहांत पर, दिन के 1400 रुपए कमाने के लिए 10 घंटे तक लॉगइन रहना पड़ता है. अन्य दिनों में, लक्ष्य को पूरा करने के लिए वह अक्सर रात 12 बजे तक बाहर ही रहता है ताकि उस दिन के लिए मुनासिब आमदनी हो सके और अगले दिन के पेट्रोल का ख़र्च निकल आए.
दूसरी दुविधा काम की सुरक्षा को लेकर है. चूंकि गिग श्रमिकों को निश्चित संख्या में टास्क पूरा करने या एक निर्धारित लक्ष्य पूरा करने के आधार पर ही भुगतान किया जाता है, इसलिए उनकी आय की नियमितता भी उन दिनों से प्रभावित होती है जब काम कम होता है. प्रेरणा ने अमेज़न में अपनी नौकरी से इस्तीफ़ा दे दिया क्योंकि उसे पूरे दिन के लिए काम पर नहीं बुलाया जा रहा था. हाल ही में सामाजिक सुरक्षा संहिता बनी है जो गिग श्रमिकों के लिए सामाजिक सुरक्षा लाभों के प्रावधान को अनिवार्य बनाती है लेकिन इसे अभी तक लागू नहीं किया गया है.
बनी और पूजा दोनों ने कुछ इमारतों में प्लेटफॉर्म सर्विस प्रदान करने वालों के लिए अलग लिफ्ट निर्धारित किए जाने से ख़ुद को अपमानित महसूस करते हुए बताया कि "मुझे बहुत हर्ट होता है इस चीज से...
तुलसीधाम की कुछ इमारतों के प्रति अपने अनुराग के बारे में बताने लगता है जहां लिफ्टों में पुराने गाने बजते रहते हैं और संगीत का आनंद लेने के लिए वह जानबूझकर ऐसी लिफ्ट में ज़्यादा देर तक रुका रहता है.
एक बार 2 बजे की शदीद गर्मी में डिलीवरी पूरी कर बनी लौटता है और बताता है कि “ग्राहक ने मुझे एक गिलास पानी की पेशकश की!” तब उसके चेहरे पर मुस्कान थी. बनी की बात सुनकर मुझे प्रेरणा की याद हो आई. उसने अपना अनुभव शेयर करते हुए बताया था कि वह जो पैकेज देने आई थी, उसे ग्राहक ने उसके सामने ही फेंक दिया था और वह थप्पड़ खाते-खाते बची थी.
अमेज़न ऐप पर ग़लत कैश-ऑन-डिलीवरी राशि लिखे होने के कारण ग्राहक ने उसके खिलाफ़ शिकायत भी दर्ज की थी, जिसके बाद सफाई देने के लिए उसे बुलाया गया था. उसने अपने प्रबंधक के सामने पूरी सच्चाई बयान कर दी थी और उसकी बात सुनने के बाद मैनेजर ने उसे कोई सज़ा नहीं दी थी. लेकिन ग्राहक के ख़िलाफ़ कोई कार्रवाई नहीं किए जाने से वह अब भी खिन्न थी, “उनके ऊपर भी उन्होंने ये (एक्शन) लेना चाहिए. वो बार-बार हमारा कम्प्लेंट करते हैं. उन पर भी करना चाहिए.”
जैसा कि पूजा कहती है, "काम सबको चाहिए, फायदा सबको चाहिए पर कदर किसी को नहीं है. उस पर्सन की वैल्यू नहीं है जो बंदा आपके लिए टाइम निकालकर आ रहा है.
मानते हैं कि आप पैसे दे रहे हो, सब कुछ कर रहे हो. पर वो आ तो रहा है ना इतनी दूर से… आपको जाना पड़ता, आपको फ्यूअल भी ख़र्च करना पड़ता. आपका टाइम भी वेस्ट होता है. आपका सबका टाइम बचा. हर चीज़ बची… मेरे हिसाब से तो उसको इज़्ज़त देनी चाहिए.”
हाल ही में दिल्ली और गुड़गांव में अर्बन कम्पनी के पार्टनर्स के प्रदर्शन से पूजा में भी गर्व और दोस्ती का भाव प्रबल हुआ है. उसने बताया कि पहले महिलाएं कैसे एक-दूसरे से डरती थीं और रास्ते में मिल जाने पर भी एक-दूसरे से बचने की कोशिश किया करती थीं, इस डर से कि दूसरी महिला कहीं कम्पनी में उसके खिलाफ़ चुगली न कर दे. उसने बताया कि कैसे उसने हाल ही में एक अर्बन कम्पनी पार्टनर की मदद की, जिसे फेशियल करने में मदद की ज़रूरत थी क्योंकि यह उसका पहला गिग था.
“जब से यह प्रदर्शन हुआ है ना, सच में लडकियां एक-दूसरे से मिलती हैं, खुश होती हैं. जहां भी मिलती हैं एक घड़ी बात तो ज़रूर करती हैं. ‘आप ग्रुप पर हो? आप कैसे हो? आपका नाम क्या है?’ अगर कोई लड़की कहीं कुछ भूल गई तो दूसरी लड़कियां उसकी हेल्प भी करती हैं.”
*किरदारों की पहचान उजागर न हो इसलिए सभी के नाम बदल दिए गए हैं.
इस लेख का अनुवाद अकबर ने किया है.