
बहती हवा सी थी वो…
मेरी मम्मी हमेशा उससे बोलती थीं, “मैं सिर्फ तुम्हारी ज़िम्मेदारी में कशिश को भेज रही हूं. उसका ख्याल रखना.” और वो मम्मी से कहती, “आंटी मैं आपसे वादा करती हूं, मेरे होते हुए उसको कुछ नहीं होगा.”
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मेरी मम्मी हमेशा उससे बोलती थीं, “मैं सिर्फ तुम्हारी ज़िम्मेदारी में कशिश को भेज रही हूं. उसका ख्याल रखना.” और वो मम्मी से कहती, “आंटी मैं आपसे वादा करती हूं, मेरे होते हुए उसको कुछ नहीं होगा.”
किसान मां और पुलिस में नौकरी करने वाले पिता की बेटी, सेजल राठवा, पत्रकार बनने वाली अपने समुदाय की पहली लड़की है. छोटा उदयपुर की रहने वाली सेजल ने बतौर ब्रॉडकास्ट जर्नलिस्ट, वडोदरा, गुजरात के वीएनएम टीवी के साथ पत्रकारिता के करियर की शुरुआत की.
‘टीचर टॉक्स’ सीज़न दो के दूसरे एपिसोड में मिलिए पाकुर, झारखंड की असनारा खातून से जो अपने परिवार की पहली शिक्षिका हैं. पाकुर के एक ऐसे इलाके में जहां लड़कियों की पढ़ाई से ज़्यादा ज़रूरी उनको बीड़ी बनाने के काम में लगाना है, असनारा बस अपनी धुन में पढ़ती ही गईं.
टीचर टॉक्स के दूसरे सीज़न में मिलिए ऐसी शिक्षिकाओं से जो अपने परिवार में शिक्षा प्राप्त करने वाली पहली पीढ़ी से हैं. वीडियो में वे बतौर विद्यार्थी शिक्षा प्राप्त करने के अपने अनुभवों के साथ, वर्तमान में अनौपचारिक शिक्षण केंद्रों में बच्चों को पढ़ाने के अनुभव साझा कर रही हैं.
साल 2002 बहुत सारी घटनाओं के लिए इतिहास में दर्ज है. उन्हीं में से एक असाधारण घटना थी ‘आलो आंधारि’ किताब का प्रकाशन. इस किताब के शब्दों ने घरेलू कामगारों के साथ होने वाली हिंसा और गरीबी में डूबी एक ऐसी दुनिया का दरवाज़ा खोलने का काम किया जिसके बारे में शायद ही कभी कोई बात होती थी.
सोशल मीडिया पर हम जैसे दिखाई देते हैं क्या असल में हम वही होते हैं? सोशल मीडिया पर क्या कितना दिखाना है कितना नहीं? क्या दिखाना है, क्या नहीं इससे हमारे खुद के बारे में क्या पता चलता है?
उसे अपनी पढ़ाई को जारी रखने के लिए पैसों की ज़रूरत थी. उसने बहुत सारी तरकीबें सोच रखी थीं जिनसे घरवालों से पढ़ाई के लिए पैसा भी निकाल ले और उन्हें पता भी न चले पर उसके पिताजी हमेशा उसकी तरकीबों से एक कदम आगे की सोच रखते हैं. सुनिए एक पिता और एक बेटी की कहानी.
“छोटी बहू, अरे ओ छोटी बहू…” घर में सुबह से लेकर रात तक बस यही एक राग सुनाई देता है. घर हो या बाहर या फिर काम की जगह, उसका पूरा दिन सिर्फ़ भागते-दौड़ते ही बीत जाता. कभी शरारती सुनिता के नाम से मशहूर,आज वो सिर्फ़ छोटी बहू बनकर रह गई है…क्या है छोटी बहू की कहानी सुनिए राजकुमारी और आरती अहिरवार की ज़ुबानी.
दसवीं तक की पढ़ाई पूरी करते-करते सबा को तीन बार स्कूल छोड़ना पड़ा. क्योंकि घरवाले स्कूल फीस जमा करने की स्थिति में नहीं थे. किसी तरह प्राइवेट से दसवीं करने के बाद सबा ने ट्यूशन और डेलिगेट मदरसा में 300 रूपए प्रति माह तनख्वाह पर बच्चों को पढ़ाना शुरू किया.
‘ये इश्क नहीं आसां इतना ही समझ लीजे, इक आग का दरिया है और डूब के जाना है’. इश्क मजाज़ी, इश्क मजनूंई कुछ भी कह लीजिए, पर जब चाहतें फ्रेंड रिक्वेस्ट की शक्ल में भेजी जाती हैं और कबूल कर ली जाती हैं तो दिल अपनी कुर्सी से उछल पड़ता है.