लड़कियों की शिक्षा

उपस्थिति दर्ज करने की ज़िद

किसान मां और पुलिस में नौकरी करने वाले पिता की बेटी, सेजल राठवा, पत्रकार बनने वाली अपने समुदाय की पहली लड़की है. छोटा उदयपुर की रहने वाली सेजल ने बतौर ब्रॉडकास्ट जर्नलिस्ट, वडोदरा, गुजरात के वीएनएम टीवी के साथ पत्रकारिता के करियर की शुरुआत की.

टीचर टॉक्स: सीज़न 2. एपिसोड 2

‘टीचर टॉक्स’ सीज़न दो के दूसरे एपिसोड में मिलिए पाकुर, झारखंड की असनारा खातून से जो अपने परिवार की पहली शिक्षिका हैं. पाकुर के एक ऐसे इलाके में जहां लड़कियों की पढ़ाई से ज़्यादा ज़रूरी उनको बीड़ी बनाने के काम में लगाना है, असनारा बस अपनी धुन में पढ़ती ही गईं.

मेरा चश्मा, मेरे रूल्स: एपिसोड 3 ये दिल दीवाना भी और गुस्सा भी

ज़ूम कॉल पर बातों-बातों में जब मुस्कान ने कहा, “हमारे यहां तो ये सब चलता ही नहीं है” तो हमें थोड़ा समय लगा यह समझने में कि मुस्कान यहां प्यार करने और साथ ही गुस्सा करने की बात कर रही है.

टीचर टॉक्स: सीज़न 2. एपिसोड 1

टीचर टॉक्स के दूसरे सीज़न में मिलिए ऐसी शिक्षिकाओं से जो अपने परिवार में शिक्षा प्राप्त करने वाली पहली पीढ़ी से हैं. वीडियो में वे बतौर विद्यार्थी शिक्षा प्राप्त करने के अपने अनुभवों के साथ, वर्तमान में अनौपचारिक शिक्षण केंद्रों में बच्चों को पढ़ाने के अनुभव साझा कर रही हैं.

मेरा चश्मा, मेरे रूल्स: एपिसोड 2 मैं कब बड़ी हुई?

साहिबा के लिए गूगल बाबा, ज्ञान का भंडार हैं जहां वो सुबह से लेकर शाम तक लगातार घूमती रहती है और मानसिक स्वास्थ्य से लेकर तरह-तरह की जानकारियों का हल ढूंढती रहती है. ज़ूम कॉल पर 18 साल की साहिबा खुद के बारे में और खुद का ध्यान रखने के बारे में इतनी बड़ी-बड़ी बातें करती है कि सभी उत्सुकता से उसकी बातों में डूबते रहते हैं.

बेबी हालदार के साथ एक बातचीत

साल 2002 बहुत सारी घटनाओं के लिए इतिहास में दर्ज है. उन्हीं में से एक असाधारण घटना थी ‘आलो आंधारि’ किताब का प्रकाशन. इस किताब के शब्दों ने घरेलू कामगारों के साथ होने वाली हिंसा और गरीबी में डूबी एक ऐसी दुनिया का दरवाज़ा खोलने का काम किया जिसके बारे में शायद ही कभी कोई बात होती थी.

मेरा चश्मा, मेरे रूल्स: एपिसोड 1 मेरी सुरक्षित जगह कहां है?

नारीवादी संस्थाओं और अकादमिक बातचीत में ‘सुरक्षित जगह’ के बारे में अक्सर बात की जाती है. भिन्न मौकों पर हम इस बात को दोहराते हैं कि इस लफ्ज़ के माने अलग-अलग लोगों के लिए, और अलग-अलग वक़्त पर कितने मुख्तलिफ़ रहे हैं.

मेरा चश्मा, मेरे रूल्स | ट्रेलर

तुम्हारी चाहतें क्या हैं? तुम क्या चाहती हो? आखिरी बार कब हमने किसी युवा से उनकी चाहतों के बारे में पूछा था? हम कैसे उनकी ज़िंदगी उनके नज़रिए से देख सकते हैं?

होने, न होने के बीच

सोशल मीडिया पर हम जैसे दिखाई देते हैं क्या असल में हम वही होते हैं? सोशल मीडिया पर क्या कितना दिखाना है कितना नहीं? क्या दिखाना है, क्या नहीं इससे हमारे खुद के बारे में क्या पता चलता है?

फ से फ़ील्ड, श से शिक्षा: एपिसोड 10 पैसे चाहिए की नहीं?

उसे अपनी पढ़ाई को जारी रखने के लिए पैसों की ज़रूरत थी. उसने बहुत सारी तरकीबें सोच रखी थीं जिनसे घरवालों से पढ़ाई के लिए पैसा भी निकाल ले और उन्हें पता भी न चले पर उसके पिताजी हमेशा उसकी तरकीबों से एक कदम आगे की सोच रखते हैं. सुनिए एक पिता और एक बेटी की कहानी.

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