महिलाएं

“हिंसा की तलाश थी और प्यार मिल गया.”

महिला कैदियों की ज़िंदगी के बारे में हम बहुत कम जानते हैं. लोक कल्पनाओं और कहानियों में या तो वे सिरे से गायब होती हैं या सामाजिक नियमों का उल्लंघन करने वाली, असाधारण, बिगड़ी हुई महिला के रूप में उनका चित्रण किया जाता है. पर, एक आम महिला कैदी का जीवन कैसा है? उसकी आपराधिकता क्या है? इसके जड़ में क्या छिपा होता है? उस महिला कैदी के डर, सपने और चाहतें क्या हैं? उसके लिए जेल के बाद की दुनिया कैसी होती है?

बेबी हालदार के साथ एक बातचीत

साल 2002 बहुत सारी घटनाओं के लिए इतिहास में दर्ज है. उन्हीं में से एक असाधारण घटना थी ‘आलो आंधारि’ किताब का प्रकाशन. इस किताब के शब्दों ने घरेलू कामगारों के साथ होने वाली हिंसा और गरीबी में डूबी एक ऐसी दुनिया का दरवाज़ा खोलने का काम किया जिसके बारे में शायद ही कभी कोई बात होती थी.

जानिए 20वीं शताब्दी की प्रगतिशील महिला साहित्यकारों को

19वीं सदी के हैदराबाद में उर्दू गद्य और पत्रकारिता के विकास और इसके समानांतर चलने वाले समाज सुधार कार्यक्रमों ने कुछ दशकों बाद शुरू हुए प्रगतिशील आंदोलन में अहम भूमिका अदा की.

क्या आप भारतीय महिलाओं के साहित्यिक लेखन के 150 साल पुराने इतिहास के बारे में जानते हैं?

हैदराबादी महिलाएं 19वीं सदी के उत्तरार्ध से ही उर्दू भाषा में साहित्य सृजन कर रही थीं. वैसे यह कोई अनूठी बात नहीं क्योंकि यह वही दौर था जब बिहार और बंगाल जैसे राज्यों में भी महिलाएं साहित्य रचना कर रही थीं. स्त्री लेखन के इस उभार के अपने ऐतिहासिक कारण रहे हैं, जिन पर इस लेख में मैं बाद में बात करूंगी.

औरतों के श्रम को कैसे नापा जाए?

नारीवादी अर्थशास्त्रियों द्वारा लंबे समय से श्रम को मापने के लिए काम के घंटों, ख़ासकर, महिलाओं के काम के घंटों की गणना को मापदंड के रूप में पैमाना बनाने पर ज़ोर दिया गया है. इस महामारी के दौरान ये नज़रिया और भी महत्त्वपूर्ण हो गया है.

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