दरस का पेड़
वो कौतूहल ही था जिसने अशरफ हुसैन और अज़फरूल शेख के कदमों को उधर की ओर मोड़ दिया जिधर स्थानीय मदरसा हुआ करता है और जिसके पास से वे अक्सर गुज़रा करते थे, पर अंदर जाने का मौका नहीं मिलता था.
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वो कौतूहल ही था जिसने अशरफ हुसैन और अज़फरूल शेख के कदमों को उधर की ओर मोड़ दिया जिधर स्थानीय मदरसा हुआ करता है और जिसके पास से वे अक्सर गुज़रा करते थे, पर अंदर जाने का मौका नहीं मिलता था.
फ़िल्म ‘रात: छोटे शहरों की लंबी रात’ डिजिटल एजुकेटर्स द्वारा अपने-अपने गांव और कस्बों में रात के अपने अनुभवों का चित्रण है. कौन है जो रात में बाहर निकल सकता है? कौन है जो हम पर नज़र रखता है? किस पर नज़र रखी जाती है? घुप अंधेरे के बारे में होते हुए भी यह फ़िल्म हमें उजाला दिखाती है. उजाला, नए इतिहास के बनने का.
‘टीचर टॉक्स’ सीज़न दो के दूसरे एपिसोड में मिलिए पाकुर, झारखंड की असनारा खातून से जो अपने परिवार की पहली शिक्षिका हैं. पाकुर के एक ऐसे इलाके में जहां लड़कियों की पढ़ाई से ज़्यादा ज़रूरी उनको बीड़ी बनाने के काम में लगाना है, असनारा बस अपनी धुन में पढ़ती ही गईं.
टीचर टॉक्स के दूसरे सीज़न में मिलिए ऐसी शिक्षिकाओं से जो अपने परिवार में शिक्षा प्राप्त करने वाली पहली पीढ़ी से हैं. वीडियो में वे बतौर विद्यार्थी शिक्षा प्राप्त करने के अपने अनुभवों के साथ, वर्तमान में अनौपचारिक शिक्षण केंद्रों में बच्चों को पढ़ाने के अनुभव साझा कर रही हैं.
“मैं”- इस पहेली के बारे में कभी न कभी तो हम सब ने सोचा ही है. आज सेल्फी के इस ज़माने में जहां मोबाइल फ़ोन का बटन दबाते ही ख़ुद से ही ख़ुद की तस्वीर सेकेंड्स में खींच लेना संभव है, वहां शायद यह सवाल और भी पेचीदा हो जाता है