छोटे शहरों की लंबी रात

अब तक हमने आसमान का रंग सिर्फ़ नीला देखा है या आदतन जो दिखाया या बताया जाता है उसी सीमित दायरे में देखने-समझने के आदि हो चुके हैं. आसमान का रंग गुलाबी, गहरा लाल, कभी पीला तो कभी सफ़ेद भी होता है. ऐसा ही अनुभव हमारे डिजिटल एजुकेटर्स का है. हमारे लर्निंग लैब के साथी रोज़मर्रा की ज़िंदगी में अपनी धुरी को जानने-समझने की कोशिश करते हैं और अपने अनुभवों एवं बातों को हमारे सामने लेकर आते हैं.

द थर्ड आई लर्निंग लैब, कला आधारित शैक्षणिक प्लेटफॉर्म है. जहां हम साथ मिलकर अपने आसपास की दुनिया को समझने का काम करते हैं. यहां हम उन विचारों और नज़रियों की पड़ताल करते हैं जो हममें बसे हैं. साथ ही आलोचनात्मक दृष्टि से उसे जांचने-परखने का काम करते हैं. यह कोई व्यक्तिगत यात्रा नहीं है. हमारा एक छोटा सा समूह है जिसमें राजस्थान, झारखंड और उत्तर-प्रदेश से लोग जुड़े हैं. सभी डिजिटल एजुकेटर्स ग्रामीण परिवेश से जुड़े होने के साथ समुदाय आधारित संगठन से भी जुड़े होने का अनुभव साथ लाते हैं.

इसके अंतर्गत हम स्थिर एवं चलायमान छवियों, आवाज़ों, ध्वनियों और शब्दों के ज़रिए आसपास की दुनिया को समझने की कोशिश करते हैं. डिजिटल एजुकेटर्स अपनी पसंद और कौशल के अनुरूप संबंधित माध्यम का इस्तेमाल कर अपनी बात सामने रखते हैं. और हां, ऑनलाइन के ज़रिए ऐसे कौशल को आगे बढ़ाने का काम लगातार जारी है.

अवधारणाओं को दृश्यों, छवियों और आवाज़ के ज़रिए देखने पर क्या पता चलता है? ऐसे सवालों के साथ चलने वाली कार्यशालाएं एवं साप्ताहिक अड्डा डिजिटल एजुकेटर्स को किसी एक खास कौशल में प्रशिक्षित होने का मौका देता है.

इसी प्रक्रिया में पिछले एक साल में हमारे डिजिटल एजुकेटर्स ने साथ सीखने-सिखाने की कलात्मक एवं रचनात्मक प्रक्रिया से गुज़रते हुए एक लघु फ़िल्म तैयार की जो देश और विदेश में सुर्खियां बटोर रही है.

फ़िल्म ‘रात: छोटे शहरों की लंबी रात’ डिजिटल एजुकेटर्स द्वारा अपने-अपने गांव और कस्बों में रात के अपने अनुभवों का चित्रण है. कौन है जो रात में बाहर निकल सकता है? कौन है जो हम पर नज़र रखता है? किस पर नज़र रखी जाती है? घुप अंधेरे के बारे में होते हुए भी यह फ़िल्म हमें उजाला दिखाती है. उजाला, नए इतिहास के बनने का.

रात फ़िल्म बहुत सारे सवालों को अगर जन्म देती है तो वहीं वह जवाब भी है. फ़िलहाल फ़िल्म अपनी खुद की यात्रा पर निकल चुकी है. अब वो हमारी नहीं, दर्शकों की फ़िल्म है. ‘केरला अंतरराष्ट्रीय शॉर्ट डॉक्यूमेंट्री फिल्म फेस्टिवल (IDSFF)’ में भाग लेने के बाद फ़िल्म को धर्मशाला अंतरराष्ट्रीय फ़िल्म फेस्टिवल में ‘क्रिटिक्स गिल्ड जेंडर सेंसिटिव अवॉर्ड’ से नवाज़ा गया. इसके अलावा नागपुर में आयोजित अंकुर फ़िल्म महोत्सव, दिल्ली में होने वाले बियॉन्ड बॉर्डर्स फेमिनिस्ट फ़िल्म फेस्टिवल और मुंबई के मशहूर काला घोड़ा आर्ट्स फेस्टिवल में भी दर्शकों ने इसे खूब पसंद किया.

क्रेडिट:

फ़िल्म निर्माण:

आरती अहिरवार, अशरफ हुसैन, राजकुमारी अहिरवार, विकास खत्री, तबस्सुम अंसारी, कुलसुम खातून, खुशी बानो, परमेश्वर मंद्रवालिया, संतरा चौरसिया, राजकुमार प्रजापति, मनीषा चंद्रा, अनीता सेन, रानी देवी, अजफरुल शेख

प्रोजेक्ट परामर्शदाता: रूचिका नेगी

निर्माता: टीटीई लर्निंग लैब, रूचिका नेगी, दीप्ता भोगा

निर्माता: द थर्ड आई, शबानी हसनवालिया, शिवम रस्तोगी

एडिटर: अभिनव भट्टाचार्या

तकनीक, दृश्य एवं कहानी प्रशिक्षक: अभिनव भट्टाचार्या, माधुरी आडवाणी

आवाज़: अभिषेक माथुर

द थर्ड आई की पाठ्य सामग्री तैयार करने वाले लोगों के समूह में शिक्षाविद, डॉक्यूमेंटरी फ़िल्मकार, कहानीकार जैसे पेशेवर लोग हैं. इन्हें कहानियां लिखने, मौखिक इतिहास जमा करने और ग्रामीण तथा कमज़ोर तबक़ों के लिए संदर्भगत सीखने−सिखाने के तरीकों को विकसित करने का व्यापक अनुभव है.

ये भी पढ़ें

Skip to content