हम

जहां हम खोजते हैं सत्ता का हमसे, हमारी सोच, हमारे अस्तित्व, हमारी देह और आत्मीयता से क्या रिश्ता है. हम जो अपने अंदर असीम अभिलाषाएं, आकांक्षाएं समेटे हुए हैं. हमारे भीतर कुछ चाहतें भी हैं, कुछ छोटेमोटे विरोध भी हैं. हम जिनमें मुहब्बतों की ख्वाहिशें भी हैं और हिंसा की संभावनाएं भी. हम जिसके ज़रिए राष्ट्र अपनी अलग पहचान बनाने की कोशिश करता है. हमारा यह तन और मन हमारी बनती बिगड़ती पहचानों का महल है और यादों का मकबरा भी. आए दिन इसमें कला और खूबसूरती की रासलीला भी खेली जाती है.

रोमांस

दो पहाड़ों के बीच

जब मैं उस मशहूर हिल स्टेशन के बस स्टैंड पर उतरा, तो मेरे मन में एक ही सवाल घूम रहा था, क्या वह आएगी? बीती रात मैंने उसे कई मैसेजेज़ भेजे थे, आखिर के कुछ मैसेज उसने अभी तक नहीं देखे थे, मतलब उनपर ब्लू टिक नहीं लगा था. रात ढल चुकी थी, लेकिन पौ फटने में अभी वक्त था.

क्या कल्पनाओं या फंतासी की भी कोई सही या गलत दिशा होती है?

मैं एकदम देसी, मुस्लिम परिवार में पली-बढ़ी, नई-नई क्वियर हूं, और अब अमेरिका की एक यूनिवर्सिटी में सेक्स पर शोध करती हूं. और ‘सहमति (कंसेंशुअल)’ बिना सहमति (नॉन-कंसेंशुअल) और ‘एक ही बार विवाह करने की प्रथा (मोनोगैमी) जैसे शब्दों तक मेरी भी पहुंच है. मेरे पास विशेषाधिकार है कि मैं अपनी ‘खतरनाक’ यौन इच्छाओं के बारे में लिख सकूं.

माता पिता का नियंत्रण_फास्ट फूड

क्या बगावत का मज़ा तभी है, जब कोई नियम तोड़ने के लिए हो?

अरूपे कैंटीन में एसिडिटी बढ़ाने वाले ज़िंगर बर्गर और तरह-तरह के रंग-बिरंगे पैकेज्ड फूड मिलते हैं, जो दौड़ते-भागते कॉलेज स्टुडेंट्स की भूख को मिटाने का काम करते हैं. मैं अपने स्वास्थ्य को लेकर थोड़ा-बहुत सजग रहने की कोशिश करती हूं, खासकर तब जब कोई मुझे देख रहा हो.

मिथक या देवी के बीच: फूलन देवी

मुझे उस फूलन के दर्शन होने शुरू हुए जो शेखर कपूर की फिल्म बैंडिट क्वीन की फूलन से भिन्न थीं. फिल्म फूलन के जीवन में दर्द और हिंसा के चरम को प्रदर्शित करती है. फिल्म के अंत तक आते-आते फूलन एक वीरांगना के रूप में नज़र आने लगती हैं. उसके बाद के जीवन से दर्शक का संबंध वहीं खत्म हो जाता है. लेकिन फूलन देवी का जीवन उस फ़िल्म में दिखाई गई छवियों से कहीं ज्यादा बड़ा है.

“अगर धरती पर कहीं चरस है, तो वह यहीं है, यहीं है, यहीं है”

अगस्त 18, 2023 के इंडियन एक्सप्रेस अखबार के फ्रंट पेज पर प्रकाशित खबर के अनुसार कश्मीर में हर 12 मिनट पर नशे की लत की वजह से एक युवा ओपीडी में पहुंचता है. ये बात इतनी सामान्य हो गई है कि आमतौर पर ‘युवा’ और ‘लत’ शब्द एक दूसरे के पर्याय बन गए हैं. युवाओं के झुंड अगर झील के किनारे घूम रहे हों तो उन्हें पुरानी यादों में लौटते या तफरी करते हुए नहीं देखा जाता, बल्कि लोगों की निगाहें उन्हें गहन संदेह और चिंता के साथ देखती हैं.

दो दुनियाओं के बीच

मैं समझती हूं कि व्यावसायिक यौन शोषण से बाहर निकलने में महिलाओं की मदद की जानी चाहिए. व्यवसायिक यौन शोषण से बाहर निकलना संभव है. अगर हम एक ऐसे समाज का निर्माण करना चाहते हैं जो अपनी औरतों की परवाह करता है, तो व्यावसायिक यौन शोषण को सामान्य नहीं माना जा सकता और न ही ऐसी गतिविधियों को जारी रहने दिया जा सकता है.

“किस बच्चे ने कास्ट सर्टिफिकेट अभी तक जमा नहीं कराया है.”

सरोजनी नगर, महानगर दिल्ली के दक्षिण में बसा एक इलाका है. पूरी दिल्ली में यह इलाका किफायती दामों पर मिलने वाले फैशनेबल कपड़ों के लिए मशहूर है. इसके आसपास सफ़दरजंग, साउथ एक्स जैसे महंगे रिहाइशी इलाके हैं. मेरा जन्म यहां से कुछ किलोमीटर दूर पुरानी दिल्ली में हुआ था. मैं बहुत छोटी थी जब मेरे माता-पिता ने पुरानी दिल्ली को छोड़ यहां बसने का फैसला किया था.

एक हिंदी ग्राफिक उपन्यास शिक्षा के बारे में हमारी समझ कैसे बदल रहा है

बिक्सू, हिंदी का सर्वाधिक चर्चित ग्राफिक नॉवेल है. कहानी में बारह साल का लड़का विकास कुमार विद्यार्थी जिसे प्यार से सभी बिक्सू पुकारते हैं, अपने घर से दूर एक मिशनरी बोर्डिंग स्कूल में भेज दिया गया है. एक तरफ पीछे छूटे घर, गांव और परिवार की याद है तो दूसरी तरफ नई दुनिया, दोस्त और बोर्डिंग स्कूल के विचित्र अनुभव.

एक ट्रांसजेंडर शिक्षक के शिक्षा के अनुभव

डॉ. राजर्षि चक्रवर्ती बर्द्धमान विश्वविद्यालय में इतिहास विषय पढ़ाते हैं और बतौर सहायक प्रोफेसर कार्यरत हैं. इतिहास के एक शिक्षक के रूप में उनकी यात्रा 1999 से शुरू होती है जब उन्होंने कलकत्ता के तिलजला ब्रजनाथ विद्यापीठ में पहली बार पढ़ाना शुरू किया था. राजर्षी 1997 से एलजीबीटीक्यूआई+(LGBTQIA+) आंदोलनों से भी जुड़े हैं.

“हमें अपने शरीर को देखकर शर्म आती थी, इसलिए हम खुद को और अपनी देह को पसंद नहीं करते थे”

लेखिका, रंगकर्मी और दलित एक्टिविस्ट दू सरस्‍वती की निगाह में समुदाय और व्‍यक्ति एक दूसरे से आपस में जुड़े हुए हैं. उनका रंगकर्म और कविकर्म व्‍यक्ति के निर्माण को ऐतिहासिक, राजनीतिक और सांस्‍कृतिक ताकतों की संयुक्‍त उपज मानता है.

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