पिछले एक साल में द थर्ड आई टीम ने उत्तर-प्रदेश के बांदा, ललितपुर और लखनऊ से जुड़ी 12 केसवर्करों के साथ मिलकर लेखन, थियेटर एवं कला आधारित शिक्षाशास्त्र (पेडागॉजी) पर काम किया. इस गहन प्रक्रिया से कुछ शब्द निकले और उनपर चर्चा करते-करते हिंसा की शब्दावली ने जन्म लिया. यह शब्दावली केसवर्करों द्वारा तैयार की गई है और यह उनके काम, अनुभव और ज़िंदगी के प्रति उनकी समझ और ज्ञान को समेटे हुए है.
समझौता क्या है? यह विवादों के निपटाने के लिए एक ऐसा निर्णय है जिससे कि भविष्य में सभी कार्य सुचारु रूप से चलते रहें. मेरी सोच में समझौते कभी सफल होते हैं, तो कभी असफल रह जाते हैं. जो महिलाएं भावुकता में निर्णय लेकर समझौता करती हैं, वे सुचारु रूप से नहीं रह पाती हैं. जो मन-दिमाग, विवेक से समझौता करती हैं वे समझौते कुछ हद तक सफल होते हैं. उन निर्णयों में हमें पछतावा नहीं होता.
हमारी संस्था के कुछ उसूल हैं कि कुछ मुद्दों में हम समझौता नहीं कराते. बलात्कार, दहेज हत्या या हत्या आदि जैसे गंभीर अपराधों में हम समझौता नहीं कराते हैं – मारपीट, लड़ाई-झगड़ा, बच्चों के साथ महिला को घर से निकाल देना, दहेज के लिए परेशान करना – इन मुद्दों में अगर हमारे पास केस आता है तो हम महिला के निर्णय अनुसार इकरारनामा कराते हैं.
काम के दौरान मैंने यह अनुभव किया कि महिलाएं ही ज़्यादातर समझौता करती हैं, चाहे उनकी गलती हो या न हो क्योंकि अगर वो पीहर में हैं तो पिता की इज़्ज़त और ससुराल में हैं तो पति की इज़्ज़त का सवाल होता है.
जब कोई लड़की परेशान होती है या उसके बच्चों को परेशान किया जाता है तो पहले वो अपने आप में ही समझौता करती रहती है, ‘चलो आज नहीं तो कल सुधर जाएगा’. इसके बावजूद जब लड़के या मर्द नहीं सुधरते तब वह भावुक होकर निर्णय लेती है, ‘बस, अब बहुत हो गया, अब मुझे ससुराल में नहीं रहना, अब मैं अपने पीहर जाउंगी वहां रहकर मज़दूरी करके अपने बच्चों का पालन-पोषण करूंगी.’ उसके बाद वह अपने माता-पिता को फोन करती है. पीहर वाले हमारे पास आते हैं और अपनी बेटी की समस्या बताते हैं. वे कहते हैं, “या तो ससुराल वाले हमारी बेटी को मार डालेंगे या हमारी बेटी आत्महत्या कर लेगी.” ऐसी स्थिति में हम मायकेवालों को यही सलाह देते हैं, “आप जाकर बेटी को लिवा लाएं.” अगर, इसमें वे हमारा साथ चाहते हैं कि हम भी साथ चलें, तो हम पुलिस के सहयोग से लड़की को ससुराल से निकाल लाते हैं.
उसके बाद हम उनकी काउंसलिंग करते हैं. लड़की कुछ दिन तक तो पीहर में रहती है और परिवार समाज व रिश्तेदारों के ताने सुनते हुए भी ससुराल से ज़्यादा काम करती है. बावजूद इसके उसके साथ पीहर में क्या होता है? ससुराल-मायके आना-जाना भी अपने में खतरे से खाली नहीं होता. कितनी बार एक औरत को अपने पीहर में भी वो सब झेलना पड़ता है, जिस वजह से वो ससुराल से भागकर आई होती है. मजबूरन, न चाहते हुए भी उसे समझौता करना पड़ता है.
एक केस है रुक्मिणी नाम की लड़की का, जिसकी शादी हरपालपुर में हुई थी. उसके तीन बेटे हैं. एक बच्चा सात माह का पेट में था. एक दिन उसके पति और सास ने उसे बहुत मारा. दो दिनों तक खाना नहीं दिया. गांव के एक व्यक्ति ने उसके पिता को फोन कर इस बात की जानकारी दी. जब पिता उसे लेने उसके ससुराल गए तो पिता को भी गाली-गलौच और मार-पीट कर भगा दिया. पिता रोते हुए थाने गए वहां भी उनकी सुनवाई नहीं हुई. निराश होकर वे अपने गांव वापस लौट आए. एक दिन वे एक पेड़ के नीचे बैठे सोच रहे थे, ‘क्या करूं? कैसे बेटी को ससुराल से निकालूं?’ संयोग से उस गांव की आंगनवाड़ी (से जुड़ी महिला) और आशा बहू उसी रास्ते से गुज़र रही थीं. उन्होंने पिता से जानना चाहा कि वे ऐसे क्यों बैठे हैं? पिता ने अपनी लड़की की समस्या उन्हें बताई. उन दोनों महिलाओं ने उन्हें मेरा फोन नंबर दिया और कहा, “आप इनसे बात करो, आपकी समस्या का समाधान हो जाएगा और लड़की को भी ये लोग ससुराल से निकलवा देंगी.”
पिता ने हमें फोन किया, हम तुरंत हरपालपुर थाने गए. पिता से भी कहा, “आप भी थाने पहुंचें.” थाने पहुंचकर थाना अध्यक्ष महोदय को समस्या बताई. उन्होंने कहा, “मैडम आप बैठें. हम लड़की को लेकर आते है.” थाना अध्यक्ष महिला पुलिस व पिता को लेकर लड़की के ससुराल गए और लड़की को वहां से लिवा लाए.
लड़की बहुत बुरी स्थिति में थी. शरीर पर चोटें थीं. भूख के कारण वो बात नहीं कर पा रही थी. इसके बावजूद वह रिपोर्ट नहीं लिखवाना चाह रही थी.
फिर, मैंने उसे तीन बच्चों के साथ उसके मायके छोड़ा. अब क्या था? अब आगे कैसे रहना है?
कुछ दिन रुक्मिणी मायके में अच्छे से रही. उसकी मां नहीं हैं, सिर्फ पिता हैं. भाई, गांव से बाहर मज़दूरी करता है. रुक्मिणी भी मज़दूरी करती और अपने बच्चों को पालती. इस बीच बाप ने उसकी मजबूरी का फायदा उठाया और उसका यौन शोषण करने लगा. अब, रुक्मिणी के ऊपर क्या बीत रही होगी? इस स्थिति में वह क्या कर सकती है? घर-परिवार की इज़्ज़त के कारण किसी को बता भी नहीं सकती. अंदर ही अंदर घुटती रहती. वो बच्चों के साथ अलग रहना चाहती थी, पर बाप उसे अलग नहीं रहने देता. जब मैं उससे बात करती तो सहमी-सहमी होकर बात करती. मुझे लगा कि वह परेशान है, पर क्यों? मुझे इसके घर जाना चाहिए. फिर मैं उसके घर गई. तब उसने बताया, “दीदी मेरा समझौता करा दीजिए. मैं ससुराल जाना चाहती हूं.” जब मैंने उससे कारण पूछा तब उसने और उसके 10 वर्ष के बेटे ने जो कारण बताया उसे सुनकर मैं सहम गई.
मैंने, रुक्मिणी की काउंसलिंग की और उसके सामने दो-तीन प्रस्ताव रखे. वह पिता का घर छोड़ अलग रहने को तैयार हो गई. बात यही हुई कि वो पास के कस्बे कर्वी में कमरा लेकर रहेगी और अलग रहकर मज़दूरी करेगी. साथ ही संस्था भी कुछ सहयोग करेगी. ये सब बातें करने के बाद मैं वापस आ ही रही थी कि उसके पति का फोन आ गया. फोन पर उसने कहा, “दीदी मुझसे गलती हो गई. अब मैं मारपीट नहीं करूंगा. मेरा समझौता करवा दीजिए. जो उसकी शर्तें होंगी, मैं मानने को तैयार हूं.” उसने अपनी पत्नी से भी बात की. माफी मांगी और कहा कि घर चलो. रुक्मिणी भी सहमत हो गई और बोली, “दीदी, मेरा समझौता करा दीजिए, मैं ससुराल जाना चाहती हूं.”
अब इस स्थिति में समझ नहीं आ रहा था कि क्या करूं? अगर समझौता कराती हूं तो कहीं फिर वही स्थिति ना आ जाए. फिर, हम लोगों ने सोचा और रुक्मिणी से बात की. निर्णय अनुसार समझौते की एक तारीख तय कर दोनों को बता दिया, “इस तारीख को आप दोनों को ऑफिस आना है.” जो तारीख हमने तय की थी उस तारीख में जब हमने रुक्मिणी के घर फोन किया तब पता चला कि पति पहले ही उसे और बच्चों को लिवा कर ले गया है. जब मैंने रुक्मिणी को फोन किया तो उसने बताया, “मेरा पति पैर छू रहा था. गलती मान रहा था, तो मैं चली आई. मैंने जब उससे कहा, ‘हम दोनों को ऑफिस जाना है.’ तो उसने कहा, ‘बाद में ऑफिस चलेंगे. जब हम अच्छे से सेट हो जाएंगे, तब दीदी के ऑफिस चलेंगे’.”
एक हफ्ते बाद दोनों लोग बच्चों सहित ऑफिस मिलने आए. उन्हें देखकर लग ही नहीं रहा था कि इनके साथ कोई घटना हुई है. रुक्मिणी ने अपने पिता की बात पति को नहीं बताई थी. उसके वापस लौटने के बाद जब भी पिता त्योहार में उसे लेने जाता, वह मायके जाने से मना कर देती. उसके मना करने पर पति को लगने लगा कि आखिर यह मायके जाने से क्यों मना करती है? एक दिन उनके छोटे लड़के ने पिता को बता दिया कि मां, नाना के यहां जाने को क्यों मना करती है. ये जानने के बाद पति ने फिर से बच्चों के साथ रुक्मिणी को घर से निकाल दिया. यह कहकर, “तुम मेरे लायक नहीं हो.”
अब वह अलग रहकर, मज़दूरी करके अपना और बच्चों का पालन-पोषण कर रही है और खुश है.
पर, ऐसी स्थिति में महिलाएं कहां जाएं? आत्महत्या करें या यौन शोषण और मानसिक शोषण का शिकार हों?