केसवर्कर्स कलेक्टिव के लेख

पिछले एक साल में द थर्ड आई टीम ने उत्तर-प्रदेश के बांदा, ललितपुर और लखनऊ से जुड़ी 12 केसवर्करों के साथ मिलकर लेखन, थियेटर एवं कला आधारित शिक्षाशास्त्र (पेडागॉजी) पर काम किया. इस गहन प्रक्रिया से कुछ शब्द निकले और उनपर चर्चा करते-करते हिंसा की शब्दावली ने जन्म लिया. यह शब्दावली केसवर्करों द्वारा तैयार की गई है और यह उनके काम, अनुभव और ज़िंदगी के प्रति उनकी समझ और ज्ञान को समेटे हुए है.

“वो मेरी बेटी है और मुझे उसे अकेले पालने में कोई दिक्कत नहीं है”

जेंडर आधारित हिंसा से जुड़े केस पर काम करते हुए एक केसवर्कर महसूस करती है कि कैसे हमारा जीवन उन छोटे-बड़े समझौतों से घिरा होता है जो हमें रोज़मर्रा की ज़िंदगी में करने पड़ते हैं. खासकर तब जब यह समझौते पारिवारिक विवादों और घर के भीतर सत्ता के समीकरणों की वजह से करने पड़ते हैं?

बिना शर्तों का कॉन्ट्रैक्ट – निकाहनामा

शादी या निकाह खुशी का वह मौका होता है जब लड़का और लड़की के साथ-साथ दोनों के परिवार भी एक नए रिश्ते में बंधते हैं. शादी, संस्कार होने के साथ-साथ एक समझौता भी है. कुछ समझौते कागज़ पर किए जाते हैं तो कुछ को रीति-रिवाजों का जामा पहना कर अदृश्य तरीके से लड़कियों के गले में डाल दिया जाता है.

आप क्या चाहते हैं – समझौता या न्याय?

जब सौदे की बात आती है, तब दिमाग में अनगिनत महिलाओं की मौतें आ जाती हैं. क्योंकि समाज औरत के ज़िंदा होते हुए दहेज के नाम पर और उसके मरने पर लाश का सौदा करता है. महिला मरी नहीं कि गांव प्रधान, थाना, ससुराल वाले सभी के दिमाग में यही ख्याल आता है कि अब जो हो गया, वह हो गया, मामले को यहीं रफा-दफा करते हैं और बोली लगाते हैं.

हिंसा, श्रम और समझौता

किसी महिला की ज़रूरतों को केंद्र में रखते हुए उसकी काउंसलिंग करने का क्या मतलब होता है? निर्णय लेते समय महिला के सामने अनेक सामाजिक पहलू खड़े हो जाते हैं जिनमें वह फंसती है और निकलती भी है. कई सवाल सामने होते हैं. जैसे, ससुराल छूटा तो कहां रहूंगी? क्या करूंगी?

‘हम सिर्फ़ ससुराल वापस जाने का कोम्प्रोमाईज़ नहीं करवाते हैं.’

समझौता और इकरारनामा ये दो शब्द जेंडर आधारित हिंसा से जुड़ी शब्दावली में महत्त्वपूर्ण हैं. इकरारनामा का मतलब कोर्ट-कचहरी, थाना-पुलिस, पंचायत या मध्यस्थता केंद्रों द्वारा करवाए जाने वाले समझौतों से बहुत अलग है.

“वहां देखो, ज़िंदा होने पर एक बेटी के शरीर का सौदा, अब मरने के बाद एक लाश का सौदा! वाह रे समाज क्या खूब है…”

अपने आसपास की तमाम खबरों पर अगर नज़र दौड़ाएं तो किसी महिला की मौत का सौदा कितनी आम बात है. इस तरह के सौदे हमारे निजी रिश्तों की क्षणभंगुरता और उसके भुरभुरेपन पर पड़े पर्दे को उघाड़ कर रख देते हैं.

Skip to content