राजस्थान के जोधपुर ज़िले में, एक छोटे से कस्बे में एक शाम विकास अपने खत्री हॉस्टल से निकलकर ओसवाल हॉस्टल की तरफ बढ़ा जा रहा था. ओसवाल हॉस्टल के पास जियो का नया टावर लगा है जहां इंटरनेट की स्पीड बहुत तेज़ होती है. विकास वहां फ़िल्में डाउनलोड करने जा रहा है. समानांतर उसके दिमाग में कुछ सवाल भी डाउनलोड हो रहे हैं. जैसे, किस तरह जेंडर, जाति और वर्ग से तय होता है कि किसे क्या सुविधाएं मिलेंगी? लड़की है तो वो हॉस्टल में रहकर नहीं पढ़ सकती. खत्री लड़का, खत्रियों के हॉस्टल में रहेगा जहां उसे जाति आधारित बहुत सारी सुविधाएं भी मिलेंगी लेकिन वहीं किसी नीची समझी जाने वाली जाति के लड़के के लिए ये सुविधाएं नहीं है, क्यों? विकास जानता है कि ये बंटवारा सिर्फ़ ज़मीन पर नहीं है बल्कि ऑनलाइन की दुनिया तक किसकी पहुंच है ये भी जाति, वर्ग और जेंडर से ही तय होता है. सुनिए विकास की डायरी के कुछ पन्ने, खुद उसकी ज़ुबानी.
भारत के ग्रामीण इलाकों से निकले, शिक्षा के अनुभव और उनमें कल्पनाओं के पंख लगाए 10 कहानियों की यह ऑडियो शृंखला अब आपके सामने है. इस शृंखला की हर कहानी अपने आप में शिक्षा के अनुभवों और उन्हें देखने के नज़रिए से बिलकुल जुदा है. ये कहानियां सवाल करती हैं कि क्लासरूम के बाहर हम शिक्षा को कैसे देखते हैं? और उससे भी महत्त्वपूर्ण कि शिक्षा तक पहुंच किसकी है?
लेखक एवं प्रस्तोता – विकास खत्री
रेडियो प्रोड्यूसर – जुही जोतवानी
आवरण – सादिया सईद
अनुभवी परामर्शदाता – माधुरी आडवाणी
संगीत साभार – शबनम विरमानी
टाइटल गीत लेखक – अरूण गुप्ता
टाइटल संगीत गायन – वेदी
एपिसोड संगीत – शबनम विरमानी
साथ ही हम आह्वान प्रोजेक्ट के भी आभारी हैं जिन्होंने हमें अपने गीत “ना देख आंखों से” (लेखक – अरुण गुप्ता, संगीत – शबनम विरमानी) के शुरुआती बोल एवं उसके संगीत को ऑडियो कहानियों में इस्तेमाल करने की इजाज़त दी है.
हम चंबल मीडिया से जुड़ी लक्ष्मी और निरंतर संस्था से जुड़ी अनिता और प्रार्थना को भी तहे दिल से धन्यवाद कहना चाहते हैं जिन्होंने अपनी व्यस्तता के बावजूद कहानियों को सुनकर उनपर अपनी प्रतिक्रिया हमसे साझा की.
हफ्ते में दो दिन – सोमवार और बुधवार – को नई कहानी सुनने के लिए हमारे साथ जुड़े रहें.
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