फ से फ़ील्ड, श से शिक्षा: एपिसोड 3 अचूकी और उसकी मम्मी

अचूकी से तो आप मिल ही चुके हैं. हैरत की बात यह है कि उसके मारवाड़ी समुदाय के लोग हमेशा उसके पीछे पड़े रहते हैं. वे अक्सर उसकी मां के कम पढ़े-लिखे होने का मज़ाक बनाते हैं. अपने सपनों और इच्छाओं को पूरा करने की उसकी ज़िद के लिए वे अचूकी की भी टांग-खिंचाई करते रहते हैं. क्या अचूकी चुपचाप उनकी बातें यूं ही सुनती रहेगी या उन्हें करारा जवाब देगी? या फिर बीच का रास्ता अपना लेगी? जानने के लिए सुनिए अचूकी की कहानी, खुद उसकी ज़ुबानी.

भारत के ग्रामीण इलाकों से निकले, शिक्षा के अनुभव और उनमें कल्पनाओं के पंख लगाए 10 कहानियों की यह ऑडियो शृंखला अब आपके सामने है. इस शृंखला की हर कहानी अपने आप में शिक्षा के अनुभवों और उन्हें देखने के नज़रिए से बिलकुल जुदा है. ये कहानियां सवाल करती हैं कि क्लासरूम के बाहर हम शिक्षा को कैसे देखते हैं? और उससे भी महत्त्वपूर्ण कि शिक्षा तक पहुंच किसकी है?

लेखन और कथन– मनीषा चंदा

रेडियो प्रोडक्शन– माधुरी आडवाणी

आवरण – सादिया सईद

अनुभवी परामर्शदाता – माधुरी आडवाणी

संगीत साभार – शबनम विरमानी

टाइटल गीत लेखक – अरूण गुप्ता

टाइटल संगीत गायन – वेदी

एपिसोड संगीत – शबनम विरमानी

साथ ही हम आह्वान प्रोजेक्ट के भी आभारी हैं जिन्होंने हमें अपने गीत “ना देख आंखों से” (लेखक – अरुण गुप्ता, संगीत – शबनम विरमानी) के शुरुआती बोल एवं उसके संगीत को ऑडियो कहानियों में इस्तेमाल करने की इजाज़त दी है.

हम चंबल मीडिया से जुड़ी लक्ष्मी और निरंतर संस्था से जुड़ी अनिता और प्रार्थना को भी तहे दिल से धन्यवाद कहना चाहते हैं जिन्होंने अपनी व्यस्तता के बावजूद कहानियों को सुनकर उनपर अपनी प्रतिक्रिया हमसे साझा की.

हफ्ते में दो दिन – सोमवार और बुधवार – को नई कहानी सुनने के लिए हमारे साथ जुड़े रहें.

अपने शिक्षा के अनुभव साझा करने के लिए आप हमे हमारे ईमेल आईडी पर लिख सकते है : [email protected]

द थर्ड आई लर्निंग लैब, एक आर्ट्स बेस्ड पेडागॉजी यानी कला पर आधारित रचनात्मक शिक्षाशास्त्र एवं सह-निर्माण से जुड़ा मंच है जहां हम रचनात्मक एवं आलोचनात्मक दृष्टि से अपने अनुभवों और समझ को खोलने की कोशिश करते हैं. सीखने-सिखाने की हमारी इस प्रक्रिया के केंद्र में हैं हमारे – डिजिटल एजुकेटर्स – जो राजस्थान, उत्तर प्रदेश और झारखण्ड के रहने वाले हैं.

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