फिल्मी शहर एपिसोड 3: सिनेमा में समलैंगिकता

शहर और सिनेमा विषय पर फिल्म निर्देशक अविजित मुकुल किशोर के साथ ऑनलाइन मास्टरक्लास

सिनेमा में समलैंगिकता, भाग – 1 

सिनेमा में समलैंगिकता, भाग – 2

‘फिल्मी शहर’ ऑनलाइन मास्टरक्लास में हम अविजित मुकुल किशोर के साथ मिलकर सिनेमा की भाषा एवं उसके नज़रिए की पड़ताल करते हैं.

जेंडर की पहचान एवं उसकी अभिव्यक्ति को लेकर होने वाली बहसों में लगातार विस्तार इस बात का सूचक है कि इसे लेकर हमारे आसपास समझ बढ़ रही है.

इस मास्टरक्लास के दो भागों में – सिनेमा में समलैंगिकता – विषय पर बातचीत करते हुए फिल्म निर्देशक अविजित मुकुल किशोर ने सिनेमा की भाषा, सही एवं सम्मानजनक शब्दावलियों का अभाव, LGBTQI+ से जुड़े लोगों के संघर्ष एवं अपमान से पहचान की उनकी यात्रा को फिल्मी पर्दे पर उनकी प्रस्तुति के क्रम में देखने की कोशिश की है.

फिल्मों में समलैंगिकों का प्रतिनिधित्व अलग-अलग तरीकों से किया जाता रहा है. अक्सर मज़ाक या फूहड छवियों में ही दिखाया जाता है. शुरूआती दौर में जहां इन्हें किन्नर के रूप में दिखाने का चलन था तो उसके बाद हास्य के रूप में, फिर एक मानसिक बीमारी के रूप में और आजकल, समलैंगिक लोगों के जीवन की जटिलताओं को दिखाने का चलन है.

देखिए, फिल्मी शहर का यह एपिसोड जिसके ज़रिए हम सिनेमा में समलैंगिकता एवं हास्य से गंभीर, हाशिए से मुख्य किरादर तक की उनकी भूमिका की यात्रा एवं उसकी प्रस्तुति को समझने की कोशिश कर रहे हैं.

प्रस्तुतीकरण और शोध – अविजित मुकुल किशोर  
अपर शोध और संपादन – शिवम रस्तोगी  
कैमरा – निकिता सक्सेना और राहुल 
रचनात्मक निर्माता: शबानी हसनवालिया और शिवम रस्तोगी
स्क्रिप्ट इनपुट: सुमन परमार, शबानी हसनवालिया और दिप्ता भोग
अंग्रेज़ी सबटाइटल: जूही जोटवानी और सादिया सईद 
द थर्ड आई की पाठ्य सामग्री तैयार करने वाले लोगों के समूह में शिक्षाविद, डॉक्यूमेंटरी फ़िल्मकार, कहानीकार जैसे पेशेवर लोग हैं. इन्हें कहानियां लिखने, मौखिक इतिहास जमा करने और ग्रामीण तथा कमज़ोर तबक़ों के लिए संदर्भगत सीखने−सिखाने के तरीकों को विकसित करने का व्यापक अनुभव है.

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