फ़िल्म और मास्टरक्लास

हमारे बीच में

हमारे बीच में, दो महिलाओं के जीवन में जाति की रेखाओं को टटोलने और उसे पर्दे पर उभारने की यात्रा है. जाति पर फिल्म कैसे बनाते हैं? क्या है जो हम दिखा सकते हैं और क्या नहीं? गुस्सा, खीझ, अपमान जैसी भावनाओं को पर्दें पर कैसे दिखाया जाता है?

होने, न होने के बीच

सोशल मीडिया पर हम जैसे दिखाई देते हैं क्या असल में हम वही होते हैं? सोशल मीडिया पर क्या कितना दिखाना है कितना नहीं? क्या दिखाना है, क्या नहीं इससे हमारे खुद के बारे में क्या पता चलता है?

मेड इन बेलदा: रूमी, दीदी और उनका परिवार

युवा फ़िल्ममेकर रफीना खातून को उसके माता-पिता “आज़ाद पक्षी” कहते हैं. एक दिन ये आज़ाद पक्षी पलटकर अपने उस घोंसले की तरफ लौटती है जहां से उसने उड़ना सीखा था. वह उन सारी कहानियों को अपने कैमरे में कैद कर लेना चाहती है जिनकी नींव पर उसका घर रूपी घोंसला खड़ा है.

मेकिंग टेक्स्ट्बुक फेमिनिस्ट: किताबों को नारीवादी बनाने की ओर

2005, में निरंतर संस्था ने केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (सीबीएसई) के आग्रह पर बच्चों की पाठ्य- पुस्तिकाओं को ‘जेंडर संवेदनशील’ बनाने का काम किया था. निरंतर संस्था द्वारा तैयार की गई किताबें 15 साल से भारतीय स्कूलों में पढ़ाई जा रही हैं. इस साल 2022 में इनमें से जाति पर कुछ पाठ्यक्रमों को हटा दिया गया है.

सिटी गर्ल्स

उत्तर-प्रदेश के बांदा ज़िले से आई दो लड़कियां उमरा और कुलसुम, झोला उठाकर दिल्ली महानगर में ठसक से अपना रास्ता बनाती हुई चलती हैं. कैमरा उनके पीछे-पीछे चलता है. 28 मिनट की इस डॉक्यूमेंट्री फिल्म में वे सारी दकियानूसी बातें जो लड़कियों को अक्सर सुनने को मिलती हैं, कांच की तरह टूटकर गिरते हुए दिखाई देती हैं.

फिल्मी शहर एपिसोड 3: सिनेमा में समलैंगिकता

इस मास्टरक्लास के दो भागों में – सिनेमा में समलैंगिकता – विषय पर बातचीत करते हुए फिल्म निर्देशक अविजित मुकुल किशोर ने सिनेमा की भाषा, सही एवं सम्मानजनक शब्दावलियों का अभाव, LGBTQI+ से जुड़े लोगों के संघर्ष एवं अपमान से पहचान की उनकी यात्रा को फिल्मी पर्दे पर उनकी प्रस्तुति के क्रम में देखने की कोशिश की है.

सेक्स [वर्क] एंड द सिटी

कोलकाता, एक ऐसा शहर जिसके आधुनिक स्वरूप में उसका इतिहास गहरे समाहित है. कोलकाता शहर के आकार को बनाने में उसके स्थान, उसके बंदरगाहों के माध्यम से लड़े गए युद्धों, सीमाओं के पार से आने वाले प्रवासियों और निश्चित रूप से, ब्रिटिश उपनिवेशवाद एवं लगातार बदलती उनकी नैतिकता और उसके प्रभाव की अहम भूमिका है.

वापसी

साल 2020 में कोविड के दौरान देशभर में लगे लॉकडाउन की वजह से ज्योति अपने गांव सवाऊ मूलराज वापस लौटती हैं. उन्होंने गांव में रहते हुए वहां के परिदृश्य, लोगों औऱ घटनाओं को अपने कैमरे में कैद करना शुरू किया.

फिल्मी शहर एपिसोड 2: जाति और सिनेमा

फिल्मी शहर के दूसरे एपिसोड ‘जाति और सिनेमा’ में हम, सिनेमा के ज़रिए हमारे आसपास की दुनिया की पड़ताल कर रहे हैं. हमारी कोशिश है बड़े पर्दे की सुनहरी दुनिया की परतों को उघाड़कर ये देखना कि हमारा सिनेमा जाति के सवालों पर क्या और किस तरह की बात करता है?

फिल्मी शहर एपिसोड 1: छोटा शहर

‘फिल्मी शहर’ ऑनलाइन मास्टरक्लास में हम अविजित मुकुल किशोर के साथ मिलकर सिनेमा की भाषा एवं उसके नज़रिए की पड़ताल करेंगे. इस मास्टरक्लास के पहले एपिसोड का विषय है – छोटा शहर.

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