सिटी गर्ल्स

शहर को कंधे पर लेकर घूमती दो लड़कियों की कहानी कहती डॉक्यूमेंट्री फिल्म

उत्तर-प्रदेश के बांदा ज़िले से आई दो लड़कियां उमरा और कुलसुम, झोला उठाकर दिल्ली महानगर में ठसक से अपना रास्ता बनाती हुई चलती हैं. कैमरा उनके पीछे-पीछे चलता है. 28 मिनट की इस डॉक्यूमेंट्री फिल्म में वे सारी दकियानूसी बातें जो लड़कियों को अक्सर सुनने को मिलती हैं, कांच की तरह टूटकर गिरते हुए दिखाई देती हैं, जब दो लड़कियां दिल्ली शहर को अपने कंधे पर उठाकर घूमती हैं. जेंडर, माइग्रेशन, सुरक्षा जैसे सवालों से अधिक ये कहानी है कस्बे से आई दो लड़कियों के अनुभवों की. अपने दम पर अपना आशियाना बनाने की और शहर में दोस्तियां बनाने की.

फिल्म में कई सपने हैं, कुछ अरमान हैं, कुछ चाहतें हैं और उन सबसे ऊपर हासिल हुई आज़ादी को बचाए रखने की जद्दोजहद है. उमरा और कुलसुम के साथ ये फिल्म लड़कियों को सपने देखने की आज़ादी देती है.

सिटी गर्ल्स फिल्म अब तक कई फिल्म महोत्सवों में नाम और चर्चाएं बटोर चुकी है. इनमें से कुछ प्रमुख हैं – इंटरनेशनल डॉक्यूमेंट्री एंड शॉर्ट फिल्म फेस्टिवल, केरल (IDSFFK, प्रतियोगिता), 2021; इंडियन इंस्टीट्यूट फॉर ह्यूमन सेटलमेंट (IIHS) अर्बन लेंस फिल्म फेस्टिवल 2021; बियॉन्ड बॉर्डर्स, साउथ एशियन फेमिनिस्ट फिल्म फेस्टिवल 2021; डायलॉग्स: कलकत्ता इंटरनेशनल LGBTQIA फिल्म एंड वीडियो फेस्टिवल 2021; फिल्म साउथ एशिया (एफएसए) ’22; ओबीआर ट्रैवलिंग फिल्म फेस्टिवल 2022; तीसरा महिला अंतर्राष्ट्रीय फिल्म महोत्सव, केरल, 2022. इसके अलावा ‘सिटी गर्ल्स’ का चयन वन वर्ड मीडिया अवॉर्ड की लघु फिल्म श्रेणी में भी किया गया है.

निर्देशन, संपादन एवं छायांकन: प्रिया थुवस्सेरी

निर्माण: द थर्ड आई, निरंतर ट्रस्ट

अतिरिक्त छायांकन: निताशा कपाहि

ध्वनि संपादन और मिश्रण: नीतू मोहनदास

ध्वनि, संगीत एवं आवाज़: वेदी सिन्हा

द थर्ड आई की पाठ्य सामग्री तैयार करने वाले लोगों के समूह में शिक्षाविद, डॉक्यूमेंटरी फ़िल्मकार, कहानीकार जैसे पेशेवर लोग हैं. इन्हें कहानियां लिखने, मौखिक इतिहास जमा करने और ग्रामीण तथा कमज़ोर तबक़ों के लिए संदर्भगत सीखने−सिखाने के तरीकों को विकसित करने का व्यापक अनुभव है.

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