‘एक खोजी पत्रकार के लिए दिमाग से ज़्यादा पैरों की ज़रूरत होती है.’ एक प्रोफेसर द्वारा दी गई इस सीख को अपने काम में गांठ बांधकर रख लेने वाली नेहा का मानना है कि खोजी पत्रकारिता ज़मीन पर जाकर ही की जा सकती है. यही वजह है कि अशोका यूनिवर्सिटी के अपने छात्रों से लेकर तमाम उन स्टूडेंट्स के लिए जिनके भीतर पत्रकारिता की लौ जल रही है, उनकी एक ही सलाह है कि, “करो, एक विषय लो, फील्ड पर जाओ, और करो.”
नेहा दीक्षित राजनीति, जेंडर और सामाजिक न्याय से जुड़े विषयों पर काम करती हैं. 16 साल के पत्रकारिता करियर में उन्हें दर्जनों अवॉर्ड प्राप्त हो चुके हैं जिनमें अंतरराष्ट्रीय प्रेस स्वतंत्रता पुरस्कार 2019, अंतरराष्ट्रीय पत्रकारिता में कर्ट शॉर्क पुरस्कार (2014), लोरेंजी नटाली पुरस्कार (2011), उत्कृष्ट महिला पत्रकार के लिए चमेली देवी जैन पुरस्कार (2016) शामिल हैं. वर्तमान में वह अशोका यूनिवर्सिटी में मीडिया स्टडीज़ विभाग के साथ बतौर विज़िटिंग फैकल्टी जुड़ी हुई हैं.
अक्टूबर 2014 में आयोजित बाथ फिल्म फेस्टिवल के दौरान पहली बार एफ (F) रेटिंग की शुरुआत हुई. एफ (F) रेटिंग का मतलब उन फिल्मों से है जिसकी निर्देशक महिला हों, या फिल्म की लेखक महिला हों और अगर कोई महिला मुख्य किरदार की भूमिका में है तो फिर वह कहलाता है गोल्ड रेटिंग, मतलब ट्रिपल एफ (F)! दरअसल, एफ (F) रेटिंग की बुनियाद फिल्मों में और पूरी फिल्म उद्योग में महिलाओं के लिए बराबरी के दर्जे से है.
कल्पना कीजिए एक ऐसी दुनिया जहां नारीवादी नज़रिया सिर्फ फिल्मों में ही नहीं बल्कि सभी प्रथाओं में केंद्रीय भूमिका में हो? इस कल्पना को साकार करते हुए आज हम इस नारीवादी नज़रिए को पॉडकास्ट के बरास्ते आपके पास लेकर आए हैं. इस शो में आप मिलेंगे अलग-अलग क्षेत्रों में काम करने वाले अभ्यासकर्ताओं से और नारीवादी नज़र को केंद्र में रखते हुए द थर्ड आई टीम के साथ होंगी रोचक, शानदार, जानदार बातें.
कवर चित्र: तविशा सिंह