रियाज़

नारीवादी सोच एक बहुरंगी चश्मा है जो हमारे जीवन के भिन्न और उलझते तारों को देखने में मदद करता है. यहां हम अपनी सामूहिक, सामाजिक कोशिशों को साझा करते हैं. विरोधी स्वरों, अपनी आकार लेती पहचानों और रोज़मर्रा के बदलते मौसम, भावनाओं को खोलते हैं. तिल भर में भी दुनिया को जानने का ज्ञान है – इस नज़र से भी ज्ञान को समझते हैं.

स्कूल के नाम पत्र

प्रिय स्कूल तुम कैसे हो? इन दिनों जब हम स्कूल नहीं आ रहे हैं, क्या तुम अभी भी रोज़ खुल रहे हो? सुना है, आज-कल तुम राशन-घर बन गए हो, कुछ प्रवासी मज़दूर तुम्हारे कमरों में रह रहे हैं. उनका ख्याल रखना. समझना कि यही लोग हमारी कमियों को पूरा कर रहे हैं.

“हम लोगों से सिर्फ़ डेटा कलेक्ट करती हैं, उनके सवालों का जवाब हमारे पास नहीं होता.”

समुदाय और सरकार के बीच अपनी भूमिका निभाती आशा वर्कर की ज़िन्दगी में डर, असुरक्षा और आर्थिक तंगी स्थाई है. उनकी स्थिति में परिवर्तन स्वस्थ समाज के लक्ष्य को पाने की तरफ एक सकारात्मक कदम हो सकता है.

कोरोनाकाल में जो सरकार नहीं कर पाई, वो इन ग्रामीणों ने कर दिखाया.

पर्यावरण और विकास के वैकल्पिक मॉडलों के दस्तावेज़ीकरण पर दशकों से काम कर रहे सामाजिक कार्यकर्ता आशीष कोठारी द्वारा, उन समुदायों की जानकारी जिन्होंने महामारी से अपने को सुरक्षित रखा. आशीष कोठारी को हम एक पर्यावरणविद के रूप में जानते हैं. लेकिन एक पंक्ति के परिचय में उनके काम के विस्तार को नहीं समेटा जा सकता.

हेल्प प्लीज़!

“19 अप्रैल, रात 11 बजे फ़ेसबुक ग्रूप पर आए एक मेसेज पर मेरी नज़र रूकी. मैंने देखा वो मैसेज एक घंटे पहले लिखा गया था. रिक्वेस्ट लखनऊ से आ रही थी. उन्हें अपने एक करीबी के लिए अस्पताल में ऑक्सीजन बेड की ज़रूरत थी. उनका रिक्वेस्ट था ‘कोई भी जानकारी हो तो बताएं.’

लॉकडाउन में, हफ्ते के सात दिन किसने किया काम, कौन करता रहा आराम?

2020 दुनिया भर में सबके लिए एक ऐसा साल है जो भूलना मुमकिन नहीं होगा. मार्च 2020 में कोविड 19 के कहर से जूझने के लिए भारत में दुनिया का सबसे बड़ा लॉकडाउन लगाया गया. लॉकडाउन यानी शहरबंदी – भीतर और बाहर का फर्क ख़त्म सा हो गया.

दुकानदारी

मैंने एकदम से पीछे सड़क पर देखा, लाल और नीली बत्ती बजाती एक बड़ी जीप हमारी तरफ़ आ रही थी. लोगों में उथल-पुथल मच गई. शोर-शराबे के बीच भागते हुए सभी इधर-उधर बिखर गए.

प्रीतियां

प्रीतियां

इस कॉलम को अंकुर संस्था के साथ साझेदारी में शुरू किया गया है. अंकुर संस्था द्वारा बनाई जा रही विरासत, संस्कृति और ज्ञान की गढ़न से तैयार सामाग्री की है और इसी विरासत की कुछ झलकियां हम इस कॉलम के ज़रिए आपके सामने पेश कर रहे हैं.

कामकाजी महिलाएं

कामकाजी महिलाएं

जुबान ने, जो एक नारीवादी प्रकाशक है, ‘द पोस्टर वीमेन प्रोजेक्ट’ के अंतर्गत भारत के सभी राज्यों से महिला आंदोलनों के पोस्टर जमा किए. इन पोस्टरों में से ‘महिला और काम’ पर जमा हुए पोस्टर हमने सद्भावना ट्रस्ट की बेबाक लड़कियों को दिखाए.

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