रियाज़

नारीवादी सोच एक बहुरंगी चश्मा है जो हमारे जीवन के भिन्न और उलझते तारों को देखने में मदद करता है. यहां हम अपनी सामूहिक, सामाजिक कोशिशों को साझा करते हैं. विरोधी स्वरों, अपनी आकार लेती पहचानों और रोज़मर्रा के बदलते मौसम, भावनाओं को खोलते हैं. तिल भर में भी दुनिया को जानने का ज्ञान है – इस नज़र से भी ज्ञान को समझते हैं.

गुमसुम सी छत

मोहल्ले के तमाम घरों को जोड़ती छतें खुली और विशाल दिखाई देती हैं. ठीक उसके उलट हमारा अन्तर्मन कई तरह की घेरों में बंधा होता है. इसी बीच ज़िंदगियां चलती-बदलती रहती हैं. अंकुर संस्था से जुड़ी रौशनी की इस बयानी में छत किसी अंदर-बाहर की अदला-बदली को चरितार्थ करती हुई दिखाई देती है. कोविड का समय एवं मानसिक, आर्थिक और सामाजिक स्तर पर लोगों पर पड़े उसके प्रभावों को रौशनी बहुत ही सीधे शब्दों में सामने रख देती हैं.

शहर जैसे आग का दरिया

ये कहानी एक प्रेम कहानी है जिसमें तीन किरदार हैं – एक भाई, एक बहन और एक स्मार्टफोन. और एक की मौत हो जाती है. जिगर मुरादाबादी ने कहा है कि – ये इश्क़ नहीं आसां इतना ही समझ लीजे/एक आग का दरिया है और डूब कर जाना है… ये कहानी भी ऐसे ही एक दरिया की दास्तां हैं.

तोरणमाल के जंगल से आया एक प्रेमपत्र – 2

तोरणमाल के उत्तर में, मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र की सीमा पर, सिंदीदिगर गांव है. यह गांव तोरणमाल से 15 किलोमीटर की दूरी पर बसा है. यहां पहुंचने के लिए कई छोटे-बड़े घाटों को पार करना पड़ता है. इन्हीं दो राज्यों की सीमा से होते हुए एक छोटी सी नदी झलकर भी बहती है.

तोरणमाल के जंगल से आया एक प्रेमपत्र -1

महाराष्ट्र के नन्दुरबार ज़िले के पहाड़ी क्षेत्र में बसे जंगलों में घूमते हुए प्रकाश ने वहां के लोगों के साथ जिस जीवन को करीब से देखा और जिसे वहां के रहने वालों के साथ जिया उसे एक ख़ूबसूरत सी चिट्ठी में अपने शब्दों के ज़रिए हमारे सामने जीवंत कर रहे हैं.

शब्दों और रेखाओं के बीच दास्तान एक शहर की

‘नक्शा-ए-मन’ चित्रों के ज़रिए हमारे ‘ट्रैवल-लोग’ के सफ़रनामे को दर्शाने का प्रयास है. द थर्ड आई ट्रैवल फेलोशिप – ट्रैवल-लोग – में हमने अलग-अलग जगहों से चुने हुए 13 लेखकों एवं डिज़ाइनरों के साथ मिलकर काम किया ताकि वे नारीवादी नज़र से शहर की कल्पना को शब्द-चित्रों में सजीव कर सकें.

“मैं पागलपन की सर्वाइवर नहीं, मनोचिकित्सा की सर्वाइवर हूं.”

द थर्ड आई टीम ने मुलाक़ात की लेखक एवं शोधकर्ता जयश्री कलिथल से. जयश्री, भारत में मानसिक स्वास्थ्य पर खुलकर बात करने वाले शुरुआती कार्यकर्ताओं में से एक हैं जिन्होंने मानसिक तनाव एवं इससे जुड़ी परेशानियों के इर्द-गिर्द अपना कब्ज़ा जमा चुके मेडिकल मॉडल को अनुभवों एवं ज्ञान के स्तर पर चुनौती दी है.

“इस बात में कोई शक नहीं कि हमारे भोजन और हमारे स्वास्थ्य में सीधा संबंध है.”

डॉ. ललिता रेगी और रेगी जॉर्ज ने 1992 में ट्राइबल हेल्थ इनिशिएटिव की स्थापना की. एक कमरे में लगे सौ वॉट के बल्ब के साथ उन्होंने अपने सफ़र की शुरुआत की थी. आज ये एक कमरा, 35 बिस्तरों वाले बड़े से अस्पताल में बदल चुका है.

मज़दूरों के स्वास्थ्य के लिए मज़दूरों का अपना अस्पताल

जन स्वास्थ्य व्यवस्था सीरीज़ में द थर्ड आई के साथ बातचीत में डॉ. प्रियदर्श तुरे ने विकेन्द्रीकृत एवं कम्युनिटी द्वारा संचालित स्वास्थ्य मॉडल और उसकी प्रक्रिया पर विस्तार से चर्चा की.

डर

मैं उठते ही पलंग पर बैठ गई. बालों में रबड़बैंड लगाते हुए ज़मीन पर खड़ी हो गई. शाम के छह बज रहे थे. कान बंद होने के कारण बाहर से आती हुई आवाज़ें धीमी सुनाई दे रही थीं. नाक में कफ़ जमा होने की वजह से मुंह से सांस लेने पर गला एकदम सूख रहा था.

स्कूल के नाम पत्र

प्रिय स्कूल तुम कैसे हो? इन दिनों जब हम स्कूल नहीं आ रहे हैं, क्या तुम अभी भी रोज़ खुल रहे हो? सुना है, आज-कल तुम राशन-घर बन गए हो, कुछ प्रवासी मज़दूर तुम्हारे कमरों में रह रहे हैं. उनका ख्याल रखना. समझना कि यही लोग हमारी कमियों को पूरा कर रहे हैं.

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