एडु लोग

भोपाल की बस्तियों में शिक्षा की एक नई उम्मीद

दसवीं तक की पढ़ाई पूरी करते-करते सबा को तीन बार स्कूल छोड़ना पड़ा. क्योंकि घरवाले स्कूल फीस जमा करने की स्थिति में नहीं थे. किसी तरह प्राइवेट से दसवीं करने के बाद सबा ने ट्यूशन और डेलिगेट मदरसा में 300 रूपए प्रति माह तनख्वाह पर बच्चों को पढ़ाना शुरू किया.

“किस बच्चे ने कास्ट सर्टिफिकेट अभी तक जमा नहीं कराया है.”

सरोजनी नगर, महानगर दिल्ली के दक्षिण में बसा एक इलाका है. पूरी दिल्ली में यह इलाका किफायती दामों पर मिलने वाले फैशनेबल कपड़ों के लिए मशहूर है. इसके आसपास सफ़दरजंग, साउथ एक्स जैसे महंगे रिहाइशी इलाके हैं. मेरा जन्म यहां से कुछ किलोमीटर दूर पुरानी दिल्ली में हुआ था. मैं बहुत छोटी थी जब मेरे माता-पिता ने पुरानी दिल्ली को छोड़ यहां बसने का फैसला किया था.

सीखने-सिखाने में हमेशा डर क्यों शामिल होता है?

यह कहानी इस विचार का पुरज़ोर प्रतिरोध करती है कि डर के साथ ही सीखना संभव है. ये क्लास-रूम में बैठे उन शिक्षार्थियों की कहानी नहीं कह रही जो किसी नियम को नहीं मानते, बल्कि यह उस क्लास के एक कोने में चुपचाप बैठे उन अंतर्मुखी विद्यार्थियों की कहानी कहती है जो अकेले नहीं हैं.

हमारा हिसाब कौन देगा?

मैं एक आदिवासी गोंड समुदाय में पैदा हुई. मेरे मां-बाप की मैं पहली संतान हूं. वैसे तो मेरे घर में 6 सदस्य हैं. माता-पिता के अलावा हम तीन बहन और एक भाई है. मेरे पिताजी और मां दूसरों के खेतों में काम करते हैं.

लव, सेक्स और क्‍लासरूम

पढ़ाई के दौरान हमें पांच बार फोटोसिंथेसिस के बारे में पढ़ना पड़ा. छठी क्लास से ग्यारहवीं तक हर साल लगातार मैं उसकी परिभाषा भूल जाता था इसलिए मुझे फिर से रटना पड़ता था, बावजूद इसके कि फोटोसिंथेसिस का मतलब मैं अच्छे से समझता था. इसी तरह हर साल मुझे बार-बार सीखना पड़ता था कि मेरी क्‍लास के लड़के दूर से ही मेरी हकीकत सूंघ लेते थे.

चाह और फ़र्ज़ के बीच फैला नूर

वह 2006 का एक यादगार दिन था. रियाध में मेरे अब्बा के चचेरे भाई जुमे की नमाज़ के बाद घर आए हुए थे. अम्मी  ने उस दिन कोरमा बनाया था. दस्तरख्वान पर बैठकर हम सब ने कोरमा खाने के बाद कहवा पिया.

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