हम

जहां हम खोजते हैं सत्ता का हमसे, हमारी सोच, हमारे अस्तित्व, हमारी देह और आत्मीयता से क्या रिश्ता है. हम जो अपने अंदर असीम अभिलाषाएं, आकांक्षाएं समेटे हुए हैं. हमारे भीतर कुछ चाहतें भी हैं, कुछ छोटेमोटे विरोध भी हैं. हम जिनमें मुहब्बतों की ख्वाहिशें भी हैं और हिंसा की संभावनाएं भी. हम जिसके ज़रिए राष्ट्र अपनी अलग पहचान बनाने की कोशिश करता है. हमारा यह तन और मन हमारी बनती बिगड़ती पहचानों का महल है और यादों का मकबरा भी. आए दिन इसमें कला और खूबसूरती की रासलीला भी खेली जाती है.

मेरी मां के हाथ

शिवम को इंस्टाग्राम पर 16 mm फ़िल्टर मिला जिसे इस्तेमाल करके उन्होने अपनी मां के काम करते छोटे-छोटे वीडियो बनाने शुरू किए, खासकर उनके हाथों के. “मेरी मां हमेशा से ही ऑफिस जा रही हैं. लॉकडाउन पहला ऐसा मौका था जब वे लगातार हमारे साथ थीं.”

नौ लंबे महीने

नौ लंबे महीने

क्या एक महिला की कोख अपने घर परिवार को आगे बढ़ाने के अलावा कोई और भूमिका निभा सकती है? क्या उसकी कोख उसकी आजीविका का माध्यम भी बन सकती है?

मलिन भूमि

द थर्ड आई कवियों और कलाकारों के साथ एक नई शृंखला पेश करने जा रही है जिसमें वे एक−दूसरे के संसार की व्याख्या करेंगे.