
विरोध प्रदर्शन के बाद पोस्टर जाते कहां हैं?
नारीवादी कल्पना, एक्टिविज़्म के काम और कैसे पोस्टरों का संग्रह आंदोलनों का इतिहास बयान करता है, इस सब पर उर्वशी बुटालिया से बातचीत.
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जहां हम खोजते हैं सत्ता का हमसे, हमारी सोच, हमारे अस्तित्व, हमारी देह और आत्मीयता से क्या रिश्ता है. हम – जो अपने अंदर असीम अभिलाषाएं, आकांक्षाएं समेटे हुए हैं. हमारे भीतर कुछ चाहतें भी हैं, कुछ छोटे–मोटे विरोध भी हैं. हम – जिनमें मुहब्बतों की ख्वाहिशें भी हैं और हिंसा की संभावनाएं भी. हम – जिसके ज़रिए राष्ट्र अपनी अलग पहचान बनाने की कोशिश करता है. हमारा यह तन और मन हमारी बनती बिगड़ती पहचानों का महल है और यादों का मकबरा भी. आए दिन इसमें कला और खूबसूरती की रासलीला भी खेली जाती है.

नारीवादी कल्पना, एक्टिविज़्म के काम और कैसे पोस्टरों का संग्रह आंदोलनों का इतिहास बयान करता है, इस सब पर उर्वशी बुटालिया से बातचीत.

क्या एक महिला की कोख अपने घर परिवार को आगे बढ़ाने के अलावा कोई और भूमिका निभा सकती है? क्या उसकी कोख उसकी आजीविका का माध्यम भी बन सकती है?

द थर्ड आई कवियों और कलाकारों के साथ एक नई शृंखला पेश करने जा रही है जिसमें वे एक−दूसरे के संसार की व्याख्या करेंगे.