अचल, द थर्ड आई शहर संस्करण के ट्रैवल फेलो प्रोग्राम का हिस्सा हैं. द थर्ड आई ट्रैवल प्रोग्राम हमने भारत के विभिन्न इलाकों से चुने हुए 13 अलग-अलग शहरों से जुड़े लेखकों एवं कलाकारों के साथ किया जिन्होंने नारीवादी नज़रिए से शहर के विचार की कल्पना की है.
वड़ोदरा, गुजरात में पढ़ाई कर रहे ट्रैवल फेलो अचल, चित्रों और शब्दों के ज़रिए शहर के किस्सों को कागज़ पर उतारते हैं. तीन हिस्सों में बंटा यह कॉमिक्स सीरीज़ एक क्वियर की नज़र से शहर को देखने का प्रयास है.
मैं हर जगह क्वियर की पहचान के साथ कैसे रहता हूं? क्या मैं घर के भीतर क्वियर हूं? मैं कॉलेज में क्वियर कैसे हो जाता हूं? क्या मैं सड़कों पर चलते हुए क्वियर होता हूं? वो कौन सी जगह है जहां मैं अपने सबसे आत्म व्यवहार में क्वियर होता हूं? उफ़्फ़, मैं कितने किरदार निभाता हूं. वैसे, किराए के इस फ्लैट में जहां मैं अकेला रहता हूं वहां मैं सबसे ज़्यादा आज़ाद और खुद में होने जैसा महसूस करता हूं. किरदार निभाने की शुरुआत मेरे माता-पिता के उस घर के कमरे से होती है जो मैं अपनी दादी के साथ शेयर करता हूं. कमरे का आधा हिस्सा- जहां मेरी किताबें, मेरी कुर्सी और टेबल, मेरी पेंटिंग्स और भी बहुत कुछ रखा है – वो क्वियर है, और इसका दूसरा आधा हिस्सा जहां मेरी दादी की चीज़ें रखी हैं वो नॉन-क्वियर है.
कितनी सहजता से मेरी दादी बिना स्पष्ट किए मेरे दोस्त के जेंडर के बारे में सोच लेती हैं. वैसे, उनके लिए ये ठीक भी है, शायद तब तक जब तक मैं उन्हें आगे बढ़कर बताता नहीं हूं.
कॉलेज में एक ऐसी जगह होती है जहां मुझे सबसे ज़्यादा औरों की तरह दिखना होता है – पुरुषों का शौचालय. यहां न सिर्फ मज़बूत दिखना ज़रूरी है बल्कि बहुत ही मर्दाना और छिछोरा भी दिखना आवश्यक है. शौचालय के अलावा भी मुझे कॉलेज में मर्दों की तरह बैठना, चलना, बोलना और अपने को व्यक्त करना चाहिए. नहीं तो मुझे गांडू या गुड़ जैसे शब्दों से नवाज़ा जाएगा.
सार्वजनिक जगहों पर क्वियर होने की पहचान के साथ अकेले होना कभी-कभी बहुत डरावना होता है. लोग हमारे कपड़े, चलने का ढंग जैसी चीज़ों के आधार पर हम पर शक करने लगते हैं. पर, ठीक उसी जगह पर अगर ज़्यादा लोग एक दूसरे के साथ खुला महसूस कर रहे हों तो वो बहुत ही सुरक्षित जगह बन जाती है.
कभी-कभी ऐसा भी होता है कि मैं डेट पर जाता हूं. शायद यही वो पल होते हैं जब किसी सार्वजनिक जगह पर मैं अपनी पहचान के साथ सबसे ज़्यादा मुखर होता हूं.
घर पर मेरे माता-पिता को मेरे बारे में पता है. इसलिए जब मेरी दादी घर पर नहीं होती हैं तो मेरा घर पूरी तरह क्वियर होम होता है. और अगर मेरा ब्वॉयफ्रेंड मुझसे मिलने आ जाए तो फ़िर मेरा घर सबसे ज़्यादा क्वियर होम बन जाता है.
ये बातें सुन शालिनी को बहुत गुस्सा आता है.
जब भी वो मेरे घर आता है या मैं उससे मिलने जाता हूं, हर बार हम एक दूसरे के साथ शहर की गलियों के बारे में थोड़ा और जानते हैं. जैसे, रात के अंधेरे में शहर ही सड़कों पर एक दूसरे के हाथों में हाथ डाले भीड़ में एक-दूसरे के नज़दीक होने के अहसास से भर जाना, कभी उंगलियों से छू देना तो कभी पीठ पर थपकी दे देना, लोगों के बीच आंख के इशारे से अपनी बातें कह देना तो नुक्कड़ पर खड़े होकर एक ही प्याले से चाय पीना, साथ मिलकर नर्सरी में अपनी पसंद के पौधे खरीदना, शहर की अलग-अलग जगहों को थोड़ा नज़दीक से जानना, कैफ़े जाना, पुस्तक मेला जाना और बहुत कुछ करना… इन सारी जगहों पर छुपछुप कर प्यार करना, एक दूसरे के साथ होना, मन को कई तरह की तरंगों से भर देता है.
लेकिन, कब तक?