रहबर संग रचना

कैसे मैंने भरतनाट्यम से दुबारा प्यार करना सीखा

मैं दर्द और थकन से चूर, छात्रावास के अपने झक्क-सफ़ेद कमरे में आती हूं. मैं देखती हूं कि मेरी रूममेट अपने घुटनों की मालिश कर रही है. मैं उस तेल की सुस्त गंध में राहत ढूंढने की कोशिश करती हूं. अगली सुबह डांस प्रैक्टिस के लिए फिर जाना है. सुबह 5 बजे का अलार्म सेट करते हुए मेरी अंतरात्मा कराह उठती है.

मेरी मां का रिपोर्ट कार्ड

पिछले साल की बात है. मैं, हर वक्त कोशिश करती रहती कि मां को बिठाकर तसल्ली से उनसे बात कर सकूं. लेकिन, घर के कामों में वो इस तरह उलझी रहतीं कि फ़ुर्सत से बैठ कर बात भी नहीं कर पातीं.

उपस्थिति दर्ज करने की ज़िद

किसान मां और पुलिस में नौकरी करने वाले पिता की बेटी, सेजल राठवा, पत्रकार बनने वाली अपने समुदाय की पहली लड़की है. छोटा उदयपुर की रहने वाली सेजल ने बतौर ब्रॉडकास्ट जर्नलिस्ट, वडोदरा, गुजरात के वीएनएम टीवी के साथ पत्रकारिता के करियर की शुरुआत की.

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विशेष फीचर: जाति कहां है?

मुम्बई, महाराष्ट्र के रहने वाले रोहन के लिए अपने सरनेम पर गौरव महसूस करना और आरक्षण का विरोध कर रिज़र्व श्रेणी की जातियों को अपनी परेशानी का कारण बताना बहुत आसान था. लेकिन, एक फेलोशिप पर काम करने के दौरान जब रोहन ने निगाह उठाकर अपने आसपास देखने की कोशिश की तब उसे जाति और उससे जुड़े विशेषाधिकारों के बारे में पता चला.

भोपाल की बस्तियों में शिक्षा की एक नई उम्मीद

दसवीं तक की पढ़ाई पूरी करते-करते सबा को तीन बार स्कूल छोड़ना पड़ा. क्योंकि घरवाले स्कूल फीस जमा करने की स्थिति में नहीं थे. किसी तरह प्राइवेट से दसवीं करने के बाद सबा ने ट्यूशन और डेलिगेट मदरसा में 300 रूपए प्रति माह तनख्वाह पर बच्चों को पढ़ाना शुरू किया.

“किस बच्चे ने कास्ट सर्टिफिकेट अभी तक जमा नहीं कराया है.”

सरोजनी नगर, महानगर दिल्ली के दक्षिण में बसा एक इलाका है. पूरी दिल्ली में यह इलाका किफायती दामों पर मिलने वाले फैशनेबल कपड़ों के लिए मशहूर है. इसके आसपास सफ़दरजंग, साउथ एक्स जैसे महंगे रिहाइशी इलाके हैं. मेरा जन्म यहां से कुछ किलोमीटर दूर पुरानी दिल्ली में हुआ था. मैं बहुत छोटी थी जब मेरे माता-पिता ने पुरानी दिल्ली को छोड़ यहां बसने का फैसला किया था.

सीखने-सिखाने में हमेशा डर क्यों शामिल होता है?

यह कहानी इस विचार का पुरज़ोर प्रतिरोध करती है कि डर के साथ ही सीखना संभव है. ये क्लास-रूम में बैठे उन शिक्षार्थियों की कहानी नहीं कह रही जो किसी नियम को नहीं मानते, बल्कि यह उस क्लास के एक कोने में चुपचाप बैठे उन अंतर्मुखी विद्यार्थियों की कहानी कहती है जो अकेले नहीं हैं.

मेड इन बेलदा: रूमी, दीदी और उनका परिवार

युवा फ़िल्ममेकर रफीना खातून को उसके माता-पिता “आज़ाद पक्षी” कहते हैं. एक दिन ये आज़ाद पक्षी पलटकर अपने उस घोंसले की तरफ लौटती है जहां से उसने उड़ना सीखा था. वह उन सारी कहानियों को अपने कैमरे में कैद कर लेना चाहती है जिनकी नींव पर उसका घर रूपी घोंसला खड़ा है.

हमारा हिसाब कौन देगा?

मैं एक आदिवासी गोंड समुदाय में पैदा हुई. मेरे मां-बाप की मैं पहली संतान हूं. वैसे तो मेरे घर में 6 सदस्य हैं. माता-पिता के अलावा हम तीन बहन और एक भाई है. मेरे पिताजी और मां दूसरों के खेतों में काम करते हैं.

लव, सेक्स और क्‍लासरूम

पढ़ाई के दौरान हमें पांच बार फोटोसिंथेसिस के बारे में पढ़ना पड़ा. छठी क्लास से ग्यारहवीं तक हर साल लगातार मैं उसकी परिभाषा भूल जाता था इसलिए मुझे फिर से रटना पड़ता था, बावजूद इसके कि फोटोसिंथेसिस का मतलब मैं अच्छे से समझता था. इसी तरह हर साल मुझे बार-बार सीखना पड़ता था कि मेरी क्‍लास के लड़के दूर से ही मेरी हकीकत सूंघ लेते थे.

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