निरंतर रेडियो

विशेष फीचर: गुलाबी टॉकीज़ – ऑडियो कहानी

गुलाबी टॉकीज़
महामारी की वजह से जब हमारे थियेटरों पर ताले जड़ गए तो हमने उनकी याद में अपने को 1920X1080 के टीवी स्क्रीन में समेट पर ऑनलाइन डिजिटल फ़िल्मों और सीरियलों में ख़ुद को डुबो लिया.

लेकिन, एक सिनेमाघर, मल्टीप्लेक्स, सिंगल स्क्रीन पर्दे की किसी शहर के बनने में क्या भूमिका होती है? क्या ये सिर्फ़ बड़े पर्दे पर किसी कहानी को हमारे लिए जीवित भर करते हैं या ये शहर के भीतर रह रहे किरदारों की ज़िन्दगियां भी बदलते हैं.

कन्नड़ कहानी गुलाबी  टॉकीज़  इस जिज्ञासा का बहुत मार्मिक ढंग से जवाब देती है. लेखक वैदेही की इस कहानी का हिन्दी अनुवाद कर इसे निरंतर रेडियों के ज़रिए हम आपके साथ साझा कर रहे हैं. यह कहानी एक सिंगल स्क्रीन पर्दे के पीछे की कहानी है जिसने उस छोटे से कस्बे की औरतों की ज़िन्दगी में रातों-रात ही तहलका मचा दिया. कहानी की मुख्य किरदार लिलीबाई – जो एक दाई का काम करती-करती थियेटर के गेटकीपर का काम भी संभालने लगती है – की कहानी में थियेटर उसी तरह नए रूप में जन्म लेता है जैसे एक दाई की ज़िन्दगी में कोई नया बच्चा पैदा होता है.

निरंतर रेडियो के लिए इस कहानी को हिन्दी में रूपांतरित करते हुए इसमें 1970-80 के दौर की अनुभूतियों को हिन्दी गानों के ज़रिए वैसा का वैसा भाव देने की कोशिश की गई है जिससे एक शहर या कस्बा हमारे सामने जीवित हो उठता है. तो फौरन ही इस कहानी को सुनें… लिलीबाई तो पहले से गेट पर खड़ी आपका इंतज़ार कर ही रही है.

माधुरी को कहानियां सुनाने में मज़ा आता है और वे अपने इस हुनर का इस्तेमाल महिलाओं के विभिन्न समुदायों और पीढ़ियों के बीच संवाद स्थापित करने के माध्यम के रूप में करती हैं. जब वे रिकार्डिंग या साक्षात्कार नहीं कर रही होतीं तब माधुरी को यू ट्यूब चैनल पर अपने कहानियों का अड्डा पर समाज में चल रही बगावत की घटनाओं को ढूंढते और उनका दस्तावेज़ीकरण करते पाया जा सकता है. समाज शास्त्र की छात्रा होने के नाते, वे हमेशा अपने चारों ओर गढ़े गए सामाजिक ढांचों को आलोचनात्मक नज़र से तब तक परखती रहती हैं, जब तक कॉफ़ी पर चर्चा के लिए कोई नहीं टकरा जाता. माधुरी द थर्ड आई में पॉडकास्ट प्रोड्यूसर हैं.
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