क्वीयर घर: बसने-बसाने का काम, भाग-2

घरेलू कामों के बंटवारे पर जेंडर भूमिकाओं के निर्धारण को समझने के लिए क्वीयर परिवारों से बातचीत.

चित्रांकन: इपशिता ठाकुर. चित्र साभार: नज़रिया, क्वीयर नारीवादी संसाधन समूह.

द थर्ड आई टीम को लॉकडाउन के पहले से ही घर पर होने वाले काम के बंटवारे को लेकर कई सवालों के जवाब पाने की धुन सवार है. कौन-सा काम कौन करता है? किसे करने को मिलता है? जेंडर का इससे क्या ताल्लुक है? लोग कैसे कुछ ख़ास भूमिकाओं में आ जाते हैं? बिना सोचे, बिना एहसास किए? घर बसाने का काम प्यार से कितना जुड़ा है, मगर इसके बावजूद यह एक भार भी है. है न? क्या ऐसा कोई तरीका हो सकता है कि घर बसाने के इस काम से उस जेंडर पहचान को अलग रखा जाए जिसे ये ‘स्वाभाविक रूप से’ बढ़ावा देता लगता है? तो, हम सही मौके की तलाश में निकले, जहां हम इन सवालों के जवाब ढूंढ सकें. और हमें यह मौका क्वीयर घरों में मिला. द थर्ड आई आपके सामने प्रस्तुत करता है क्वीयर घरों के साथ इंटरव्यू का दूसरा भाग (पहला भाग यहां पढ़ें).

सहयोग: शामिनी कोठारी

समहिता एसक्सुअल हैं. (ये यौनिक पहचान उन लोगों की है जो किसी रोमांटिक रिश्ते के तहत सेक्स की चाह नहीं रखते) जेंडर को लेकर समहिता की पहचान एक सिस जेंडर औरत की है. सिस जेंडर यानी जिनकी जेंडर पहचान जन्म पर निर्धारित जेंडर से मेल खाती है. वे अपने नॉन बाइनरी क्वीयर पार्टनर एकता के साथ रहती हैं. नॉन बाइनरी यानी वे लोग जो स्त्री-पुरुष के दो खानों में बंटे जेंडर के ढांचे में खुद को बंधा नहीं मानते. उनका औरतों से रिश्ता होने की संभावना ज़्यादा है (Sapphic). समहिता की उम्र 25-30 साल की है, और वह मुंबई में रहती हैं.

“क्वीयर घर को लेकर मेरी समझ एक ऐसी जगह की रही है जहां क्वीयर लोग आ सकें. जो एक-दूसरे को जानते हों, जिनका आपस में एक भावनात्मक संबंध हो और वे जैसे हैं, वैसे ही रहें.. उन्हें ऐसा कुछ भी छिपाना न पड़े, जो वे छिपाना नहीं चाहते. एक क्वीयर घर ऐसी जगह है जो आपको वह स्वीकृति और साथ देता है जो शायद आपको उस परिवार में भी न मिला हो जिसमें आप बड़े हुए हैं. चाहे वह ऐसा परिवार हो जिसमें आप पैदा हुए हैं या जिसने आपको गोद लिया है. ऐसे परिवार सभी सदस्यों को आदमी–औरत के चले आ रहे जेंडर और यौनिकता के नियमों से बांधते हैं.

मैं एक क्वीयर घर में अपनी साथी जो Sapphic नॉन बाइनरी व्यक्ति हैं, के साथ रहती हूं. हमारे पास दो बिल्लियां और एक कुत्ता है.”

मुंबई में इनके घर में अक्सर चहल-पहल रहती है : दोस्त (ज़्यादातर क्वीयर) दोपहर या रात को लंच या फिर डिनर करने के लिए आते हैं. जब वे आते हैं तो घर के कामकाज में हाथ भी बंटाते हैं. अगर समहिता या एकता को घर से बाहर जाना होता है या और किसी कारण से व्यस्त होते हैं तो दोस्त लोग उनके कुत्ते और बिल्लियों की देखभाल भी करते हैं.

समहिता को लगता है कि घरेलू श्रम इस बात को व्यक्त करने का एक तरीका हो सकता है कि इस साझी ज़िंदगी में मैं भी हिस्सेदार हूं. घरेलू श्रम इस बात को भी व्यक्त करता है कि जो इस घर का एक अटूट हिस्सा हैं उनकी खुशहाली में मैं भी एक हिस्सेदार हूं.

“जब हमारा रिश्ता शुरू ही हुआ था तो शर्माने-खिलखिलाने के बाद शायद वह पहली चीज़ जिस पर हम दोनों ने बात की वह थी –हमारे रिश्ते की ‘शर्तें’.

मुझे याद है कि शुरुआत में मैंने ‘श्रम का बराबर बंटवारा’ शब्दों का बार-बार प्रयोग किया था. सैद्धांतिक रूप से हम दोनों ही इस उसूल को मानते थे. मगर जब करने की बारी आई तो सबसे आसानी से हमने अपने रिश्ते में उन्हीं जेंडर आधारित बंधी-बंधाई भूमिकाओं को अपना लिया.

मेरी साथी जो हममें से ज़्यादा ‘मर्दाना’ है, उसी की घर में ज़्यादा चलती थी. मैं ज़्यादातर उसका कहा ही मानती रहती थी. हम इस घटिया, उधार लिए हुए सांचे में ढल गए थे लेकिन जब हमें इसका एहसास हुआ, तब हमने इसका विरोध भी किया.”

विरोध कैसे?

“हमने इस बारे में बात की. पहले तो, हम अपने माता-पिता द्वारा की गई ग़लतियों को लेकर बहुत जागरूक हैं. हम वही ग़लतियां नहीं करना चाहते हैं या वही कड़वाहट अपने संबंध में नहीं लाना चाहते. मेरे माता–पिता को आपस में जितना मुश्किल समय गुज़ारना पड़ा इसका एक बड़ा कारण था उनके बीच बातचीत का न होना. उनकी आपसी बातचीत बिलकुल ख़त्म हो गई थी.

मैं और मेरे पार्टनर नहीं चाहते कि ऐसा हमारे साथ भी हो. तो हमने यहां से शुरुआत की: हमें पता है कि हमारा साझा क्वीयर घर हम दोनों के लिए कितना महत्त्व रखता है. हमें इसकी चुनौतियों का भी सामना करना है.” तो उन्होंने चीज़ों को स्पष्ट और न्याय संगत बनाने का ठाना.

“हमने एक पारिवारिक मीटिंग की और कामों को लिखकर उन्हें आपस-में बराबर बांटा –सब्ज़ी ख़रीदने कौन जाएगा, पानी का पंप कौन चलाएगा, सफाई करने वाली को पैसे कौन देगा, कुत्ते को घुमाने कौन ले जाएगा, पौधों में पानी कौन देगा, वग़ैरह वग़ैरह. हर काम का बंटवारा हुआ.”

ऐसा कोई घर नहीं जिसको बनाने में कम से कम एक ईंट अपराध बोध की न हो. समहिता को भी लगा कि उसके पार्टनर में घर चलाने की स्वाभाविक दक्षता है लेकिन क्योंकि उसमें खुद यह दक्षता नहीं है, इसलिए उसे इसकी कमी पूरी करनी चाहिए.

“क्योंकि मुझे एक परंपरागत तरीके से नहीं पाला गया था इसलिए परंपरागत रूप से औरतों के माने जाने वाले काम जैसे- खाना पकाना, सिलाई-कढ़ाई, देखभाल के अन्य काम करने के लिए प्रोत्साहित नहीं किया गया था. अब अपने घर में मैं ये सब नहीं कर पाती हूं. एक तरह से मेरे जेंडर ने यहां मुझे धोखा दे दिया है. इसलिए नहीं कि मुझे लगता है कि औरतों को ये काम करने आने चाहिए बल्कि इसलिए क्योंकि जो काम दूसरी औरतें इतनी दक्षता के साथ कर पाती हैं, मैं उन्हें करने में बहुत बुरी हूं. कई बार मुझे अपने पार्टनर से बहुत ईर्ष्या होती है. मुझे यह देखकर बहुत ताज्जुब भी होता है कि कैसे वह घर चलाने के बारे में इतना सब जानती है जबकि मैं एक लंबे समय तक सिर्फ मैगी उबालना और अपने बिस्तर की चादर बदलना ही जानती थी.

मैं एसेक्सुअल हूं. मुझे पता नहीं कि इससे घर में मेरी भूमिका पर कुछ असर पड़ता है या नहीं. कहते हैं कि गृहस्थी की जड़ें यौनिकता और यौनिक प्रजनन में हैं लेकिन मेरा उदाहरण साबित करता है कि इस बात में कुछ सच्चाई नहीं है. साथ में यह भी है कि मेरा एसेक्सुअल होना कभी भी समस्या नहीं बना.”

घर के काम के बंटवारे का एक नियम हो सकता है कि जो जिसमें अच्छा है, उसे वही काम करना चाहिए – क्या आप कह रही हैं कि मामला इतना सरल नहीं है?

“…बात यह है कि अगर हमने इस बात पर काम बांटा होता कि कौन किस काम में अच्छा है तो सारा भार मेरे पार्टनर पर ही पड़ जाता.” समहिता ने एक और सच्चाई की ओर इशारा किया. अक्सर हम चाहते हैं कि बड़े होकर भी हम बच्चे के रूप में ही रहें लेकिन हम ऐसा कर नहीं पाते. “मेरे लिए बड़े होने का मतलब है कि मैं धीरे-धीरे वे काम करने सीख रही हूं जिनमें वह अच्छी है. मैं उसके भार को कम करना सीख रही हूं.”

तो, समहिता ने ऐसा कैसे किया?

“मुझे सफाई करना और चीज़ों को अपनी जगह सलीके से रखना बेहद पसंद है. हर चीज़ की अपनी ख़ास जगह है और उन्हें इस्तेमाल करके वहीं रख दिया जाना चाहिए. घर को साफ़-सुथरा रखने का मतलब है कि घबराहट के ख़िलाफ़ मैंने आधी लड़ाई जीत ली. मैं कपड़े तय करने, चीज़ों को झाड़ने, रसोई में डब्बे व्यवस्थित करने, अलग-अलग तरह के कूड़े को अलग-अलग थैलियों में रखने में अपनी पूरी दोपहर गुज़ार सकती हूं. अक्सर मुझे सफ़ाई करने का भूत चढ़ जाता है.

दो रात पहले मैं, 3 बजे तक जाग कर बाथरूम की टाइल साफ़ कर रही थी. यह एकांत में करने वाला काम है, जिसका नतीजा अंत में मुझे अपने सामने देखने को मिलता है और मैं अपने विचारों के साथ समय भी बिता पाती हूं.”

एक तरह से जहां से शुरुआत हुई थी वहीं वापस लौटते हुए समहिता ने अपने माता-पिता के घर की भी बात कही, जहां वह बड़ी हुई थीं. समहिता ने कहा कि उन्होंने वह घर भी क्वीयर कर दिया है, “मुझे लगता है कि वह घर जिसमें मुझे जन्म देने वाला परिवार रहता है वह भी क्वीयर घर में बदल गया है.

मैं एक एसेक्सुअल औरत (जो औरतों के प्रति आकर्षित है) वाली पहचान को दमदार तरीके से पेश करती हूं और मेरे माता-पिता ने इसे अपना लिया है. उन्होंने अपने घर में इसके लिए जगह बनाई है.

अब एक समझ बन गई है कि किसी मर्द से शादी करने और बच्चे पैदा करने से जुड़े सवाल मैं बर्दाश्त नहीं करूंगी. मेरे माता-पिता इसकी इज़्ज़त करते हैं और समर्थन भी. उनका घर उसी दिन क्वीयर हो गया था जिस दिन मैंने उन्हें अपने बारे में बताया था. एक जगह पर क्वीयर व्यक्ति के होने का मतलब ही है, कि वह जगह बदल जाती है. इसलिए क्योंकि उस जगह पर यह मान्यता टूट जाती है कि सब को समाज द्वारा तय किए गए जेंडर और यौनिकता के नियमों के हिसाब से ही जीना पड़ेगा. कम से कम उस घर में तो ऐसा ही हुआ जहां मैं पलकर बड़ी हुई हूं.

राज, उम्र /लगभग 35/ नॉन बाइनरी हैं, यानी वे खुद को स्त्री-पुरुष के खानों में बंटे जेंडर के ढ़ांचे में बंधा नहीं मानते और अपनी पहचान क्वीयर के रूप में करते हैं. वे अपने पार्टनर और एक अन्य व्यक्ति, जो उनके क्वीयर परिवार का हिस्सा हैं, के साथ मुंबई में रहते हैं.

“एक क्वीयर घर ऐसी जगह है, जो ऐसे लोगों ने बनाया है जिनकी ज़िंदगी की सच्चाई और महसूस किए अनुभव क्वीयर हैं. ऐसा घर समय के साथ धीरे-धीरे बनता है. इसे बनाने के लिए ज़रूरी है इसमें रहने वालों के बीच बहुत सी चर्चा और कई तरह के मोल-भाव. इसे बनाने वाले एक-दूसरे का ध्यान रखते हैं, जो साथ मिलकर काम करने और सर्वसम्मति से निर्णय लेने में यकीन रखते हैं.

वे मानते हैं कि आपसी रिश्तों में सत्ता है और जो इस सत्ता को ज़्यादा न्यायसंगत तरीके से दोबारा बांटने की कोशिश करते हैं. जो उस घर में रहने वाले हर व्यक्ति की खुशहाली के लिए समर्पित हैं. मेरे संदर्भ में, यह है मेरा चुना हुआ परिवार”. राज यहां इशारा कर रहे हैं उस परिवार की ओर जिसमें हम जन्म लेते हैं और वह परिवार जो हम चुनते हैं. इस चुने हुए परिवार को समाज परिवार नहीं मानता. इसमें शामिल लोग खून के रिश्ते से नहीं जुड़े हैं लेकिन जो अपनी मर्ज़ी से अपने को एक परिवार मानते हैं.

राज का घर कई सालों की चर्चा, बहस और मोल-तोल का नतीजा है. एक तरह से ऐसा लगता है कि यह घर बहुत ध्यान से तैयार किया गया, एक आदर्श घर है. ऐसा लगता है कि यह घर ऐसा है जिसे देख बाकि लोग सोचें कि हां, ऐसा ही घर होना चाहिए. सोचने, बोलने, साथ मिलकर चीज़ों को करने के तरीके ऐसे ही होने चाहिएं. ऐसे तरीके जिनकी आरज़ू की जा सकती है. ऐसा लग सकता है कि इस घर में कुछ अधूरा नहीं है, यह पूरी तरह से बन चुका है. दूसरी ओर ऐसा लगता है कि यह ‘परिवार’ को लगातार बेहतर तरीके से परिभाषित करने की कोशिश का हिस्सा है.

ऐसा लगता है कि यह घर एक क्वीयर सोच पर टिका है जो ऊंच-नीच की व्यवस्था को नहीं मानता. इस सोच के मुताबिक़ समाज में घर बनाने के काम को काम का दर्जा नहीं दिया जाता.

घर के काम के महत्त्व के बारे में एक चुप्पी है. यहां इस चुप्पी को तोड़ने की कोशिश है. यह ऐसा काम है जिसे लगातार करते रहने की ज़रुरत है.

“आम तौर पर घर परिवार कैसा हो, इसके लिए समाज पहले से ही कई नियम तय कर लेता है, एक बना बनाया ढांचा है जिसको मान्यता मिली हुई है, फिल्म की पहले से ही लिखी गई कहानी या स्क्रिप्ट की तरह. एक क्वीयर घर को यह विश्वास साथ बांधे रखता है कि जब भी ऐसे हालात हों जब ज़िंदगी में चीज़ें डावांडोल हों, अनिश्चितता हो, तब लोग एक-दूसरे का सहारा बनें. जो कुछ ज़िंदगी हमारे सामने पेश करती है, उसके साथ मिलकर जूझें”.

शुरू में, राज अपने क्वीयर घर में रहने वाले लोगों के लिए ‘परिवार’ शब्द इस्तेमाल नहीं करना चाहते थे. परिवार की जगह वे अंग्रेज़ी का शब्द ‘significant otherness’ ज़्यादा पसंद करते थे. हिंदी में इन शब्दों का मतलब होगा वे लोग जो हमारी ज़िंदगी में महत्त्वपूर्ण हैं.

राज को ‘परिवार’ शब्द इसलिए नहीं पसंद क्योंकि परिवार एक ऐसी व्यवस्था से जुड़ा शब्द है जो सदियों से, विभिन्न संस्कृतियों में, मर्द और औरत के बीच के रिश्तों को प्रजनन और संपत्ति को बनाए रखने के लिए बढ़ावा देता है. राज मुझे याद दिलाते हैं कि परिवार का मतलब ही है एक ऐसा ढांचा जिसमें ऊंच-नीच हो, एक सत्ता का रिश्ता हो. परिवार के सदस्यों के बीच क्या रिश्ते होंगे इसके लिए समाज ने पहले से ही नियम तय कर रखे हैं.

तो वे घर पर काम का बंटवारा कैसे करते हैं? मैंने पूछा.

“कौन क्या काम करेगा यह इस बात से तय होता है कि किसका हुनर किसमें है और किसकी किस काम में ज़्यादा दिलचस्पी है. यह जाति और वर्ग की वजह से भी है जिसके कारण कुछ घर के काम हम नहीं करते. कुछ काम करने के लिए हमने चीज़े भी ख़रीदी हुई हैं जैसे वाशिंग मशीन और वैक्यूम क्लीनर. वो काम जिसमें सबसे ज़्यादा साझा श्रम लगता है वह है हमारे जानवरों की देखभाल. उन्हें खाना देना, उनकी सफाई का ध्यान रखना, वेट के पास इलाज के लिए ले जाना, दवाइयां, व्यायाम, उनके साथ खेलना. यह सब करते हुए हम सब आपस में जुड़ते हैं.

“हमारे घर में काम, प्यार ज़ाहिर करने से भी जुड़ा है. जिन्हें आप प्यार करते हो उनके लिए खाना पकाना- यह उस काम को करने की एक अच्छी वजह है.

हमारे यहां यह नियम है कि जो व्यक्ति खाना बना रहा है उसका खाना बनाने की तैयारी में हाथ बटाया जाएगा और खाना बनाने के बाद वह सफाई नहीं करेगा. अच्छा तो यह है कि प्लेट आदि भी कोई और ही मेज़ पर रखे.

हमारे बीच ऐसी ज़िम्मेदारियां भी हैं जो कोई एक व्यक्ति उठाता है. जैसे, हममें से एक मुख्यत: खाना बनाता है. ज़रूरी सामान ख़रीदने की ज़िम्मेदारी एक की है. चीज़ों को ठीक करवाने का काम–जैसे नाली, बिजली, एक्वागार्ड फ़िल्टर इत्यादी. इसके अलावा बिल्ली की टट्टी करने की जगह की सफाई तीसरा व्यक्ति करता है. ज़्यादातर हम इन बंटी हुई अपनी ज़िम्मेदारियों के अनुसार ही काम करते हैं. कुछ काम ऐसे हैं जो अकेले किए जाते हैं जैसे – कार धोना. यह भी प्यार के लिए किया गया एक काम है.”

अपने जैसे क्वीयर घरों के लिए परिवार शब्द के बारे में जो राज ने पहले कहा था कि समाज में जैसे परिवार की व्यवस्था चली आ रही है उससे उन्हें सख़्त दिक्कत है. इसी बात को आगे बढ़ाते हुए वह कहते हैं कि अब उन्हें लगता है कि क्वीयर लोगों (जिन्हें अक्सर परिवारों से बाहर निकाल दिया जाता है या उनके परिवार से जुड़े हक छीन लिए जाते हैं) को परिवार शब्द पर दावा करके अपने हिसाब से रचना चाहिए. ये क्वीयर लोगों का अधिकार है.

“क्वीयर लोगों की अपने “परिवारों” से दूरी बन जाती है या तो शारीरिक या भावनात्मक रूप से. क्योंकि हम अपनी असलियत कि हम क्या महसूस करते हैं अपने परिवार के लोगों को नहीं बता पाते. मगर हमारी ज़िंदगी में औरों से एक गहरे अपनेपन की ज़रुरत बनी रहती है. जो परिवार की भूमिकाएं हैं और जो परिवार का महत्त्व है उसे हम कहां पा सकते हैं? इसलिए अब मेरा यह विश्वास है कि परिवार क्या हैं और वे हमारे साथ क्या करते हैं इसकी आलोचना के बावजूद, यह संभव है कि हम परिवार शब्द को अपनाएं और उसे अपना नया मतलब दें. हम रिश्तों को इस तरह से अपनाएं जिस तरह कि वे हमारी उन तमाम ज़रूरतों को पूरा कर सकें जिन्हें पूरा करने की ज़िम्मेदारी परिवार की समझी जाती है.”

तो उनका जेंडर किस तरह काम करता है?

“जन्म से हम सभी का जेंडर औरत का माना गया है. मगर हमारे जेंडर के सफ़र ने हमें अलग-अलग जेंडर पहचानों पर पहुंचा दिया है. हम सबको सामाजिक रूप से औरत के रूप में बड़ा किया गया और सभी कम या ज़्यादा घर के काम करना जानती हैं. क्वीयर होने की वजह से और शायद स्त्री-पुरुष के दो ख़ानों में बंटे जेंडर के ढांचे में खुद को न रखने की वजह से, हमें बहुत जल्दी ही एहसास हो गया कि घर से बाहर और सार्वजनिक जगहों पर अपना हक कायम करना ज़रूरी है.

हम सभी घर से बाहर के काम कर सकते हैं. हम अकेले सफ़र करते हैं, देर रात तक बाहर रहते हैं, कामों को करवाना जानते हैं. हम मर्दों पर किसी भी तरह से निर्भर नहीं हैं. ऐसा हमारे क्वीयर नारीवादी होने की वजह से भी है. साथ ही इसलिए भी कि हम बीस-पच्चीस साल की उम्र से ही क्वीयर व्यक्तियों के साथ रह रहे हैं. हमें सिखाया गया है कि ज़िंदा रहना है तो आत्मनिर्भर रहना सीखो, चाहे वो घर के अंदर हो या बाहर.

हालांकि इस ढांचे में, जिस व्यक्ति को बाकि दो के मुकाबले अधिकतर ज़्यादा औरताना रूप में देखा जाता है (गलती से, मैं यह जोड़ दूं) वही खाना पकाता है. मेरी पार्टनर/ साथी के रूप में वह आवश्यकता पड़ने पर मेरे कपड़े सीती है और इस्तरी भी करती है क्योंकि मैं अच्छी तरह सिलाई या इस्तरी नहीं कर पाता. दूसरी तरफ, मैं घर के लिए सामान खरीदता हूं, कार चलाकर उसे ज़रूरी जगहों पर ले जाता हूं आदि. तो इसे परंपरागत जेंडर भूमिकाओं के रूप में देखा जा सकता है क्योंकि मैं ज़्यादा मर्दाना महसूस करता हूं. मगर यह तर्क दिया जा सकता है कि इसे हेट्रोनॉर्मेटिव (heteronormative) संरचना में देखना, इसे सरलीकृत करना होगा

इस तरह का घर झगड़ों, तनावों या असंतुलन से आज़ाद नहीं होता– इसका वर्णन “मोल-तोल में विश्वास” के रूप में किया जा सकता है.”

कार्यशाला

I

“हम इस घटिया, उधार लिए हुए सांचे में ढल गए थे लेकिन जब इसका अहसास हुआ तब इसका विरोध भी किया.”

संहिता और एकता को ये अहसास हुआ कि अपने घर के काम का बंटवारा करते हुए न चाहते हुए भी वे निर्धारित जेंडर भूमिकाओं में ढल गए हैं, इस अहसास ने उन्हें चीज़ों को पलट कर देखने और आगे कैसे बढ़ना है इसपर सोचने और बात करने के लिए प्रेरित किया.

क्या आपके घर में, कुछ ऐसे काम हैं जिनके बारे में आपको लगता है कि वे सहज रूप से मर्दाना या औरताना हैं? आप उनके बारे में ऐसा क्यों सोचते हैं?

क्या ऐसा कोई काम भी है जो जेंडर आधारित नहीं है? अगर है तो किस तरह से? इस तरह के काम कौन करता है? और क्यों?

II

राज का कहना है कि “हमारे घर में काम, प्यार ज़ाहिर करने से भी जुड़ा है.” 

जब आप घर जैसी निजी जगह पर हो तो क्या सब नियमों पर अंतत: सवाल उठाया जा सकता है?

क्या आपने अपने घर में श्रम के विभाजन का कुछ अलग तरीका अपनाया हुआ है? आदर्श रूप से आप इसे कैसा चाहेंगे?

हम कितना काम करते हैं और किन कारणों से, ये जानने के लिए आइए एक आसान सा अभ्यास करें. PDF डाउनलोड करें.

उर्वशी वशिष्ट एक स्वतंत्र शोधकर्ता, टीचर, लेखक और संपादक हैं. वे दिल्ली में रहती हैं. उन्होंने विश्वविद्यालयों, प्रकाशन, और विकास क्षेत्र में काम किया है और इन दिनों वे जानवरों के अधिकारों, घरेलू हिंसा, और नॉन कमफरमेटिव जेंडरनेस पर काम कर रही हैं.

इस लेख का अनुवाद सादिया सईद ने किया है.

ये भी पढ़ें

Skip to content