जेंडर

कतरनों से सपने बुनती बुंदेलखंड की औरतें

हंसा छोटी-छोटी गुड़ियाओं को अपने काम में शामिल करती हैं – कभी सीखने-सिखाने की प्रक्रिया में, कभी भावों को व्यक्त करने के लिए तो कभी अपनी कलाकृति को सामने रखने के लिए. यही वजह है कि ‘क्या है यह समझौता’ सिर्फ़ एक फ़िल्म नहीं बल्कि एक लघु–दृश्य कथा है जिसमें कई तरह के भावों का मिश्रण है जो शब्दों से छन कर आपस में घुलते जाते हैं.

केसवर्कर डायरी | एपिसोड 2: निर्णय

लड़कियां या औरतें समझौता करना कहां से सीखती हैं? कैसे वे मायके और ससुराल में सभी को खुश रखने के लिए अपनी खुद की ज़िंदगी को होम करने के लिए तैयार हो जाती हैं? सच यह है कि पैदा होने से लेकर बड़े होने तक अपने आसपास मां, बहन, दादी, चाची, नानी,,,इन सभी को वे समझौता करते ही देखती हैं.

केसवर्कर्स डायरी | एपिसोड 1 : अनेकों कमरों का समझौता

कोई हमें थोड़ा प्यार करे, हमारी इज़्ज़त करे, हमें सम्मान दे- इसके लिए हम क्या-क्या जतन करते हैं, कितने तरह के समझौते करते हैं, है न! केसवर्कर्स डायरी के इस एपिसोड में उत्तर-प्रदेश के बुंदेलखंड की एक केसवर्कर हमें अपने जीवन के उन तमाम कमरों के बारे में बताती है जहां कभी उसने अपना बचपन जिया तो कभी खुद से उसे बनाया-संवारा.

“वो मेरी बेटी है और मुझे उसे अकेले पालने में कोई दिक्कत नहीं है”

जेंडर आधारित हिंसा से जुड़े केस पर काम करते हुए एक केसवर्कर महसूस करती है कि कैसे हमारा जीवन उन छोटे-बड़े समझौतों से घिरा होता है जो हमें रोज़मर्रा की ज़िंदगी में करने पड़ते हैं. खासकर तब जब यह समझौते पारिवारिक विवादों और घर के भीतर सत्ता के समीकरणों की वजह से करने पड़ते हैं?

बिना शर्तों का कॉन्ट्रैक्ट – निकाहनामा

शादी या निकाह खुशी का वह मौका होता है जब लड़का और लड़की के साथ-साथ दोनों के परिवार भी एक नए रिश्ते में बंधते हैं. शादी, संस्कार होने के साथ-साथ एक समझौता भी है. कुछ समझौते कागज़ पर किए जाते हैं तो कुछ को रीति-रिवाजों का जामा पहना कर अदृश्य तरीके से लड़कियों के गले में डाल दिया जाता है.

‘हम सिर्फ़ ससुराल वापस जाने का कोम्प्रोमाईज़ नहीं करवाते हैं.’

समझौता और इकरारनामा ये दो शब्द जेंडर आधारित हिंसा से जुड़ी शब्दावली में महत्त्वपूर्ण हैं. इकरारनामा का मतलब कोर्ट-कचहरी, थाना-पुलिस, पंचायत या मध्यस्थता केंद्रों द्वारा करवाए जाने वाले समझौतों से बहुत अलग है.

बोलती कहानियां: हेकड़ी

बोलती कहानियां के इस नए 6वें एपिसोड में दिप्ता भोग से सुनिए लेखक विजयदान देथा की कहानी हेकड़ी. यह कहानी उनके संग्रह ‘बातां री फुलवाड़ी’ के हिंदी अनुवाद से ली गई है जिसके प्रकाशक राजस्थानी ग्रंथागार हैं.

“मुझे सभी औरतों से नफरत है”

डाक्यूमेंट्री फ़िल्म निर्माता एवं शोधार्थी हरजंत गिल, जिन्होनें भारतीय मर्दवाद (या मर्दानगी) पर कई डाक्यूमेंट्री फ़िल्में बनाई हैं, कहते हैं कि, “मर्दवाद के बारे में बात करते वक्त एक बड़ी चुनौती यह आती है कि आप इस बातचीत में मर्दों को शामिल करते हैं और वे यह नहीं समझ पाते कि उन्हें इस बातचीत में किधर जाना है या इस सवाल को कैसे समझना है…

क्या हो अगर आपका काम लड़कों और मर्दों को ‘बेहतर लड़के और मर्द’ बनना सिखाने का हो?

सामाजिक विकास के क्षेत्र में जेंडर पर होने वाले काम में पारम्परिक रूप से महिलाओं और लड़कियों को ही शामिल किया जाता रहा है. नब्बे के दशक के मध्य तक आने के बाद ही कुछ चुनिंदा गैर-सरकारी संगठनों ने जेंडर के मुद्दे पर लड़कों और पुरुषों के साथ काम करना शुरू किया.

कैसे मैंने भरतनाट्यम से दुबारा प्यार करना सीखा

मैं दर्द और थकन से चूर, छात्रावास के अपने झक्क-सफ़ेद कमरे में आती हूं. मैं देखती हूं कि मेरी रूममेट अपने घुटनों की मालिश कर रही है. मैं उस तेल की सुस्त गंध में राहत ढूंढने की कोशिश करती हूं. अगली सुबह डांस प्रैक्टिस के लिए फिर जाना है. सुबह 5 बजे का अलार्म सेट करते हुए मेरी अंतरात्मा कराह उठती है.

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