फीचर्ड

पढ़ना_स्कूल

स्कूल लौटती दो बुज़ुर्ग महिलाओं की बेजोड़ कहानी

शुवांगी खड़का की फ़िल्म ‘पढ्ने उमेर’ नेपाल में प्रौढ़ शिक्षा पर केंद्रित है. द थर्ड आई के साथ शुरुआती बातचीत में शुवांगी अपनी मां की कहानी कहना चाहती थीं. मां को भी पढ़ने का शौक है लेकिन घर-गृहस्थी में उलझकर उनकी पढ़ाई अधूरी रह गई. शुवांगी, खुद अपनी मां से यह सवाल करती हैं कि उन्होंने पढ़ना क्यों छोड़ दिया? पर, फ़िल्म शूट करने के दौरान उन्हें अपने इस सवाल का जवाब मिल जाता है.

सलीम_क्वीयर इतिहास

“प्रतिरोध की राजनीति ‘मज़ा’ के बिना अधूरी है.”

सलीम किदवई एक इतिहासकार और स्वतंत्र विद्वान थे, जिन्होंने दिल्ली विश्वविद्यालय के रामजस कॉलेज में बीस वर्षों तक अध्यापन किया है. उन्होंने मध्यकालीन और आधुनिक भारत पर कई अकादमिक निबंध प्रकाशित किए हैं और कई कृतियों का अनुवाद किया है, जिनमें मलका पुखराज द्वारा लिखित “सॉन्ग सुंग ट्रू: ए मेमॉयर” और सैयद रफीक हुसैन की लघु कथाओं का संग्रह “द मिरर ऑफ वंडर्स” शामिल हैं.

विशेष फीचर: बायन

“बाबा, कोई डायन कैसे बनती है?” सूखी झील के किनारे खड़े होकर भागीरथ जब यह सवाल अपने पिता मलिंदर से पूछता है, उस वक्त उसकी बिछड़ी हुई मां की परछाई उसके ऊपर मंडरा रही होती है. महाश्वेता देवी की कहानी बायन में भागीरथ अपनी मां को याद करता है और यह जानने की कोशिश करता है कि कैसे उन्हें डोम समुदाय ने बायन (डायन) कहकर अलग कर दिया.

कतरनों से सपने बुनती बुंदेलखंड की औरतें

हंसा छोटी-छोटी गुड़ियाओं को अपने काम में शामिल करती हैं – कभी सीखने-सिखाने की प्रक्रिया में, कभी भावों को व्यक्त करने के लिए तो कभी अपनी कलाकृति को सामने रखने के लिए. यही वजह है कि ‘क्या है यह समझौता’ सिर्फ़ एक फ़िल्म नहीं बल्कि एक लघु–दृश्य कथा है जिसमें कई तरह के भावों का मिश्रण है जो शब्दों से छन कर आपस में घुलते जाते हैं.

टीचर टॉक्स: सीज़न 2. एपिसोड 2

‘टीचर टॉक्स’ सीज़न दो के दूसरे एपिसोड में मिलिए पाकुर, झारखंड की असनारा खातून से जो अपने परिवार की पहली शिक्षिका हैं. पाकुर के एक ऐसे इलाके में जहां लड़कियों की पढ़ाई से ज़्यादा ज़रूरी उनको बीड़ी बनाने के काम में लगाना है, असनारा बस अपनी धुन में पढ़ती ही गईं.

ये दिल दीवाना भी और गुस्सा भी

मेरा चश्मा, मेरे रूल्स Ep 3: ये दिल दीवाना भी और गुस्सा भी

ज़ूम कॉल पर बातों-बातों में जब मुस्कान ने कहा, “हमारे यहां तो ये सब चलता ही नहीं है” तो हमें थोड़ा समय लगा यह समझने में कि मुस्कान यहां प्यार करने और साथ ही गुस्सा करने की बात कर रही है. शुभांगणी जो राजस्थान के केकरी ज़िले से जुड़ रही थी उसने मुस्कान की बातों को आगे बढ़ाते हुए कहा कि मुझे तो लगता है कि बड़ों के लिए हम फुटबॉल हैं!

टीचर टॉक्स: सीज़न 2. एपिसोड 1

टीचर टॉक्स के दूसरे सीज़न में मिलिए ऐसी शिक्षिकाओं से जो अपने परिवार में शिक्षा प्राप्त करने वाली पहली पीढ़ी से हैं. वीडियो में वे बतौर विद्यार्थी शिक्षा प्राप्त करने के अपने अनुभवों के साथ, वर्तमान में अनौपचारिक शिक्षण केंद्रों में बच्चों को पढ़ाने के अनुभव साझा कर रही हैं.

मैं कब बढ़ी हुई

मेरा चश्मा, मेरे रूल्स Ep 2: मैं कब बढ़ी हुई?

साहिबा के लिए गूगल बाबा, ज्ञान का भंडार हैं जहां वो सुबह से लेकर शाम तक लगातार घूमती रहती है और मानसिक स्वास्थ्य से लेकर तरह-तरह की जानकारियों का हल ढूंढती रहती है. ज़ूम कॉल पर 18 साल की साहिबा खुद के बारे में और खुद का ध्यान रखने के बारे में इतनी बड़ी-बड़ी बातें करती है कि सभी उत्सुकता से उसकी बातों में डूबते रहते हैं. साहिबा की बातों में एक सवाल था जो लुके-छिपे ढंग से दिखाई दे रहा था – मैं कब बड़ी हुई?

बेबी हालदार के साथ एक बातचीत

साल 2002 बहुत सारी घटनाओं के लिए इतिहास में दर्ज है. उन्हीं में से एक असाधारण घटना थी ‘आलो आंधारि’ किताब का प्रकाशन. इस किताब के शब्दों ने घरेलू कामगारों के साथ होने वाली हिंसा और गरीबी में डूबी एक ऐसी दुनिया का दरवाज़ा खोलने का काम किया जिसके बारे में शायद ही कभी कोई बात होती थी.

मेरी सुरक्षित जगह कहां है?

मेरा चश्मा, मेरे रूल्स Ep 1: मेरी सुरक्षित जगह कहां है?

नारीवादी संस्थाओं और अकादमिक बातचीत में ‘सुरक्षित जगह’ के बारे में अक्सर बात की जाती है. भिन्न मौकों पर हम इस बात को दोहराते हैं कि इस लफ्ज़ के माने अलग-अलग लोगों के लिए, और अलग-अलग वक़्त पर कितने मुख्तलिफ़ रहे हैं. कुछ ऐसा ही सवाल हमने मुस्कान और शोम्या से पूछा कि इस लफ्ज़ का उनके लिए क्या मतलब है?

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