फीचर्ड

फ से फ़ील्ड, श से शिक्षा: एपिसोड 5 भूचाल

हुआ यूं कि गीता के मोहल्ले से एक लड़की, किसी दूसरी जाति के अपने लड़के दोस्त (ब्यॉफ्रेंड) के साथ घर छोड़कर भाग गई. इस घटना से पूरे मोहल्ले में हड़कंप मच चुका था. अब इसका असर तो हर घर पर पड़ना ही था. कैसे? जानने के लिए सुनिए रानी की कहानी भूचाल.

मेड इन बेलदा: रूमी, दीदी और उनका परिवार

युवा फ़िल्ममेकर रफीना खातून को उसके माता-पिता “आज़ाद पक्षी” कहते हैं. एक दिन ये आज़ाद पक्षी पलटकर अपने उस घोंसले की तरफ लौटती है जहां से उसने उड़ना सीखा था. वह उन सारी कहानियों को अपने कैमरे में कैद कर लेना चाहती है जिनकी नींव पर उसका घर रूपी घोंसला खड़ा है.

मैंने साफ किया तुम्हारा

मन के मुखौटे Ep 3: मैंने साफ किया तुम्हारा

मानसिक स्वास्थ्य के तयशुदा खांचे से बाहर निकल, उसे आपबीती और जगबीती के अनुभवों एवं कहानियों के चश्मे से समझने की एक महत्वाकांक्षी पहल “मन के मुखौटे” के ज़रिए हम एक बार फ़िर वापस मानसिक स्वास्थ्य की तरफ़ मुड़कर देख रहे हैं. इस पॉडकास्ट सीरीज़ के नए एपिसोड में हम देखभाल से जुड़े मुद्दों पर सवालों और अनुभवों के ज़रिए इसे समझने का प्रयास कर रहे हैं.  

मराठवाड़ा का एकल महिला संगठन

एकल इन द सिटी Ep 4: मराठवाड़ा का एकल महिला संगठन

अपने ही रंग में नहाऊं मैं तो, अपने ही संग मैं गाऊं. एक सवाल – वे महिलाएं जिन्होंने अपनी मर्ज़ी से अपने पति को छोड़ दिया है, उनके लिए हिंदी, अंग्रेज़ी या किसी भी भाषा में कौन सा शब्द है? अगर, आपको नहीं पता तो हम बताते हैं -एमएनटी (MNT) – मी नवराएला टाकले – यानी, मैंने पति को छोड़ा!

त्रिदेवी

विशेष फीचर: त्रिदेवी – ऑडियो कहानी

मीना, एनी और नयनतारा – सेंट एग्निस कॉलेज में पढ़ने वाली तीन लड़कियां, तीन दोस्त – जो दुनिया को अपने कंधे पर उठाए नाचती फिरती हैं. वे दुनिया पर राज करती हैं, कम से कम अपने कॉलेज पर तो ज़रूर करती हैं! वे कॉलेज फेस्टिवल्स की जान हैं. डांस में उनका कोई सानी नहीं. 

मेकिंग टेक्स्ट्बुक फेमिनिस्ट: किताबों को नारीवादी बनाने की ओर

2005, में निरंतर संस्था ने केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (सीबीएसई) के आग्रह पर बच्चों की पाठ्य- पुस्तिकाओं को ‘जेंडर संवेदनशील’ बनाने का काम किया था. निरंतर संस्था द्वारा तैयार की गई किताबें 15 साल से भारतीय स्कूलों में पढ़ाई जा रही हैं. इस साल 2022 में इनमें से जाति पर कुछ पाठ्यक्रमों को हटा दिया गया है.

सिटी गर्ल्स

उत्तर-प्रदेश के बांदा ज़िले से आई दो लड़कियां उमरा और कुलसुम, झोला उठाकर दिल्ली महानगर में ठसक से अपना रास्ता बनाती हुई चलती हैं. कैमरा उनके पीछे-पीछे चलता है. 28 मिनट की इस डॉक्यूमेंट्री फिल्म में वे सारी दकियानूसी बातें जो लड़कियों को अक्सर सुनने को मिलती हैं, कांच की तरह टूटकर गिरते हुए दिखाई देती हैं.

अकेले और चलना चाहिए

एकल इन द सिटी Ep 3: अकेले और चलना चाहिए

एकल इन द सिटी के इस तीसरे एपिसोड में मिलिए अनु से जो छत पर बने अपने कमरे से हमारा परिचय करवाती हैं. आज से करीब 76 साल पहले वर्जिनिया वुल्फ ने अपने लेख ‘अ रूम ऑफ़ वन्स ओन’ में लिखा था कि रचनात्मक रचने के लिए लड़कियों और महिलाओं के पास अपना एक कमरा होना चाहिए. किसे पता था कि अजमेर जिले के केकड़ी गांव में 31 साल की अनु उस ‘अपना एक कमरा’ को इतने सम्मान के साथ चरितार्थ कर रही होगी.    

वापसी

साल 2020 में कोविड के दौरान देशभर में लगे लॉकडाउन की वजह से ज्योति अपने गांव सवाऊ मूलराज वापस लौटती हैं. उन्होंने गांव में रहते हुए वहां के परिदृश्य, लोगों औऱ घटनाओं को अपने कैमरे में कैद करना शुरू किया.

दाम्पत्य और असंतोषः एक कहानी तस्वीरों की ज़ुबानी

1870 और 1920 के बीच की अवधि को पूरे भारत में दाम्पत्य/नव दाम्पत्य परियोजना (विवाहित जोड़े की एक नई कल्पना) को आगे बढ़ाने का उत्तम समय माना जा सकता है और यह महाराष्ट्र में भी बहुत अच्छी तरह से दिखाई देता है.

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