काठमांडु की रहने वाली शुवांगी खड़का की फ़िल्म ‘पढ्ने उमेर’ (एज ऑफ़ लर्निंग) के पहले शॉट में 60 साल की एक महिला, कंधे पर बस्ता लटकाए, धीरे-धीरे कदम बढ़ाती स्कूल से बाहर जाती हुई दिखाई देती हैं. एक सामान्य सा दृश्य जिसे देखकर यही समझ आता है कि वो किसी बच्चे का बस्ता उठाकर जा रही हैं. लेकिन नहीं, यहीं तो कहानी में ट्विस्ट है.
दृश्य में दिखाई देने वाली महिला का नाम पलहामू शेरपा है और वो बस्ता उनका ही है. पलहामू, 66 साल की उम्र में पढ़ना-लिखना सीख रही हैं. स्कूल से लौटने के बाद वो घर के कामों में लग जाती हैं. दही-मट्ठा बनाना, जानवरों की देखभाल करना, उनके लिए घास काटकर लाने से लेकर दूसरे तमाम काम करने के बाद पलहामू लट्टू की रौशनी में अपना होमवर्क करने बैठ जाती हैं.
एक और महिला हैं बिषणुमाया गुरुंग, उम्र 48 साल. क्लासरूम में जब छोटी-छोटी बच्चियां कैमरे के सामने उत्साह से अपने बेस्ट फ्रेंड के नाम बताती हैं, उसी वक्त उनमें यह भी होड़ लग जाती है कि बिषणुमाया किसकी बेस्ट फ्रेंड हैं क्योंकि वे सभी उन्हें अपनी बेस्ट फ्रेंड बनाना चाहती हैं. बिषणुमाया कहती हैं, “पढ़ते हुए अगर मैं कहीं अटक जाती हूं तो बेझिझक बच्चों से पूछ लेती हूं.”
इस तरह दृश्य-दर-दृश्य दर्शक फ़िल्म के जादू में घिरते चले जाते हैं.
शुवांगी खड़का की फ़िल्म ‘पढ्ने उमेर’ नेपाल में प्रौढ़ शिक्षा पर केंद्रित है. शुवांगी, द थर्ड आई, एडु लोग कार्यक्रम से जुड़ी हैं. हमारे शिक्षा अंक से जुड़े इस कार्यक्रम में भारत, नेपाल और बांग्लादेश से 13 लेखक एवं कलाकारों ने भाग लिया है. ये सभी प्रतिभागी शिक्षा से जुड़े अपने अनुभवों को नारीवादी नज़र से देखने का प्रयास कर रहे थे.
द थर्ड आई के साथ शुरुआती बातचीत में शुवांगी अपनी मां की कहानी कहना चाहती थीं. मां को भी पढ़ने का शौक है लेकिन घर-गृहस्थी में उलझकर उनकी पढ़ाई अधूरी रह गई. अब वो वापस स्कूल जाकर पढ़ना चाहती हैं, पर किन्हीं कारणों से अपने इस ‘काम’ की शुरुआत वो अभी तक नहीं कर पाई हैं. शुवांगी, खुद अपनी मां से यह सवाल करती हैं कि उन्होंने पढ़ना क्यों छोड़ दिया? पर, फ़िल्म शूट करने के दौरान उन्हें अपने इस सवाल का जवाब मिल जाता है.
आईडीएसएफएफके, केरल में आधिकारिक चयन के साथ ही फ़िल्म ने कई अवॉर्ड्स भी प्राप्त किए हैं. जैसे, तस्वीर साउथ एशियन फ़िल्म फेस्टिवल, सिएटल में ग्रैंड ज्यूरी पुरस्कार (सर्वश्रेष्ठ डॉक्यूमेंट्री शॉर्ट में माननीय उल्लेख), 11वें नेपाल ह्यूमन राइट्स इंटरनेशनल फ़िल्म फेस्टिवल में सर्वश्रेष्ठ महिला फ़िल्म निर्माता का पुरस्कार, इंटरनेशनल फ़िल्म फेस्टिवल पामे, पोखरा (नेपाल) में सर्वश्रेष्ठ लघु डॉक्यूमेंट्री का पुरस्कार.
कलाकार: बिष्णुमाया गुरुंग, पाल्हामु शेरपा
निर्देशक: शुवांगी खड़का
निर्माता: द थर्ड आई
डीओपी एवं संपादक: प्रकाश चंद्र जिम्बा
रंग संयोजन: निशोन शाक्य
साउंड डिज़ाइन एवं संगीत: अभिषेक माथुर
सह-निर्माता: शुवांगी खड़का, प्रवीण खड़का, प्रकाश चंद्र जिम्बा
कार्यकारी निर्माता: शबानी हसनवाला, शिवम रस्तोगी
द थर्ड आई की पाठ्य सामग्री तैयार करने वाले लोगों के समूह में शिक्षाविद, डॉक्यूमेंटरी फ़िल्मकार, कहानीकार जैसे पेशेवर लोग हैं. इन्हें कहानियां लिखने, मौखिक इतिहास जमा करने और ग्रामीण तथा कमज़ोर तबक़ों के लिए संदर्भगत सीखने−सिखाने के तरीकों को विकसित करने का व्यापक अनुभव है.