दो पहाड़ों के बीच

बेकरारी, रतजगे पन और क्रूर ईमानदारी को समेटे एक रोमांटिक कहानी

चित्रांकन: देवी गांगुली

यह लेख ‘द थर्ड आई’ सेक्सी लोग मेंटरशिप कार्यक्रम के तहत तैयार किया गया है. इस कार्यक्रम में भारत के अलग-अलग हिस्सों से चुने गए दस लोगों ने यौनिकता को लेकर ‘मज़ा और खतरा’ विषय पर अपने अनुभवों को लेख के रूप में तैयार किया है. 

एक मशहूर हिल स्टेशन की पहाड़ियों में शिद्दत, चाहत, पहचान और सामाजिक असलियत के मिश्रण से निकली एक दिलचस्प कहानी.

जब मैं उस मशहूर हिल स्टेशन के बस स्टैंड पर उतरा, तो मेरे मन में एक ही सवाल घूम रहा था, क्या वह आएगी? बीती रात मैंने उसे कई मैसेजेज़ भेजे थे, आखिर के कुछ मैसेज उसने अभी तक नहीं देखे थे, मतलब उनपर ब्लू टिक नहीं लगा था. रात ढल चुकी थी, लेकिन पौ फटने में अभी वक्त था. आसपास ऊनी टोपी पहने मज़दूर, घोड़ा लिए नाटे कद वाले लोग, और हाथ में चाय की प्याली थामे सैलानी – सभी सुबह का इंतज़ार कर रहे थे.

मेरी उम्र यही कोई तीस के आसपास होगी लेकिन देखने वाले अक्सर गच्चा खा जाते थे. मेरी पीठ पर लदे मेरे बैकपैक की वजह से मैं कोई स्कूल जाता हुआ लड़का लगता हूं! रातभर के सफर की वजह से मेरी पीठ बुरी तरह से दर्द कर रही थी.

आसपास बहुत से छोटे-छोटे गड्ढे थे, जिनमें गंदा पानी भरा था. चारों तरफ प्लास्टिक के रैपर और बोतलें, थूका हुआ बलगम और सिगरेट के टुकड़े बिखरे पड़े थे. मैं बड़ी सावधानी से उनसे बचता हुआ, उछल-उछल कर चल रहा था, ताकि मेरी बाटा की चप्पलें (जो न जाने कितनी पुरानी थीं) गंदी न हो जाएं. इस तरह गंदगी से बचता-बचाता मैं एक चाय की दुकान पर पहुंचा. दुकानदार को सिगरेट और चाय का ऑर्डर दिया. मेरे दोनों हाथ ठंडे पड़ चुके थे. अपनी दोनों ठंडी हथेलियों में मैंने मुंह से फूंक मारी, आपस में रगड़ा, ताकि थोड़ी गर्मी मिल सके और पीठ की अकड़न दूर करने के लिए अंगड़ाई ली.

मैं सिगरेट का कश खींचता, धुआं छोड़ता और चाय की चुस्की लेता. फिर खींचता, धुंआ छोड़ता, खींचता-छोड़ता. मैं सोच रहा था कि क्या ये ज़्यादा बेहतर होता कि मैं टैक्सी लेकर सीधे माउंटेन हाउस पहुंच जाता! यही उसने भी कहा था लेकिन टैक्सी लेने का मतलब था कि मुझे फ्लाइट लेनी पड़ती. बस से आने में थोड़ी परेशानी ज़रूर हुई, लेकिन मेरे पांच हज़ार रुपए बच गए. मैंने सिगरेट खत्म की और ऑटो की तलाश करने लगा.

***

पिछले महीने जब से हम एक पार्टी में पहली बार मिले थे, तब से लगातार मेसेज पर बातें कर रहे थे.

हमारी बातों में एक रवानगी थी – जैसे कोई बांध अचानक टूट गया हो और पानी अपने उद्दाम वेग से बह निकला हो! हमने हर चीज़ के बारे में बात की. बचपन के बारे में, पुराने रिश्तों, उन रिश्तों में की गई गलतियों और इस बारे में भी कि कैसे हमें धोखा मिला.

चाहतों के मामले में वह मुझसे कहीं ज़्यादा अनुभवी थी और अपने रिश्तों के बारे में काफी स्पष्टता के साथ बातें किया करती. मेरी ज़िंदगी में अभी से पहले तक कुछ ही रिश्ते थे लिहाज़ा मेरा अनुभव बहुत कम था. इसलिए बातचीत के दौरान मैं अक्सर उसे जांचने की कोशिश करता कि अपने अतीत की जो बातें मैं बता रहा हूं, वो कुछ गड़बड़ तो नहीं है: तुम समझ रही हो न? कुछ बुरा या अजीब तो नहीं कह रहा?

हमने अपने मम्मी-पापा के बारे में भी बातें कीं. उसने बताया कि कैसे मम्मी-पापा से उसकी करीबी तब बढ़ी, जब वह अपनी उम्र के तीसवें पड़ाव को बस पार ही करने वाली थी. उसने बताया कि वह आम लड़कियों से थोड़ी ‘अजीब’ थी, उसके मम्मी-पापा ने उसको ठुकराया नहीं, बल्कि बहुत ही प्यार और उदारता के साथ अपनाया. मैंने भी अपने माता-पिता के बारे में उसे बताया, और यह भी कि कैसे मैं उनसे हमेशा एक दूरी महसूस करता हूं. उसने मुझे टेक्स्ट किया, “तुम भी उम्र के साथ अपने मम्मी-पापा के करीब आ जाओगे,” लेकिन सच कहूं तो मुझे इस बात पर यकीन नहीं था. उसके मम्मी-पापा तो शहर में ही पैदा हुए थे, फिर भी वह उनसे दूर होती गई, क्योंकि वह जैसी ज़िंदगी जीना चाहती थी, उसके मम्मी-पापा को मंज़ूर नहीं था. मैं तो उसी गांव में पैदा हुआ था जहां मेरे माता-पिता पैदा हुए थे लेकिन पहले पढ़ाई और फिर नौकरी के लिए मैंने अपना गांव छोड़ दिया. मैं शहर में बस गया, माता-पिता गांव में ही रह गए. अब हमारे बीच भी वही फासला है, जो एक गांव और शहर के बीच में होता है और यह दूरी वक्त के साथ बढ़ती ही रही है.

हमने अपनी लतों के बारे में भी बातें की. दस साल तक स्मोकिंग न करने के बाद, अब उसने फिर से सिगरेट पीना शुरू कर दिया है. मैंने उसे बताया कि मैं सिगरेट छोड़ने के बारे में सोच रहा हूं.

वह एक फिल्म स्कॉलर थी और अक्सर एक सुर में सुरैया के बारे में बातें किया करती थी. दुनिया की सबसे खूबसूरत औरत जो धरती पर एक समय ज़िंदा थी. फिर देव आनंद का ज़िक्र आता, दोनों के अधूरे और ट्रैजिक लव अफेयर की बात आती. वह बताती कि कैसे सुरैया के हिस्से में ही ज़्यादा दर्द आया. फिर बॉलीवुड की बातें शुरू हो जातीं. वह मुझे लंबे-लंबे अकादमिक टेक्स्ट भेजा करती, जिन्हें मैं ठीक से समझ भी नहीं पाता था. मैंने भी उसे कुछ तमिल फिल्मों के बारे में बताया जो मैंने बचपन में देखी थीं. जवाब में उसने दिल वाले इमोजी भेजे, मानो वह मुस्कराती हुई वादा कर रही थी कि मानो हमारे बीच भी कुछ एक जैसा है!

मैंने उसे अपने सॉफ्टवेयर इंजीनियर के काम के बारे में बताया. यह भी बताया कि मुझे डांस का बहुत शौक है. उसने मुझे बताया कि वह खुद को बहुत खुशकिस्मत मानती है, क्योंकि उसका काम ही फिल्मों के बारे में लिखना-पढ़ाना है, जो उसे सबसे ज़्यादा पसंद है.

अभी एक हफ्ता पहले उसने मुझे मेसेज किया था: पढ़ा-पढ़ा कर पक गई हूं. पहाड़ों पर जा रही हूं. चलोगे? मैंने तो जबसे उसे पहली बार देखा था, तभी से उसके सपने देख रहा था. उसने मुझे बताया कि वह ईएनएम (एथिकल नॉन-मोनोगैमी) में विश्वास रखती है. मतलब वह सेक्स के मामले में नैतिक रूप से एक समय में एक ही साथी के कॉन्सेप्ट में यकीन नहीं रखती. यह शब्द मेरे लिए बिल्कुल नया था. इसका मतलब समझने के लिए मुझे गूगल करना पड़ा. अब तक मैं खुद को पॉली ही मानता आया था. मुझे नहीं पता था कि इसके भी कई अलग-अलग रूप होते हैं. खैर, मैंने मुस्कराते हुए जवाब दिया, “मैं भी ईएनएम में विश्वास रखता हूं” उसने जवाब में दिलवाली इमोजी भेजी.

बिल्कुल, मैं भी चलना पसंद करूंगा. बेकार ऐप्स की क्वालिटी चेक कर-करके मैं भी थक गया हूं. टेक्स्ट के साथ मैंने उत्साह दिखाते हुए जीभ बाहर वाली इमोजी भेज दी.

इस ट्रिप की प्लानिंग करते समय, हमने इस पर भी चर्चा की थी कि हम वहां क्या-क्या कर सकते हैं. उसने कहा था, ध्यान रहे कि हम महज़ दो टूरिस्ट बनकर ही न रह जाएं. हमने तय किया कि हम वहां पढ़ेंगे, घूमेंगे, और जगहें देखेंगे. लेकिन स्माइली और दिल वाले इमोजी के पीछे मुझे पता था कि इस सफर के किसी-न-किसी मोड़ पर मुझे यह बात उसके सामने ज़ाहिर करनी होगी कि मैं उसे चाहता हूं, और यही बात मुझे बेचैन कर रही थी.

हम दोनों के बीच सिर्फ उम्र का ही फर्क नहीं था, बल्कि वह मुझसे ज़्यादा होशियार, ज़्यादा अनुभवी, और ज़्यादा मुखर थी. फिर भला वह मुझे क्यों चाहेगी?

ऑटो वाले ने मुझे माउंटेन हाउस के गेट पर उतार दिया. हमने अपने मैसेज में इसे ‘माउंटेन हाउस’ नाम दिया था लेकिन असल में यह एक माउंटेन व्यू हाउस था. एक फॉर्म कॉटेज, जहां से पहाड़ साफ नज़र आते हैं. लोगों ने वेबसाइट के रिव्यू सेक्शन में इसको अलग-अलग नाम दे रखे थे. खैर, उसने कहा था कि बुकिंग का मामला वह खुद देखेगी.

रिसेप्शनिस्ट एक बड़े और हवादार झोपड़े में बैठा था. उसके हाथ में एक पत्रिका थी, जिसको उसने मोड़ रखा था, और बीच-बीच में उसी से अंदर आने वाली मक्खियों को भगा रहा था. वह नौजवान था, शायद किसी कॉलेज का छात्र, जो एक्स्ट्रा आमदनी के लिए यह काम कर रहा था. अपनी साफ और अच्छी अंग्रेज़ी में उसने मेरा स्वागत किया और पूछा कि मेरा सफर कैसा रहा. मैंने कहा, “हां” फिर उसने मेरा “पूरा नाम” पूछा. मेरा पूरा नाम तो बस मेरा पहला नाम ही है, मैंने मन-ही-मन सोचा. जब मैंने अपना नाम बताया तो उसने कहा, “थैंक यू सर,” और फिर वह बुकिंग लिस्ट देखने लगा. उसने कहा, “आपके विला से नदी का सबसे खूबसूरत दृश्य दिखाई देता है.” फिर कहा, “मैम पहले ही चेक-इन कर चुकी हैं.”

जब उसने उसका ज़िक्र किया तो मेरे दिल की धड़कनें अचानक ही बढ़ गईं, ऐसा महसूस हुआ मानो मैं कोई गुनाह करने जा रहा हूं.

आखिर वह भी तो एक पुरुष ही था, और पुरुष ऐसी चीज़ों को समझने में माहिर होते हैं. मैं सफाई पेश करना चाहता था कि हम यहां सिर्फ पढ़ने, घूमने और जगहें देखने आए हैं और शायद यही सब होना भी था. फिर उसने चेहरे पर ‘मुझे भी सब पता है’ वाली मुस्कान के साथ मेरी तरफ एक प्रिंट-आउट बढ़ाया, जिसपर मुझे साइन करना था. उस शीट पर उसका नाम बहुत ही सुंदर कर्सिव राइटिंग में दर्ज था. मैंने उसके नाम के नीचे साइन कर दिया, तब वह मुझे विला की तरफ ले चला. विला की तरफ जाने वाला रास्ता एक बगीचे से गुज़रता था, जो पीले गुलदाउदी से गुलज़ार था.

गोल पत्थरों से बने रास्ते के दोनों तरफ गार्डेनिया की झाड़ियां लगी थीं. उसने मुझे एक बड़े घर के सामने छोड़ दिया. घर के चारों तरफ पहाड़ियां थीं, जिनपर चाय के बागान थे. वातावरण बिल्कुल शांत और सुरम्य था, सिर्फ बहती नदी का कल-कल स्वर ही सुनाई पड़ता था.

विला में एक बड़ा सा बरामदा था, जिसमें लकड़ी की एक मेज़ और दो कुर्सियां रखी थीं. मेज़ पर प्लास्टिक का एक गुलाबी लाइटर और एक ऐशट्रे रखा था, जिसमें एक अधजली सिगरेट पड़ी थी. मुझे अचानक सिगरेट पीने की इच्छा हुई. उस वक्त मैं एक अजीब सी कैफियत का शिकार था. मेरे भीतर थोड़ी घबराहट थी और साथ ही रोमांच भी. वह सामने अंदर ही थी. लगभग एक महीने तक मैसेज और फोन कॉल पर बातें करने के बाद, आज मैं उससे पहली बार मिलने वाला था.

“थैंक यू,” मैंने मैनेजर की ओर मुड़ते हुए कहा. वह मुस्कराया और फिर बड़े से बगीचे के पीछे कहीं गायब हो गया.

मैंने अपनी बगलों को सूंघा कि कहीं बदबू तो नहीं आ रही! एक खिड़की के धुंधले शीशे में देखते हुए अपने घुंघराले बालों को उंगलियों से संवारने की कोशिश की. मैंने डोरबेल बजाई. ट्रिंऽऽग… बहुत ही अजीब-सी आवाज़ थी, जो उस खूबसूरत घर के खूबसूरत माहौल से बिल्कुल भी मेल नहीं खा रही थी.

कल रात ही मैंने उससे कहा था कि मुझसे अब और इंतज़ार नहीं होता, मैं उससे मिलने को बेताब हूं. यह मेरे लिए थोड़ी साहसी पहल थी. उसने जवाब में कहा था कि उससे भी अब रहा नहीं जा रहा. उसके बाद ही मेरे मैसेज डिलिवर होने बंद हो गए थे. मैं सोच रहा था कि घर के अंदर क्या वही औरत है, जिसने यह बात मुझसे कही थी?

चरमराहट की तेज़ आवाज़ के साथ दरवाज़ा खुला और अब वह मुस्कराती हुई मेरे सामने खड़ी थी.

“हाय! सफर कैसा रहा?” बोलते हुए उसने मुझे ऐसे गले लगाया, जैसे हम पहले भी कई बार ऐसा कर चुके हों.

“हां, बिल्कुल मस्त। …और तुम्हारा?” सच कहूं तो मैं अपनी बात को थोड़ा मज़ेदार ढंग से कहना चाहता था लेकिन मुझे तो सही शब्द तलाश करने में भी मुश्किल हो रही थी.

कमरे की दीवारें टेक्स्चर्ड थीं. फर्श पर कुदरती पत्थर लगे थे. दीवारों को चमचमाते आईनों और आर्टवर्क से सजाया गया था. छत से एक छोटा सा खूबसूरत झूमर लटक रहा था.

उसकी उम्र चालीस के आसपास होगी. शरीर थोड़ा भारी था. मैंने पार्टी में जब उसे पहली बार देखा था, तब ऐसी नहीं दिख रही थी लेकिन मुझे भारी कद-काठी वाली औरतें पसंद हैं. सच कहूं तो उसकी कद-काठी को देखकर ही मैं पहली बार उसकी ओर आकर्षित हुआ था.

उसने एक कोने की ओर इशारा किया, जहां मैं अपना बैकपैक रख सकता था. उसने एक बड़ी, नीली, वन-पीस ड्रेस पहन रखी थी, जो उसके मोतियों के हार से मैच करती थी. वह बार-बार अपने मोटे बैंगनी फ्रेम वाले चश्मे को ठीक कर रही थी, जो बार-बार अपनी जगह से नीचे सरक आता था.

“तुम पर नीला रंग अच्छा लग रहा है,” मैंने उसकी ड्रेस की ओर इशारा करते हुए कहा.

“अच्छा! थैंक यू. वैसे असल में यह फिरोज़ी रंग है.” उसने मेरी ओर देखा और कहा, “यह मेरी दोस्त ने खास तौर से मेरे लिए बनाया है. वह एक अवॉर्ड-विनिंग डिज़ाइनर है.”, मैंने हां में सिर हिलाया.

“क्या सिगरेट पियोगे?” उसने पूछा. शायद उसने महसूस कर लिया था कि मैं नीले रंग के दो शेड्स में फर्क न कर पाने के कारण थोड़ी शर्मिंदगी महसूस कर रहा हूं, इसलिए उसने बात बदलने की कोशिश की, “मैंने कॉफी बनाई है. ब्लैक. लोगे?”

मैंने “हां” कहा. अब मैं पहले से थोड़ा बेहतर महसूस कर रहा था. हम घर के बाहर लगी उस मेज़ के पास आ बैठे, जहां ऐशट्रे रखी थी और जहां हम बाद में पूरा दिन बातें करते हुए बिताने वाले थे.

***

पूरे समय बातचीत के दौरान, हम वही बातें दोहराते रहे, जो पिछले महीने से फोन कॉल और मैसेज के ज़रिए एक-दूसरे से कह चुके थे. फर्क बस इतना था कि यहां हम उन्हीं बातों को थोड़ा ज़्यादा स्पष्ट कर रहे थे, कुछ बातों पर सफाई देते कुछ को सही कर रहे थे. मैंने महसूस किया कि जब वह अपने मम्मी-पापा के बारे में बातें करती है तो उसका चेहरा बिल्कुल शांत होता है, लेकिन फिल्मों, खास तौर से सुरैया की बात छिड़ते ही उसके चेहरे पर चमक आ जाती है.

उस पार्टी से पहले तक, जहां हम पहली बार मिले थे, मुझे ये भी पता नहीं था कि सुरैया कौन है? और अब ऐसा लगने लगा कि हर जगह मैं बस उसी के बारे में सुन रहा हूं. मुझे यह नयापन अच्छा लग रहा था. मुझे उसके जिस्म की बनावट अच्छी लगी. उसके हाथ पतले और नर्म थे, जबकि जिस्म थोड़ा भारी लग रहा था.

उसकी त्वचा बहुत ही मुलायम और चमकदार थी. वह मुझसे कहीं ज़्यादा गोरी थी.

अब जब हम एक-दूसरे के सामने बैठे थे, हम ज़्यादा खुलकर बातें कर पा रहे थे. अपने पुराने प्रेम-संबंधों की बात करते हुए, हम ज़्यादा खुलकर अंतरंग पलों से जुड़ी बातें एक-दूसरे से शेयर कर रहे थे. बातचीत के दौरान एक पल ऐसा भी आया, जब उसने कहा कि सेक्स के दौरान उसे सबसे ज़्यादा डॉगी पोज़िशन ही अच्छी लगती है. मैंने भी कहा कि मुझे भी वही पोज़िशन सबसे ज़्यादा पसंद है. यह बात हमने उसी सहजता के साथ कही थी, जिस सहजता के साथ हमने चाय के बजाय कॉफी पसंद करने की बात की थी.

हर मामले में वह मुझसे ज़्यादा स्पष्ट और बेबाक थी. मैं जानता था कि यह सब अनुभव और उम्र का तकाज़ा है… बातचीत के दौरान भी उसने इसका ज़िक्र कियाः “जब तुम मेरी उम्र में पहुंचोगे…” “…ज़्यादा संवेदनशील हो जाओगे,” “…ज़्यादा सतर्क हो जाओगे,” “…ज़्यादा अकेले हो जाओगे.”

हम तब तक बातें करते रहे, जब तक कि हम थक नहीं गए, और हमारी सिगरेट खत्म नहीं हो गई. “कल सिगरेट कम पिएंगे और ज़्यादा घूमेंगे,” उसने मुस्कुराते हुए कहा. हमने बारी-बारी से स्नान किया और बिना एक शब्द बोले अपना-अपना बेड चुन लिया और सोने चले गए. कमरे के दोनों सिरों पर दो छोटे-छोटे बेड लगे थे. “उम्मीद है तुम्हें इससे कोई दिक्कत नहीं होगी?” उसने शालीनता से पूछा. “नहीं-नहीं, दिक्कत जैसी कोई बात नहीं है,” मैंने जवाब दिया. गहरी नींद की आगोश में जाने तक, चादर के अंदर फोन पर कुछ स्क्रॉल करने की उसकी छवि मेरे दिमाग में बनी ही रही.

***

अगला दिन ऐसा बीता, मानो समय को पर लगे हों. हम सुबह जल्दी उठे और होटल का कॉम्प्लिमेंट्री ब्रेकफास्ट किया. उसने सलाद और फ्रेन्च रोल के साथ ब्लैक कॉफी ली. मैंने ऑमलेट और मसाला डोसा खाया. बाद में उसकी प्लेट को देखकर मैंने भी थोड़े चौकोर कटे तरबूज़ और पपीता लिया. नाश्ते के बाद हमने एक टैक्सी बुक की और एक मशहूर झरने की ओर निकल पड़े.

मेरी घबराहट और उत्तेजना अभी तक खत्म नहीं हुई थी. मैं, हमारे अपने शरीर को लेकर उससे कहीं ज़्यादा सचेत था. जिस तरह पिछली सीट पर बैठे हुए हमारी जांघें एक-दूसरे को छू रही थीं. कुछ सामान लेते-देते हुए जिस तरह हमारी उंगलियां आपस में टकरा जाती थीं.

लौटते समय, रास्ते में ही हमने जल्दी से लंच किया. फिर मैंने कहा कि अगर शराब ले लें तो… वह मेरे इस सुझाव से खुश हो गई. आसपास के लोगों की घूरती निगाहों से बचते हुए उसने ग्रीन-एप्पल फ्लेवर वाली वोदका ली. मैंने बीयर और सिगरेट ली. कमरे में पहुंचते ही हमने पीना शुरू कर दिया. हम कमरे में बैठकर शराब पीते, फिर बरामदे में आकर सिगरेट. इस तरह, ड्रिंक और कश का सिलसिला देर तक चलता रहा.

कुछ समय बाद सूरज पहाड़ों के पीछे डूबने लगा, उसने एक छोटा सा चौकोर स्पीकर निकाला और अलग-अलग तरह के गाने चला दिए. हमारा संगीत भी एक जैसा था. मैंने ब्लूज़ और जैज़ से शुरुआत की. उसने आर.डी. बर्मन और रफी से. लेकिन जैसे-जैसे नशा चढ़ता गया, हमने अस्सी के दशक के अपने पसंदीदा रॉक सिंगल्स एक-दूसरे को सुनाए.

वह बेड के किनारे पर बैठी थी. गाने का यह सिलसिला चल ही रहा था कि अचानक उसने कहा, “मेरे लिए डांस करो?”

मुझे हमेशा से किसी के सामने डांस करने में संकोच महसूस होता रहा है. मेरे हिसाब से डांस स्टेज पर की जाने वाली चीज़ ही है. वैसे मैंने घर की चारदीवारी के भीतर दो-तीन बार डांस किया है, पर उस वक्त आंखें बंद कर लेने से डांस करना आसान हो जाता है. मैंने अपनी बांहों को हवा में ऐसे लहराया और कमर मटकाई, जैसे किसी अनजानी चीज़ की आकृति बना रहा हूं. कुछ देर वह मुझे देखती रही, फिर वह भी उठ खड़ी हुई. धीरे-धीरे हमारे पैर एक साथ थिरकने लगे.

“क्या मैं तुम्हें चूम सकता हूं?” मैंने उससे पूछा जब हम एक दूसरे के ऊपर झुकने लगे थे. उसके चेहरे पर मुस्कान तैर गई.

“हां!”

मैं उसके और पास आ गया और देखा उसने आंखें बंद कर रखी हैं. मैंने उसे चूम लिया.

फिर हम धीरे-धीरे एक-दूसरे के कपड़े उतारने लगे, और कंबल में समा गए. यूं तो हम पूरी तरह से उस पल को इन्जॉय कर रहे थे, फिर भी ऐसा लग रहा था, जैसे सब कुछ बहुत जल्दी हो रहा है. करीब तीस मिनट बाद, हम थकन से चूर, एक-दूसरे की बांहों में पड़े हांफ रहे थे.

“सब कुछ एक झटके में ही हो गया,” मैंने करवट लेते हुए कहा और अपनी सांसों पर काबू पाने की कोशिश करने लगा.

“तुम्हें काटना पसंद है,” उसने अपनी गर्दन और कमर पर दांत के निशान दिखाते हुए कहा.

“हां,” मैंने थोड़ा सकुचाते हुए जवाब दिया.

“मुझे ऐसी उम्मीद नहीं थी.”

“तो क्या उम्मीद थी?”

“कुछ खास नहीं. सच कहूं तो पता ही नहीं था कि क्या उम्मीद करनी चाहिए.”

“मेरे लिए भी कुछ ऐसा ही था,” मैंने हल्की मुस्कान के साथ कहा.

“अगर तुमने ध्यान दिया हो तो मुझे समर्पण पसंद है,” उसने कहा.

“हां! मुझे भी ऐसा ही लग रहा था,” मैंने कहा, “शायद मुझे दबंग होना.”

“अरे नहीं, ऐसा मत कहो,” उसने खिलखिलाते हुए कहा, “जब तुमने मुझे ज़ोर से दबोच रखा था, तब बहुत अच्छा लग रहा था.”

मैं उलझन भरी निगाहों से उसकी ओर देखने लगा. वह इंतज़ार कर रही थी कि मैं कुछ कहूंगा.

“कोई बात नहीं,” उसने गहरी सांस लेते हुए कहा, “ज़्यादातर मर्द इस बारे में बात करने से कतराते हैं,” एक गहरी सांस लेते हुए, वह छत की तरफ देखने लगी.

“मुझे तुम्हारा कूल्हा बहुत मस्त लगा, सेक्स के दौरान उन्हें पकड़ने में मज़ा आ रहा था.” मैंने सीलिंग पर बने सर्पिले पैटर्न को देखते हुए अटकती हुई आवाज़ में कहा.

वह मेरी तरफ मुड़ी और मुस्कराई.

“कुछ गलत तो नहीं कह दिया?” मैंने पूछा, क्योंकि उसकी तरफ से कोई जवाब नहीं आया था.

“अरे नहीं, बिल्कुल नहीं,” उसने मेरे नंगे, बिना बालों वाले, सीने पर अपना हाथ रखते हुए कहा, “मुझे तुम्हारी त्वचा बहुत पसंद है.”

“मुझे भी तुम्हारी त्वचा बहुत अच्छी लगती है,” मैंने जवाब दिया, यह सोचते हुए कि यही कहना बेहतर होगा. वैसे सच में मुझे उसकी त्वचा पसंद थी, उसकी गर्माहट और गुदगुदा बदन पसंद था, खासतौर से जब वह मेरे जिस्म से चिपकी होती थी तो मुझे बहुत सुकून मिलता था. “तुम वैसे बिल्कुल नहीं हो, जैसे मेरे पहले के पार्टनर रहे हैं,” उसने कहा.

उसकी यह बात सुनकर मैं थोड़ा चौंक-सा गया. मुझे समझ ही नहीं आया कि क्या कहूं. मैं बस चुपचाप सीलिंग पर बने सर्पिल पैटर्न देखने लगा. उन पैटर्न्स को देखते-देखते मुझे चक्कर-सा आने लगा. कुछ देर तक यह खामोशी बनी रही.

“तुम्हें यहां आने में ज़रा भी डर नहीं लगा? जब तुमने मेरे मैसेज का जवाब देना बंद कर दिया था, तब मुझे लगा था कि शायद तुम नहीं आओगी.”

वह मन ही मन मुस्कराती हुई बोली, “अरे नहीं, फोन की बैट्री खत्म हो गई थी. वैसे हां, यहां आने से पहले थोड़ी घबराहट तो थी ही. एक लड़की होने के नाते ऐसा होना स्वाभाविक भी है लेकिन मेरी उम्र के लोग ये सब समझते हैं… और फिर, मैं इस जगह के मालिक को जानती हूं, और एहतियातन मेरे हैंडबैग में पेपर स्प्रे तो रहता ही है.” उसने मज़ाक में मुझपर स्प्रे करने की एक्टिंग की.

“सिगरेट?” मैंने उसकी तरफ देखते हुए पूछा.

“हां.” हमने कुछ कपड़े पहने और ठंडी हवा का आनंद लेने के लिए बाहर निकल आए. हम अब पूरी तरह से होश में आ चुके थे.

“मैं खुश हूं कि यह किसी डरावने ख्वाब में नहीं बदला,” उसने कहा. मुझे लगा, वह शायद मुझे तसल्ली देने की कोशिश कर रही है. मुझे पता था कि उसका इशारा मेरी ओर ही था, लेकिन फिर भी मुझे अच्छा ही लगा.

हमने सिगरेट पी, फिर थोड़ी और शराब पी. फिर बिस्तर पर आ गए और तब तक सेक्स करते रहे जब तक कि थक कर चूर नहीं हो गए.

***

अगली सुबह, जब हम कॉम्प्लिमेंट्री ब्रेकफास्ट कर रहे थे, तो पिछली रात को लेकर हमारे पास बताने को बहुत कुछ था. हम कॉमन डाइनिंग एरिया वाले हट में थे. हमारे पास वाली टेबल पर एक बुज़ुर्ग जोड़ा बैठा था. उसने अपनी टी-शर्ट नीचे खींची और मुझे अपने सीने का ऊपरी हिस्सा दिखाया, जहां पर मेरे दांत के निशान थे.

“अरे क्या कर रही हो?” मैंने इधर-उधर देखा कि कोई हमें देख तो नहीं रहा है!

बुज़ुर्ग जोड़ा अखबार में डूबा हुआ था. मुझे हैरानी हुई कि लोगबाग अब भी ऐसा करते हैं.

“और भी हैं,” उसने अपनी स्कर्ट ऊपर उठाते हुए कहा और अपनी जांघों का अंदरूनी हिस्सा दिखाया. वहां भी दांतों के निशान थे.

“सॉरी,” मैं समझ नहीं पा रहा था कि यह शिकायत थी या कुछ और!

“अरे, पागल मत बनो. मुझे सच में मज़ा आया था,” उसने कांटे से अंगूर उठाते हुए कहा. अच्छा तो वह शिकायत नहीं, शाबाशी थी! यह सोचकर मुझे बहुत सुकून मिला.

“मुझे मज़ा आया जब तुम नीचे, मेरी टांगों के बीच, अपना मुंह ले गई थी.” अब बताने की मेरी बारी थी और मैंने सीधे शब्दों में कह दिया.

“मैं खुश हूं कि तुम्हें मज़ा आया. वरना हमारे यहां आने का मतलब ही क्या था?” अंगूर चूसते हुए मुस्कुराकर उसने कहा.

“एक बार फिर बताना तुम्हारी फ्लाइट कितने बजे है?” मैंने पूछा.

“रात में है. मुझे यहां से 8 बजे तक निकलना होगा. मतलब ज़्यादा वक्त नहीं है हमारे पास.”

“फिर तो हमें नाश्ता जल्दी खत्म कर लेना चाहिए.”

“अच्छा बताओ, तुम्हें और क्या करना पसंद है?,” उसने पूछा. मैं डोसा खा रहा था. उसका सवाल सुनकर एक पल को रुक-सा गया.

“मुझे गला दबाना पसंद है,” मैंने कहा और उसकी तरफ उत्सुकता से देखने लगा.

“अपना या दूसरों का?” उसके चेहरे पर अब भी भारी मुस्कान तैर रही थी.

“अपनी पार्टनर का,” मैंने अपने सिर को थोड़ा झुकाते हुए कहा और फिर चारों ओर देखने लगा कि कहीं किसी ने मेरी बात सुनी तो नहीं!

“फिर तो इस मामले में भी हमारी किस्मत अच्छी है”, उसने ब्लैक कॉफी का कप उठाया और एक घूंट भरते हुए कहा, “बताओ, तुम मेरा गला कैसे दबाना चाहोगे?” उसने फिर से अंगूर उठा लिया था.

जब हम वापस बेड पर आए तो मैंने उसे दिखाया कि मुझे क्या पसंद है. मैंने उसे बिस्तर पर घुटनों के बल बिठाया और पीछे से उसकी गर्दन पर अपनी बांहों का घेरा डाला और कसने लगा. मैं अपनी बांहों को कसता हुआ उसके कान में फुसफुसाया, “यह बिल्कुल वैसा है जैसा किताबों में लिखा होता है.” उसने अपने सिर के इशारे से बताया कि उसे मज़ा आ रहा है. उसको इसमें इतना मज़ा आ रहा था कि जब दोबारा मैंने ऐसा किया तो उसने और ज़ोर से दबाने को कहा.

फिर हमने उन तमाम चीज़ों पर बात की जो हमें पसंद थीं, और उन्हें लगभग मशीनी अंदाज़ में हमने किया भी. दरअसल हमारे पास समय बहुत कम था, और कामना बहुत ज़्यादा थी.

हमने सिगरेट का कश लिया.

“और क्या पसंद है तुम्हें?”

“ज़ोर से मारना?”

“जितना ज़ोर से चाहो, मारो. बिल्कुल भी झिझकना मत.”

मैं बिलकुल नहीं झिझका.

हमने फिर सिगरेट का कश लिया.

“और क्या पसंद है तुम्हें?”

“रस्सी के साथ खेलना?”

वहां रस्सी तो थी नहीं तो हमने बाथरूम के तौलियों से काम चलाया. मैंने उसे बेड के पाए से बांध दिया. “अगली बार हम पूरी तैयारी के साथ आएंगे,” उसने कहा.

“गले लगाना?”

“हां.”

और हम एक-दूसरे की बांहों में समा गए. ‘सेशन’ (हम इसे यही कहते थे) के अंत में, मैं हैरान था कि उसके साथ यह सब करना कितना सहज और स्वाभाविक लग रहा था, हम कितना खुलकर बातें कर रहे थे. सबकुछ इतना अच्छा और मज़ेदार लग रहा था कि यकीन ही नहीं हो पा रहा था.

ऐसा लग रहा था कि हम वैज्ञानिक हैं और अपनी चाहतों की परिकल्पनाओं पर गंभीर चर्चा कर रहे थे, नए-नए प्रयोग कर रहे थे और अपने ही प्रयोगों के परिणाम पर आश्चर्यचकित भी हो रहे थे.

“क्या यह इतना ही आसान है?” मैंने उससे पूछा.

“क्या?” उसने मेरे सीने पर रखा अपना सिर ऊपर उठाकर देखा. 

“इस तरह की ज़िंदगी.”

“ये कुछ भी है आसान तो नहीं है. लगभग एक दशक से मैं ऐसी ही ज़िंदगी जी रही हूं और कह सकती हूं कि खुशनुमा पल गिने-चुने ही रहे हैं…” बोलते-बोलते वह रुकी,

“तुमने देखा ही कि मैं एक अधेड़ उम्र की अविवाहित औरत हूं? इंडिया में? मुझे इस कारण जितने पार्टनर मिले हैं, उनसे कहीं ज़्यादा मैंने दोस्तों को खोया है.”

“ओह! माफ करना,” मैंने इस बारे में तो सोचा ही नहीं था.

हम दोनों एक-दूसरे की बांहों में ही सो गए.

जब हमारी नींद खुली, तो मुझे ऐसा महसूस हुआ जैसे, मेरे जिस्म का पोर-पोर टूट रहा हो. मैं थकन और भूख से बेहाल था. इतनी भी ताकत नहीं थी कि बाहर जा सकूं.

“खाना यहीं मंगा लेते हैं,” उसने कहा, “तुम्हें कब निकलना है?”

“जब तुम निकलोगी, मैं भी निकल जाऊंगा. बस स्टैंड से जो भी पहली बस मिल जाएगी, पकड़ लूंगा.”

“एडवेंचरस बॉय,” वह बुदबुदाई. मैं ‘एडवेंचरस’ शब्द पर फोकस करना चाहता था, लेकिन मेरा दिमाग़ ‘लड़के’ पर अटक गया.

उसने कुछ ऑर्डर करने के लिए फोन उठाया. इधर मेरा दिमाग ‘लड़के’ शब्द पर अटका था, और मैं इसी के बारे में सोचता-सोचता फिर से सो गया.

***

कुछ घंटों बाद उसने मुझे जगाया. वह बैंगनी रंग की ड्रेस पहने, मेरे ऊपर झुकी हुई थी. उसने कहा, “उठो! चलो एक आखिरी सिगरेट पीते हैं.”

“कितना बजा है?” मैंने खुद को कोहनियों के सहारे बिस्तर से उठाते हुए पूछा.

“बदक़िस्मती से अब जाने का वक्त हो चुका है,” वह चौकोर स्पीकर और फोन चार्जर जैसी छोटी-मोटी चीज़ें अपने हैंडबैग में पैक करने लगी.

“बस एक मिनट,” कहता हुआ मैं वाशरूम की ओर भागा और खुद को तरोताज़ा किया. जब मैं बाहर आया, उसके सूटकेस और बैग दरवाज़े के पास करीने से रखे थे. मैंने लाइटर जलाने की आवाज़ सुनी. मैं कमरे से बाहर निकला और उसके पास जाकर बैठ गया.

“मेरी कैब दस मिनट में आ जाएगी.”

मैंने एक सिगरेट उठाया और जलाया.

“तुम इसे छोड़ने वाले हो, है ना?”

“हां, और तुम?”

“मेरे लिए ऐसा करने का अब कोई खास मतलब नहीं है,” वह बमुश्किल इतना ही कह पाई, और मैं सोचने लगा कि उसने ऐसा क्यों कहा.

“नहीं, तुम्हें छोड़ देना चाहिए,” मैंने कहा, और मुझे तुरंत इसका पछतावा भी हुआ, क्योंकि ऐसा कहने का शायद मैं हक नहीं रखता था. जब उसने धुएं का गुब्बार उड़ाया, तब मैंने उसके चेहरे को गौर से देखा.

“सब बहुत बढ़िया था,” वह मेरी आंखों में झांकती हुई बोली, “मुझे लगता है कि हम दोनों की ट्यूनिंग बहुत अच्छी है. हम दोनों एक-दूसरे के लायक हैं. हमें फिर से मिलना चाहिए. संभव है कि अगली बार हम साथ में ज़्यादा वक्त बिताएं.”

मैं अंदर ही अंदर गर्मजोशी के एहसास से भर उठा. “हां-हां क्यों नहीं, मुझे भी बहुत अच्छा लगेगा,” मैंने स्वीकार किया और बगीचे की ओर देखा, फिर पहाड़ियों की ओर देखने लगा. मैं सोच रहा था कि क्या सचमुच कभी हमारी दोबारा मुलाकात हो पाएगी? जिस तरह यह विला पहाड़ियों से घिरा था, वैसे ही हम अपने ख्यालों से घिरे थे.

“मेरी कैब बस आने ही वाली होगी,” वह बोली और दरवाज़े की ओर बढ़ गई, जहां पर उसके बैग रखे थे.

“सुनो! मुझे तुमसे कुछ कहना था,” मैं कुर्सी पर बैठे-बैठे ही उसकी तरफ मुड़ा. उसने हैंडबैग अपने कंधे पर डाल लिया था.

“हां-हां, बताओ,” उसने ठिठकते हुए कहा.

“मैं ऊंची जाति का नहीं हूं,” मैंने उसको ध्यान से देखते हुए कहा.

ऐसा कहते समय मेरी आवाज़, बिल्कुल डोरबेल जैसी ही बेसुरी थी, जो कम-से-कम उस पल जो माहौल था, उससे तो बिल्कुल भी मेल नहीं खा रही थी. उसका चेहरा बिल्कुल सपाट था, शायद ऐसा पहली बार था, जब उसके चेहरे पर कोई भाव नहीं था. वह कुछ पल को ठिठकी और मेरे चेहरे को गौर से देखने लगी. “अच्छा! तो?” उसने हैंडबैग को सूटकेस पर रख दिया,

“क्या मेरी कोई बात तुमको बुरी लगी है?”

“नहीं-नहीं, ऐसी बात नहीं है. बस मुझे लगा कि तुम्हारे साथ मुझे ईमानदार होना चाहिए”, मैंने कहा और फिर पीठ फेरते हुए नीचे ज़मीन की ओर देखने लगा. “चूंकि हमने एक-दूसरे के बारे में खुलकर बात की थी, तो मुझे यह बताना भी ज़रूरी लगा.”

उसके चेहरे का भाव नहीं बदला. वह अब भी शांत थी. “ओह! बताने के लिए शुक्रिया,” वह वापस आई और मेरे पास बैठ गई. “सुनो, मुझे इससे कोई फर्क नहीं पड़ता. मुझे नहीं लगता कि इसका कोई मतलब है.”

“हां, मुझे पता है.”

“मैं तो सोच में पड़ गई थी कि कहीं कुछ ऐसा तो नहीं कह दिया जिसका तुम बुरा मान बैठे,” उसने जिस भोलेपन से कहा था, वह उसकी उम्र से मेल नहीं खाता था. जब उसने मुझे सोच में गुम देखा तो कहा, “इतना मत सोचो, वैसे भी अब मुझे जाना होगा.” उसका हैंडबैग फिर से उसके कंधे पर सवार हो चुका था. “मैं सच में चाहती हूं कि हम फिर मिलें.”

मैं उठा और उसको गले लगा लिया. उसने मुझे पूरी शिद्दत से गले लगाया और चूमा. “अपना ख्याल रखना. तुम्हारे साथ बिताए ये दो दिन मुझे बहुत याद आएंगे,” मैंने उससे कहा और उसका सूटकेस उठा लिया ताकि कैब तक पहुंचा सकूं.

मैं जब उसको विदा करते हुए अपने हाथ हिला रहा था, तब उसने कहा कि मैं बिल की चिंता न करूं और चाहूं तो रात यहीं रुक सकता हूं. मैंने उसको शुक्रिया कहा और उसकी सफेद कार कीचड़ भरे रास्ते पर पानी के गड्ढों से हिचकोले खाती आगे बढ़ गई.

गुलदाउदी और गार्डेनिया के फूलों के बीच से गुज़रता हुआ, मैं सोच रहा था कि क्या मुझे एक और रात यहीं रुक जाना चाहिए. माउंटेन हाउस पहुंचते-पहुंचते, मैंने यह फैसला कर लिया था कि अब कल सुबह ही निकलूंगा. सच कहूं तो यह उन सबसे खूबसूरत जगहों में से एक थी, जहां मैं कभी गया था. मैं श्योर नहीं था कि मुझे फिर कभी यहां आने का मौका मिलेगा भी या नहीं.

मैं अभी आकर मेज़ पर बैठा ही था और सिगरेट जलाई ही थी कि मोबाइल ने मैसेज आने का संकेत दिया.

स्क्रीन पर उसी का मैसेज था, “मुझे उम्मीद थी कि तुम रुकना चाहोगे.”

मैंने यह सोचते हुए फोन को एक तरफ रख दिया कि सिगरेट खत्म होने के बाद जवाब दूंगा.

मैं उससे बहुत कुछ कहना चाहता था. मैं कहना चाहता था कि उसके साथ बिताया वक्त बहुत ही खूबसूरत था. मैं बताना चाहता था कि उसके बाल और बदन की खुश्बू बहुत ही प्यारी थी. मैं कहना चाहता था कि फिल्मों के बारे में वह बहुत ही खूबसूरती से बातें करती है. लेकिन शब्द साथ नहीं दे रहे थे, सब गड्डमड्ड हो रहा था. बीप. बीप. बीप. एक-के-बाद-एक उसके कई मैसेज आते जा रहे थे, मैंने किसी को भी नहीं खोला. सिगरेट का गहरा कश खींचा. एक सिगरेट खत्म हुई तो दूसरा जला लिया. एक हल्की सी शर्मिंदगी की भावना, जो मेरे आस-पास की हर चीज़ को रौशन करने वाली चांदनी की तरह ही धुंधली थी, मुझ पर छाती जा रही थी. दूर चांद की रौशनी में बैंगनी रंग की पहाड़ियां दमक रही थीं. उनकी ठंडी हवा मुझे छू रही थी, ऐसा महसूस हो रहा था जैसे उसे मेरे लिए ही भेजा गया हो.

  • बीमा (लेखक का बदला हुआ नाम), अपनी कहानियों के ज़रिए यौनिकता, जाति और चाहतों के बीच क्या रिश्ता है इसे देखने, जानने-समझने का काम करते हैं. अड्डा, वासाफिरी, आउट ऑफ प्रिंट जैसी पत्रिकाओं में उनके लेख और कहानियां कुछ प्रकाशित हो चुकी हैं और कुछ शीघ्र प्रकाश्य हैं.

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