कार्यशालाओं और अन्य चर्चाओं में ये कहानी सुनाने के बाद इन सवालों से चर्चा को आगे बढ़ाया जा सकता है: लड़के के जन्म को क्या आज भी प्रधानता दी जाती है? लड़कियों को किस तरह के भेद-भाव का सामना करना पड़ता है? बिन्नी से उसकी अपनी मां ही दुत्कार देती है, इसके क्या कारण हो सकते हैं? लड़के-लड़की की संख्या से जुड़े आंकड़े क्या बनाते हैं?
‘बोलती कहानियां’ में हर बार हम लेकर आते हैं जेंडर, यौनिकता, सत्ता, जाति, जेंडर आधारित हिंसा जैसे विषयों पर एक नई रोचक कहानी. निरंतर के पिटारे के साथ-साथ हिन्दी साहित्य के विशाल भंडारे से चुनकर निकाली गई इन कहानियों के कई उपयोग हो सकते हैं. इन्हें जेंडर कार्यशालाओं में सुनाया जा सकता है, जहां गंभीर एवं जटिल विषयों पर बातचीत के लिए ये कहानियां सहायक का काम करती हैं. इन कहानियों को स्कूली विद्यार्थियों, कम्यूनिटी लाइब्रेरी, यूथ ग्रुप्स, प्रौढ़ शिक्षा केंद्र, पुरूषों के चर्चा समूहों में भी संबंधित विषयों पर बातचीत के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है, जो आमतौर पर उनके विमर्श के केंद्र से बाहर ही रहते हैं. निरंतर ट्रस्ट ने खुद इन कहानियों का इस्तेमाल फील्ड वर्कशॉप्स में किया है और इनसे वहां कभी गहरी, कभी रोचक और कभी चौका देने वाली चर्चाएं निकलकर सामने आई हैं.