कहानी सुनने के बाद इन सवालों से चर्चा को आगे बढ़ाया जा सकता है: क्या हमारी जाति हमारे काम से बड़ी है? कौन सा काम ऊंचे दर्जे का है और कौन सा निचले दर्जे का? अगर इलाज करने वाले डॉक्टरों के प्रति हमारे भीतर असीम इज़्ज़त होती है तो उन दाईयों के प्रति क्यों नहीं जो सालों के अनुभवों को अपने भीतर समेटे हुए प्रसव में जच्चा और बच्चा दोनों का ध्यान रखती हैं. ज़्यादातर दाईयां महिलाएं होती हैं इसके कारण जाति की दर्जाबंदी के साथ-साथ कई तरह की जेंडर से जुड़ी दर्जाबंदी भी साफ़ दिखाई देती है.
‘बोलती कहानियां’ में हर बार हम लेकर आते हैं जेंडर, यौनिकता, सत्ता, जाति, जेंडर आधारित हिंसा जैसे विषयों पर एक नई रोचक कहानी. निरंतर के पिटारे के साथ-साथ हिन्दी साहित्य के विशाल भंडारे से चुनकर निकाली गई इन कहानियों के कई उपयोग हो सकते हैं. इन्हें जेंडर कार्यशालाओं में सुनाया जा सकता है, जहां गंभीर एवं जटिल विषयों पर बातचीत के लिए ये कहानियां सहायक का काम करती हैं. इन कहानियों को स्कूली विद्यार्थियों, कम्यूनिटी लाइब्रेरी, यूथ ग्रुप्स, प्रौढ़ शिक्षा केंद्र, पुरूषों के चर्चा समूहों में भी संबंधित विषयों पर बातचीत के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है, जो आमतौर पर उनके विमर्श के केंद्र से बाहर ही रहते हैं. निरंतर ट्रस्ट ने खुद इन कहानियों का इस्तेमाल फील्ड वर्कशॉप्स में किया है और इनसे वहां कभी गहरी, कभी रोचक और कभी चौका देने वाली चर्चाएं निकलकर सामने आई हैं.