बहती हवा सी थी वो…

दोस्तों के साथ नियमों को तोड़ना, एक-दूसरे को सबकुछ कह देना, दोस्ती चाहतों के बारे में हमें क्या बताती है?

चित्रांकन: सामंता रायता

*कशिश लेखक का बदला हुआ नाम है.

यह लेख ‘द थर्ड आई’ सेक्सी लोग मेंटरशिप कार्यक्रम के तहत तैयार किया गया है. इस कार्यक्रम में भारत के अलग-अलग हिस्सों से चुने गए दस लोगों ने यौनिकता को लेकर ‘मज़ा और खतरा’ विषय पर अपने अनुभवों को लेख के रूप में तैयार किया है.

इस सफर में पांव नहीं दिल थक रहा है…

मेरी मम्मी हमेशा उससे बोलती थीं, “मैं सिर्फ तुम्हारी ज़िम्मेदारी में कशिश को भेज रही हूं. उसका ख्याल रखना.” और वो मम्मी से कहती, “आंटी मैं आपसे वादा करती हूं, मेरे होते हुए उसको कुछ नहीं होगा.”

सर्दियों की रात है. आसमान में इक्के-दुक्के तारे ही दिखाई दे रहे हैं. मैं आंखें बंद कर तुम्हारे बारे में सोच रही हूं. एक खामोश उम्मीद, एक खामोश आंसू, एक खामोश ख्वाहिश कि तुम यहां होतीं…

मैं उस वक्त को याद करने लगी जब मैं पहली बार दिल्ली जा रही थी.

ढलती सर्दी की ठंडक मौसम को सुहाना बना रही थी, आखिर वो प्यार का महीना जो था. मैं बहुत एक्साइटेड होकर ट्रेन का इंतज़ार कर रही हूं. उसी वक्त मेरे फोन पर एक कॉल आता है. “ट्रेन मिल गई? तुम्हें छोड़ने कौन आया है? आंटी अभी भी गुस्सा हैं क्या?” बिना सांस लिए एक सुर में वो ये सारे सवाल पूछती गई. मैंने कहा, “ट्रेन लेट है यार! पापा साथ आए हैं. मम्मी तो गुस्सा रहेंगी ही, उनको ये सब पसंद नहीं. मैं ट्रेन में बैठकर तुमको मैसेज कर दूंगी. सुबह पहुंचकर कॉल करुंगी. फोन साइलेंट पर रखकर मत सोना, बाए.”

मैं ट्रेन में बैठ गई. पापा ने जाते-जाते कहा, “जो समझाया है उसे ध्यान में रखना. अपना ख्याल रखना. मम्मी की टेंशन मत लो, मैं उनको समझा दूंगा. तुम आराम से जाओ.” और यहां से शुरू होता है मेरी ज़िंदगी का एक नया सफरनामा!

खुशी और डर दोनों को एक साथ महसूस कर रही थी मैं. खुशी कि अब मैं आज़ादी से जी पाऊंगी और अपने मन की कर पाऊंगी. डर, कि इतने बड़े शहर में मैं कैसे, क्या करूंगी? ये ख्याल दिल में आते ही मैंने लंबी सांस ली, और खुद से कहा – कुछ पाने के लिए इस डर को हराना होगा. ट्रेन की रफ्तार की तरह ही मेरे दिमाग में अलग-अलग तरह के विचार घूम रहे थे. कब सुबह हो गई पता ही नहीं चला. ट्रेन से कदम बाहर रखते ही मैं दिलवालों के शहर दिल्ली में थी.

एक छोटे शहर से, खुद का बोरिया-बिस्तर उठाए बंटी और बबली फिल्म की रानी मुखर्जी की तरह मेरे दिल में भी यही धुन बज रही थी- छोटे-छोटे शहरों से, खाली भोर दोपहरों से हम तो झोला उठा के चले. स्टेशन से बाहर निकलकर ऑटो किया और पहुंच गई उसके हॉस्टल. वहां पहुंचकर सारा को फोन घुमाया, “हॉस्टल के बाहर हूं, मुझे लेने आ जाओ.” उसने कहा, “यार अभी 6 भी नहीं बजे हैं, बहन***, ये हॉस्टल वाले गेट नहीं खोलेंगे. सामने एक पार्क है, तुम वहीं बैठो. मैं गेट खुलते ही तुम्हें बुला लूंगी.”

दिल्ली के एक बड़े ही आलीशान इलाके के, एक बहुत ही बड़े से बाग के बेंच पर बैठकर ऐसा लगा जैसे मैं एक बहुत बड़ा समय पीछे छोड़ आई हूं. वो समय जहां घर है, मम्मी-पापा हैं, मैं और सारा हैं. यादें!

हां, आप सारा को नहीं जानते. है न?. पहले ही बता देती हूं – ये नाम नहीं ब्रांड है! ब्रांड? किस कंपनी का? अरे, पहले मेरे साथ थोड़ा फ्लैश बैक में चलिए, वहीं पता चल जाएगा कि क्या माजरा है.

उत्तर प्रदेश का एक शहर है कन्नौज. वहां एक बड़े प्राइवेट स्कूल की ग्राउंड फ्लोर पर तीसरी क्लास में एक लड़की, यानी कि मैं, क्लास के भीतर जाती हूं. क्लास में बहुत सारे बच्चे हैं, टीचर नहीं है. मेरे सामने एक लड़की आती है. उसके बाल छोटे हैं, नाक बह रही है और उसके हाथ में समोसा है. लड़की मुझसे कहती है, “न्यू एडमिशन? क्या तुम समोसा खाओगी? वैसे तुम्हारा नाम क्या है? मुझसे दोस्ती करोगी?”

इतने सारे सवाल एक ही साथ. मैंने भी जवाब दिया, “हां ठीक…” मैं पूरा वाक्य बोल पाती उससे पहले उसने तपाक से कहा, “तो अब से हम बेस्ट फ्रेंड हैं!”

ये है सारा फ्रॉम कन्नौज!

कुछ लोग होते हैं न, जो आपको खुद आपसे बेहतर जानते हैं. भले ही आप कुछ न कहें लेकिन वो आपको आपकी रूह से पहचानते हैं. जानते हैं, आपका सच और सच में छुपा हुआ झूठ भी. बस वही कुछ लोग होते हैं जो आपको जानते हैं ”

सारा ऐसी ही है.

तभी पीछे से आवाज़ आती है, “कशिशशश्श्श्श, फाइनली तुम आ गईं.” मैं पलट कर देखती हूं और देखती ही रह जाती हूं. उफ्फ! वो इतनी हॉट लग रही थी. उसने शॉर्ट्स और टी-शर्ट पहन रखे थे. मैंने उसे देखते ही उससे कहा, “तुम वही सारा हो बचपन में जिसकी नाक बहा करती थी.” और वो चिल्लाकर कहती है, “बहन***, अपनी बेइज़्ज़ती करवाने के लिए तुमको यहां नहीं बुलाया है. इतने झूठ बोलने पड़े हैं तुम्हें यहां बुलाने के लिए.” मैंने भी पलट कर जवाब दिया, “दोस्ती की है निभानी तो पड़ेगी.” इसके साथ ही हम हंसते हुए गले मिलते हैं और हॉस्टल की तरफ चलते हैं.

बचपन में मुझे हॉस्टल्स को लेकर बड़े रंगीन ख्याल आते थे. सोचती थी कैसा होता होगा? वहां कैसे रहते होंगे? लड़कियां वहां, बहुत मस्ती करती होंगी. इतनी सारी लड़कियां एक जगह पर, एक साथ कितने मज़े करती होंगी सब.

इतने सालों बाद आज मैं एक गर्ल्स हॉस्टल के गेट के बाहर खड़ी थी. बातें करते-करते कब हम वहां पहुंच गए, पता ही नहीं चला. गेट से अंदर जाने पर सामने एक बड़ी सी बिल्डिंग दिखाई देती है – शारदा निवास: वर्किंग गर्ल्स हॉस्टल.

सारा, मुझे अपने साथ अंदर ले जाती है. भीतर एकदम सन्नाटा था. बिलकुल शोर नहीं. बीच में एक आंगन जैसी जगह थी जिसमें बहुत खूबसूरत फूल लगे थे और उसके चारों तरफ कमरे ही कमरे थे. बहुत ही खूबसूरत हॉस्टल था. सफाई ऐसी कि एक तिनका भी ज़मीन पर न दिखे. मैं अपना एडमिशन फॉर्म भर्ती हूं.

उसके बाद सारा मुझे अपने कमरे में ले जाती है. उसका कमरा, माफ कीजिएगा अब हमारा कमरा. क्योंकि अब उस कमरे में मैं भी रहनेवाली हूं. हां, हॉस्टल में मेरा भी अब एक कमरा है! मैं अपना सामान रखती हूं. मैंने सारा से पूछा, “कमरे में प्लग प्वाइंट कहां है? मुझे मोबाइल चार्ज करना है.” उसने जवाब दिया, “कमरे में कोई प्लग पॉइंट नहीं है. मोबाइल चार्ज करने के लिए कॉरिडोर में जाना होगा.” “लेकिन क्यों?” वो हंसते हुए कहती है, “स्वागत है आपका हॉस्टल लाइफ में.” और आगे बताती है, “अब सुनो, यहां के रूल्स – यहां सुबह सिर्फ 7 बजे तक ही पानी आएगा तो उससे पहले उठकर नहा लेना. सुबह 6 से 9 बजे और शाम को 6 से 9 बजे तक गैस का कनेक्शन ऑन होगा, खाना उसी समय बनाना. यहां आप ज़्यादा तेज़ आवाज़ में बात नहीं कर सकते. ज़ोर-ज़ोर से हंस नहीं सकते. रात को 10 बजे के बाद कमरे की लाइट अगर ऑन रही तो 50 रुपए देने होंगे. सुबह 6 बजे हॉस्टल का गेट खुलता है, तभी आप बाहर जा सकते हैं. और रात 10 बजे के बाद एंट्री नहीं है. रोज़ रात हॉस्टल में अटेंडेंस लगती है. अगर रात को आप प्रेजेंट नहीं हुए तो आपके लोकल गार्डियन को कॉल किया जाएगा.”

ये सब सुनकर मेरा दिमाग झन्ना जाता है. गुस्से में मैं सारा से कहती हूं, “तुम यहां कैसे रह रही हो? इतने स्ट्रिक्ट तो हमारे मां-बाप भी नहीं हैं. इतने रूल्स के साथ मैं कैसे रहूंगी, मुझे आदत नहीं.” “तुम इतना क्यों परेशान हो रही हो. ये तो उनके रूल्स हैं और रूल्स होते ही हैं तोड़ने के लिए. हमको जो करना है हम वही करेंगे.”

हां, सारा ने मुझे बचपन से यही सिखाया है कि ‘रूल्स बनाए ही जाते हैं तोड़ने के लिए.’

***

वैसे, बचपन में हम सिर्फ चौथी और पांचवी क्लास में साथ पढ़े. उसके बाद सारा छठी क्लास में हॉस्टल चली गई. हम दोनों सिर्फ छुट्टियों में मिलते. मैं हमेशा उसकी छुट्टियों का इंतज़ार करती. क्यों? पता नहीं. मुझे उससे मिलना बहुत अच्छा लगता था और शायद उसे भी.

वो मुझे अपने हॉस्टल की कहानियां सुनाती और मैं उसे यहां की बातें बताती. उसकी बातें सुनकर मुझे मज़ा आता और मैं हंसती रहती. इस तरह चार साल बीत गए.

दसवी पास करने के बाद मैंने स्कूटी ले ली. इस बार जब वो छुट्टियों में घर आई तो मैं उससे मिलने स्कूटी से गई और उसे कहा, “चलो तुम्हें घुमा लाऊं.” वो बहुत खुश हो गई. उसने पूछा, “क्या तुम मेरी बेस्ट फ्रेंड को भी अपने साथ ले चलोगी?” हॉस्टल में रहते हुए सारा की एक बेस्ट फ्रेंड बन गई थी. सारा, जब भी उसकी बातें करती या उसे अपनी बेस्ट फ्रेंड कहती, मुझे अच्छा नहीं लगता और बहुत गुस्सा आता था. पर, मैं उससे कुछ नहीं बोलती.

ईशा, सारा की बेस्ट फ्रेंड. ऐसा लगता जैसे हमारी दोस्ती के बीच कोई तीसरा आ गया है. या कहीं मैं उन दोनों की दोस्ती के बीच तीसरी तो नहीं!

मैं यही सोचती कि ‘क्या इतना आसान होता है किसी और को बेस्ट फ्रेंड कहना या बेस्ट फ्रेंड को रिप्लेस कर देना, मेरे हिस्से की दोस्ती किसी और को देना.’ कई सवाल दिमाग में घूमने लगते – क्या ईशा मुझसे अच्छी दोस्त है? हर वक्त ऐसा महसूस होता कि जैसे मुझमें कोई कमी है. मेरी दोस्ती सारा के लिए काफी नहीं है.

“मैडम किन ख्यालों में खोई हो?” ये कहते हुए सारा इन सवालों से मुझे बाहर खींच लाती. फिर हम तीनों स्कूटी पर निकल जाते, एक-एक कोना नापने. हम पूरा दिन साथ घूमते. पर, अक्सर शाम में ईशा को उसके घर छोड़ने के बाद जब मैं सारा को उसके घर छोड़ने जाती तो उससे बोल ही देती, “मुझे अच्छा नहीं लगता जब भी तुम ईशा को बेस्ट फ्रेंड बोलती हो. तुम मेरी दोस्त हो, बस.” वो कहती, “यार, अब वो भी मेरी दोस्त है. हम 4 साल से एक ही रूम में रहते हैं. वो हमारी तरह ही है. तुम उसे अपना दोस्त बना लो फिर हम तीनों बेस्ट फ्रेंड बन जाएंगे.” और ऐसा ही हुआ. मुझे अब सारा और मेरे बीच ईशा का होना उतना बुरा नहीं लगता था. हम तीनों दोस्त बन चुके थे. लेकिन कहीं ना कहीं उन दोनों की दोस्ती या सारा का उसके साथ ज़्यादा कम्फर्ट होना, मुझे अभी भी बेचैन करता था.

जब सारा और ईशा, दोनों को सिगरेट पीना होता तो मैं उन्हें स्कूटी पर बिठाकर मोहल्ले से दूर ले जाती ताकि वे आराम से सिगरेट पी सकें. ऐसा करते हुए मुझे बहुत डर लगता था और मैं उनसे बोलती, “तुम दोनों तो यहां नहीं रहती हो, यहां तुम्हें कोई जानता भी नहीं है लेकिन मैं यहीं रहती हूं, मुझे किसी ने देख लिया तो मेरा घर से निकलना बंद हो जाएगा.” और सारा तपाक से कहती, “कोई देखेगा तो मैं हूं ना! संभाल लूंगी.” हां, इसमें डर के साथ मज़ा भी बहुत था.

अब ये सिलसिला सा हो चुका था. सारा, कन्नोज आती तो हम ईशा के घर मिलने का प्लान बनाते. इसलिए क्योंकि दिन में उसकी छोटी बहन के अलावा और कोई उसके घर पर नहीं होता. ईशा के घर जाकर हम वेस्टर्न कपड़े पहन-पहन कर फोटो क्लिक करते, डांस करते और एकदम बिंदास होकर बातें करते. उसके घर पर किसी चीज़ का डर नहीं था. शायद इसलिए भी कि हमारे मम्मी-पापा एक-दूसरे को नहीं जानते थे. तो, यहां कुछ करते पकड़े जाने का डर खत्म हो गया था. उन दोनों के साथ मैं आज़ाद महसूस करती थी.

एक दिन ईशा के घर पर सिर्फ हम तीनों ही थे. वहां, ईशा ने बताया कि वो हॉस्टल में झूठ बोल कर अपने बॉयफ्रेंड से मिलने कानपुर गई थी. दो दिन उसने खूब सारी मस्ती की. उसकी तस्वीरें देखकर मैं मन ही मन सोचने लगी कि काश, मैं भी ऐसे बाहर जा पाती और घूम पाती. मैंने उन्हें बताया कि मैं और राहुल तो सिर्फ स्कूल में ही मिलकर बात कर पाते हैं. कन्नौज इतनी छोटी जगह है कि बाहर मिलने का सोच भी नहीं सकते. तभी सारा ने कहा, “तुम उसे यहां बुला लो.” उसने ईशा से पूछा, “क्यों ईशा तुम्हारे घर में कोई नहीं है, कशिश यहां मिल सकती है ना?” ईशा ने भी हामी भर दी. इस तरह अब राहुल और मैं, ईशा के घर पर मिलने लगे.

एक समय ऐसा भी आया जब सारा और ईशा ग्रेजुएशन की पढ़ाई के लिए बनारस चले गए. मैंने, यहीं कन्नोज के एक कॉलेज में एडमिशन ले लिया था. कॉलेज में मेरी एक दोस्त बनी- सानवी. हमने साथ में कॉलेज और कोचिंग जाना शुरू कर दिया. धीरे-धीरे सानवी के साथ मेरी दोस्ती गहरी होती जा रही थी. उधर बनारस में सारा और ईशा अपनी ज़िंदगी में मस्त थे. ग्रेजुएशन के साथ मैं एक कंप्यूटर कोर्स भी कर रही थी. एक बार उसकी परीक्षा का सेंटर बनारस था. मैंने सारा को बताया कि मैं एग्ज़ाम देने बनारस आ रही हूं. वो बहुत खुश हुई. बनारस, उस समय मेरे साथ पापा भी गए लेकिन मैं तो सारा के पास ही रुकी. दो दिन उसने मुझे बहुत घुमाया और अपने सारे लड़के दोस्तों से मिलवाया.

एक शाम सारा के साथ बनारस के बाज़ार से घर लौटते वक्त मैं उसे बता रही थी कि यहां दोस्तों से मिलना कितना आसान है. किसी चीज़ का डर नहीं. कोई आपको जज करेगा या आपके घर तक बात जाएगी, इसका खौफ नहीं. कन्नौज में मैं तो अपने बॉयफ्रेंड से मिल भी नहीं सकती. यहां तक की कॉलेज की दोस्तों को भी उसके बारे में कुछ नहीं पता क्योंकि हमारा धर्म अलग है.

वहां तो सबके दिमाग में एक ही बात होती है कि अगर आपका बॉयफ्रेंड है, मतलब आप दोनों एक-दूसरे से शादी करना चाहते हैं! और अगर ऐसा नहीं है तो आपका चरित्र खराब है.

इस डर से मैं उनको बता ही नहीं पाती. हां, उन दोस्तों के बॉयफ्रैंड्स के बारे में मुझे पता है. यहां तक की जब वो उनसे मिलने जाती हैं तो मैं उनको छोड़ कर आती हूं. वे अपने घर में झूठ बोल कर जाती हैं कि मेरे साथ जा रही हैं. और अगर वो कहीं फंसती हैं तो मैं उनको बचा भी लेती हूं लेकिन मैं उनको बता कर नहीं जा सकती कि मैं मिलने जा रही हूं.

मैं और सारा ये बातें कर ही रहे थे कि पता ही नहीं चला कब हम सारा के कमरे पर वापस पहुंच गए. अब अगले दिन मुझे कन्नौज वापस लौटना है.

कुछ समय बाद दशहरे के मौके पर सारा कन्नौज आई. इस बार मैं उसे मेरे कॉलेज के दोस्तों से मिलवाना चाहती थी. प्लान बना और हम सभी सानवी के घर के पहुंच गए. मेरे साथ सारा भी थी. वहां पहुंचकर सारा ने ईशा को भी बुला लिया.

हम सब बैठकर गप्पे लगाते हैं. सारा और ईशा अपने हॉस्टल के किस्से पर किस्से बताए जा रही थीं. तभी मैंने गौर किया कि इन दोनों की बातें सुनकर कॉलेज की सारी दोस्त मुंह बना रही थीं. वो लोग बार-बार रूम से उठ बाहर जातीं और धीरे-धीरे बाहर आपस में बातें करतीं. मुझे बहुत बुरा फील हो रहा था और मुझे पता है कहीं न कहीं सारा और ईशा भी अच्छा महसूस नहीं कर रही थीं. पर उस समय किसी ने किसी से कुछ नहीं कहा. थोड़ी देर में हम सभी अपने-अपने घर चले गए.

अगले दिन मैं अपने कॉलेज के दोस्तों से मिलती हूं. वो मुझसे बोल रही थीं, “कैसी दोस्त हैं तुम्हारी, कैसे कपड़े पहनती हैं?” पिछली शाम ईशा ने उन्हें ये भी बताया था कि वो जिस लड़के को डेट कर रही है वो मुस्लिम है. साथ ही कि वो ड्रिंक करती है, सिग्रेट पीती है. ये सब जानने के बाद तो कॉलेज की दोस्तों ने साफ-साफ कहा, “हमें नहीं मिलना तुम्हारे ऐसे दोस्तों से और तुम भी ईशा से दोस्ती खत्म कर दो.” मैं उन्हें समझाने की कोशिश करती हूं, “वे दोनों बहुत अच्छी लड़कियां हैं. पहले मैं भी ऐसे ही सोचती थी लेकिन वो दोस्त अच्छी हैं और किसी के कपड़ो से क्यों उसको जज करना यार.”

जब हमारे खुद के रिश्तेदार जिनकी बेटियां पर्दे में रहती हैं और बिना भाई या पापा के कहीं नहीं जातीं, हमारे बाहर घूमने पर, हम लोगों के जींस पहनने पर, स्कूटी चलाने पर और हॉस्टल जाकर पार्टियां करने पर उंगलियां उठाते हैं, हमें बुरा बोलते हैं तो हमें भी तो बुरा लगता है. हम सोचते हैं कि कोई हमको जज कर रहा है तो उसकी सोच छोटी है. पर, जब हम किसी के छोटे कपड़े देख कर, अलग धर्म में प्यार करने से उसको जज कर रहे हैं तो हमारी सोच भी तो गलत ही है. वहां मेरे दोस्तों से मेरी बहस हो जाती है और मैं वहां से आ जाती हूं. उसके बाद कुछ दिन उन लोगों से नहीं मिलती.

सारा, मुझसे कॉल पर बार-बार बोलती है, “तुम बात करो उन लोगों से. इसमें उनकी गलती नहीं है. हमारे दिमाग में बचपन से ही ये बातें बैठा दी जाती हैं कि ये सारे काम गलत हैं और हम भी वही मानते हैं.” लेकिन मेरा कहना था कि वो एक लड़की है इसलिए ऐसा क्यों? “मैं जानती हूं इनमें से एक के भाई की गर्लफ्रेंड अलग रिलीजन से है और एक का बॉयफ्रेंड सिगरेट पीता है. अगर कुछ गलत है तो वो सबके लिए गलत होना चाहिए.”

और कहीं न कहीं मेरे दिमाग में ये भी ख्याल आ रहा था कि मुझे तो ईशा इतनी पसंद भी नहीं है फिर क्यों मुझे उसके लिए इतना बुरा लग रहा है? और मैं उसके लिए क्यों अपनी दोस्तियां खराब कर रही हूं?

उसने मुझसे मेरी बचपन की दोस्त को छीना है. खैर, अब कॉलेज की दोस्तों से ज़्यादा समय तक बात न हो ऐसा मुमकिन नहीं. हम सब एक ही कॉलेज और कोचिंग में पढ़ते थे तो बात करना स्टार्ट हो जाता है. लेकिन कहीं ना कहीं खिंचाव भी मह्सूस हो रहा था. मैं उन लोगों से और वो लोग मुझसे कम ही बात कर रहे थे लेकिन कुछ समय बाद सब पहले जैसा हो जाता है.

मैं और सानवी एक ही स्कूटी में कोचिंग जाते थे. कभी हम उसकी स्कूटी से जाते तो कभी वो मेरी स्कूटी से. बहुत दिनों से हम नोटिस कर रहे थे एक लड़का हमारी स्कूटी का बाइक से पीछा करता था और कोचिंग के बाहर खड़ा रहता था. मेरे मोबाइल में अलग-अलग नंबर से कॉल आते थे जिसकी वजह से मेरा फोन साइलेंट पर ही रहता था. फ़ोन साइलेंट होने की वजह से मैं घरवालों की कॉल भी नहीं उठा पाती थी. जिसकी वजह से घर में भी मुझे डांट पढ़ती थी. ऊपर से मेरा बॉयफ्रेंड मुझसे कहता कि घर में बता दो कि कोई लड़का परेशान करता है. मैं उससे यही बोलती, “घरवालों को बताया तो मेरा कॉलेज और कोचिंग जाना बंद हो जाएगा.”

एक दिन मैं अकेले कोचिंग जा रही थी. उस लड़के ने मेरी स्कूटी के सामने अपनी बाइक रोकी और मुझसे बोला, “मैं तुमको पसंद करता हूं. तुम मेरी गर्लफ्रेंड बन जाओ.” जब मैंने उसे मना किया तो वो बोला, “तुमको बहुत घमंड है ना अपने चेहरे पर! इसके ऊपर तो मैं तेज़ाब फेकूंगा.” यह सुनने के बाद मैं घर आई और मैं इतना डर गई थी कि मेरी समझ नहीं आ रहा था कि मैं किस्से बात करूं. घर में बता नहीं सकती थी, कुछ समझ नहीं आ रहा था. फिर मैंने सारा को कॉल किया और उसको सब बताया. मैंने उससे कहा कि वो मुझे यहां से कुछ दिनों के लिए ले जाए क्योंकि अगर मैं यहां रही तो मेरे साथ बहुत बुरा होगा.

सारा मुझसे बोली, “तुम परेशान मत हो, मैं आती हूं. तब तक तुम अपने घरवालों को मनाओ कि तुमको कोचिंग करने बाहर जाना है.” मैंने घर में बात की और ज़िद करके उन्हें मना लिया कि 5-6 महीने के लिए ही जा रही हूं. जब मैंने अपने कन्नौज के दोस्तों को बताया कि मैं कुछ समय के लिए बाहर जा रही हूं तो वो गुस्सा हो गए.

“तुम ऐसे कैसे जा सकती हो?”

वो समझने को तैयार नहीं थे और मैं उस समय सोच रही थी कि एक दोस्त सारा है जो सब छोड़ कर मुझे लेने आ रही है और एक दोस्त ये हैं जो अपने फायदे के लिए मुझे जाने नहीं दे रहे. सारी चीज़े एक साथ हो रही थीं. मेरे जाने से दोस्त गुस्सा थे, मेरा बॉयफ्रेंड भी गुस्सा था लेकिन कोई मेरी सिचुएशन नहीं समझ रहा था.

3 दिन बाद सारा आती है मुझे अपने साथ बनारस ले जाने के लिए. हम दोनों बनारस जाने के लिए रिज़र्वेशन कराने स्टेशन जाते हैं. मैने सारा से कहा कि वो आगे जाए, मैं स्कूटी खड़ी करके आती हूं. वो आगे चली जाती है और मैं स्कूटी खड़ी करके उसके पीछे जाती हूं. वहां पिलर के पास एक लड़का खड़ा होता है जो अपना पैर लगा कर मुझे गिराने कि कोशिश करता है. मैं गिरते-गिरते बचती हूं. जब हम रिज़र्वेशन करा कर लौट रहे होते हैं तो मैं सारा को बताती हूं कि ये जो लड़का हमारी तरफ आ रहा है, इसने पैर लगाकर मुझे गिराने कि कोशिश की थी और अब वो फिर हमारी तरफ ही आ रहा है. ये सुनते ही वो अपने कदम और तेज़ बढ़ाने लगती है और जैसे ही वो लड़का हमारी बगल से निकल रहा होता है सारा अपना पैर उसके आगे लगा देती है.

वो उसको धक्का देती है और लड़का गिर जाता है. फिर रुक कर उससे बोलती है, “ऐसे गिराया जाता है. आगे से धयान रखना.” स्टेशन में सब लोग ये देख हंसने लगते हैं.

मैं सारा का हाथ पकड़कर बोलती हूं, “यहां से जल्दी चलो”. मैं जल्दी से स्कूटी के पास आती हूं और हम दोनों वहां से निकलते हैं. मैं उसे कहती हूं, “क्या ज़रूरत थी तुमको ये सब करने की?” वो जवाब देती है, “उसको सिखा कर आई हूं, कैसे गिराते हैं. अब वो कभी नहीं भूलेगा.” अब मुझे उसकी बात पर हंसी आ जाती है. दो दिन बाद सारा के साथ मैं बनारस चली जाती हूं.

अब मैं, सारा और ईशा के साथ बनारस में रह रही हूं. मैंने वहां SSC की कोचिंग ज्वाइन कर ली. हम तीनों बहुत मज़े से रह रहे थे. 3-4 दिन बाद तो सानवी का मैसेज भी आ जाता है और मैं उसको हमारे रूम की फोटोज़ भेजती हूं.

***
अब मुझे दिल्ली आए और सारा के साथ हॉस्टल में रहते हुए 20 दिन हो गए हैं. इन 20 दिनों में अभी तक सानवी से मेरी बात नहीं हुई है. वो मेरे दिल्ली आने से गुस्सा है. सारा कहती है, “वो तो तुम्हारे बनारस जाने के टाइम भी गुस्सा ही हो गई थी. तुम परेशान मत हो, उसका क्या है, ना तो उसको खुद अपनी लाइफ में कुछ करना है और ना ही तुमको करने देगी. अपने आप उसकी कॉल आएगी. इसमें तुम्हारी कोई गलती नहीं.”

हां, सच में मेरी गलती नहीं है! सारा सही कह रही है.

मैं सोचने लगी कि कन्नौज में रहते हुए पिछले सात सालों से हम पूरा शहर एक ही स्कूटी में घूमा करते थे. ज़्यादातर दोपहर का खाना मैंने उसके घर में खाया है. मेरे हर बर्थडे पर मुझसे ज़्यादा एक्ससाइटेड वो होती थी. सारा के बाद, सानवी वो दूसरी लड़की है जिसको मेरा पूरा खानदान जानता है. मेरा क्या, सारा का खुद का खानदान भी उसे जानता है. सारा ने भी उसके साथ दो साल बिताएं हैं. माना, उसे बुरा लग रहा होगा मेरे दिल्ली आने से, वो अकेली हो गई होगी. ये बात वो मुझसे बोल नहीं पा रही है इसलिए शायद वो मुझसे गुस्सा होकर अपनी नाराज़गी ज़ाहिर कर रही है.

लेकिन इस बार मैं भी उससे खफा हूं. अगर बुरा लग रहा है तो बोलती यार! किसी दूसरों से उसने जो बातें की हैं वो मुझे अच्छी नहीं लगीं. उसने दूसरे लोगों से कहा, “पता नहीं कशिश वहां क्या करने गई है और क्या ही कर लेगी वो वहां!” अगर हम दोनों को एक-दूसरे की बात बुरी लगती है तो किसी और के पास तो नहीं जाते . एक दूसरे से ही बोलते हैं वो भी मुझसे बोल सकती थी. खैर…

ये सब सोचते हुए अचानक मेरे दिमाग की बत्ती जलती है औऱ मैं सारा से कहती हूं, “अहा! वैसे एक बात बताओ कुछ जल रहा है क्या? कुछ जलने की बदबू आ रही है.” सारा,पलट कर जवाब देती है, “हां, मेरा दिल जल रहा है, बताओ क्या कर सकती हो?” “अच्छा तुमको क्यों जलन हो रही है? जिस तरह तुम्हारी बेस्ट फ्रेंड ईशा बन गई वैसे ही मेरी बेस्ट फ्रेंड सानवी बन गई है. वैसे आज तुमको महसूस तो हो रहा होगा कि कितना बुरा लगता है?”

“बकवास बंद करो और जल्दी मेकअप करो. इन कपड़ों पर ऊपर से जैकेट डाल लेना, हील्स बैग में रख लेना और नाइट सूट भी पैक कर लेना. क्लब से लौटने में देर हो जाएगी तो मैंने एक लड़की से बात कर ली है. उसके रूम में रुक जाएंगे.”

“और हॉस्टल में क्या बोलोगी?”

“वो मैं कुछ जुगाड़ कर लूंगी. तुम उसकी टेंशन मत लो.”

“पक्का संभाल लोगी ना?”

“हां यार, आज तक संभालती आ रही हूं ना!”

मैं सारा की तरफ देख रही हूं, मेरे लिए दिल्ली का मतलब सारा है और सारा का मतलब दिल्ली…

आज दोनों नहीं है!

आगे जारी…

कशिश उत्तर प्रदेश की रहने वाली हैं. उन्हें प्यार, दोस्ती और रोज़मर्रा की ज़िंदगी जैसे विषयों पर लेखन करना पसंद है.

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