औरत और काम

उपस्थिति दर्ज करने की ज़िद

किसान मां और पुलिस में नौकरी करने वाले पिता की बेटी, सेजल राठवा, पत्रकार बनने वाली अपने समुदाय की पहली लड़की है. छोटा उदयपुर की रहने वाली सेजल ने बतौर ब्रॉडकास्ट जर्नलिस्ट, वडोदरा, गुजरात के वीएनएम टीवी के साथ पत्रकारिता के करियर की शुरुआत की.

टीचर टॉक्स: सीज़न 2. एपिसोड 2

‘टीचर टॉक्स’ सीज़न दो के दूसरे एपिसोड में मिलिए पाकुर, झारखंड की असनारा खातून से जो अपने परिवार की पहली शिक्षिका हैं. पाकुर के एक ऐसे इलाके में जहां लड़कियों की पढ़ाई से ज़्यादा ज़रूरी उनको बीड़ी बनाने के काम में लगाना है, असनारा बस अपनी धुन में पढ़ती ही गईं.

टीचर टॉक्स: सीज़न 2. एपिसोड 1

टीचर टॉक्स के दूसरे सीज़न में मिलिए ऐसी शिक्षिकाओं से जो अपने परिवार में शिक्षा प्राप्त करने वाली पहली पीढ़ी से हैं. वीडियो में वे बतौर विद्यार्थी शिक्षा प्राप्त करने के अपने अनुभवों के साथ, वर्तमान में अनौपचारिक शिक्षण केंद्रों में बच्चों को पढ़ाने के अनुभव साझा कर रही हैं.

बेबी हालदार के साथ एक बातचीत

साल 2002 बहुत सारी घटनाओं के लिए इतिहास में दर्ज है. उन्हीं में से एक असाधारण घटना थी ‘आलो आंधारि’ किताब का प्रकाशन. इस किताब के शब्दों ने घरेलू कामगारों के साथ होने वाली हिंसा और गरीबी में डूबी एक ऐसी दुनिया का दरवाज़ा खोलने का काम किया जिसके बारे में शायद ही कभी कोई बात होती थी.

“गांव में लोग रात में मछली पकड़ते हैं और शहरों में अपना काम पूरा करके सो जाते हैं”

मेरा गांव कोंकेया, झारखंड के खूंटी ज़िले में आता है. मुझे वहां के पर्व-त्यौहारों में सभी के साथ मिलकर नाचना-गाना, एक-दूसरे के घर जाना, मिठाई खाना, वहां की चहल-पहल अच्छी लगती है. खासकर जब ढोल, नगाड़े, मादर बजते हैं और लोग साथ में गाने हैं, मुझे बड़ी खुशी होती है.

“पहले घर में कपड़े रखने के लिए कुछ नहीं था, तो मुझे बहुत खुशी हुई कि अब मेरे घर में भी बक्सा है.”

मैं अपने गांव कोंकेया से, जो झारखंड के खूंटी ज़िले में आता है, दिल्ली इसलिए गई कि मेरे गांव की दो लड़कियां दिल्ली गई हुई थीं. जब भी दोनों गांव आती थीं, अच्छे कपड़े पहनतीं, उनके पैरों में चप्पल होती, अच्छी खुशबू वाला तेल लगातीं, चेहरा गोरा यानी साफ दिखता था, मोटी होकर आतीं.

लाइफ इन फाइव: संगीता जोगी

संगीता जोगी कलाकार हैं. वे मज़दूरी भी करती हैं. अपने दो बच्चों और परिवार के साथ संगीता राजस्थान के माउंटआबू ज़िले के काचौरी गांव में रहती हैं. हाल ही में तारा बुक्स से प्रकाशित उनकी चित्रात्मक किताब ‘द विमेन आई कुड बी’ पढ़ी-लिखी आज़ाद ख़्याल महिलाओं की कहानी चित्रों के ज़रिए उकेरती है.

फिल्मों के ज़रिए क्या आप ‘औरत और काम’ पर बातचीत शुरू करना चाहते हैं?

सिनेमा में, कामकाजी महिलाएं अक्सर शर्म और गर्व की दोधारी तलवार को संभालती नज़र आती हैं. उन्हें क्या काम करना चाहिए या क्या नहीं करना चाहिए? हमने दो फिल्में ली हैं जो औरत और काम पर हैं…

मेरी मां के हाथ

शिवम को इंस्टाग्राम पर 16 mm फ़िल्टर मिला जिसे इस्तेमाल करके उन्होने अपनी मां के काम करते छोटे-छोटे वीडियो बनाने शुरू किए, खासकर उनके हाथों के. “मेरी मां हमेशा से ही ऑफिस जा रही हैं. लॉकडाउन पहला ऐसा मौका था जब वे लगातार हमारे साथ थीं.”

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