
कोविड-19 और लॉकडाउन के बीच की ग़ायब कड़ी
विकलांगता अधिकारों के लिए काम करने वाली जीजा घोष ने कोविड-19 के कारण राष्ट्र स्तर पर हुए लॉकडाउन के दौरान विकलांग समुदाय के लोगों से बातचीत की.
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सामाजिक, राजनीतिक, बौद्धिक विचार के रूप में काम. इसके इतिहास और विकास की नारीवादी नज़रिए से छानबीन
विकलांगता अधिकारों के लिए काम करने वाली जीजा घोष ने कोविड-19 के कारण राष्ट्र स्तर पर हुए लॉकडाउन के दौरान विकलांग समुदाय के लोगों से बातचीत की.
अगर ज़्यादा से ज़्यादा लोग ऑनलाइन की तरफ़ बढ़ रहे हैं, तो समाज में मौजूद हिंसा कहां जा रही है? ज़ाहिर है, ऑनलाइन. ‘स्टे होम, कितना सुरिक्षत?’ के दूसरे एपिसोड में, माधुरी समझने की कोशिश कर रही हैं कि क्या हमारा डिजिटल सेल्फ़ हमारी परछाई है? या हमारी पहचान का अटूट अंग?
‘बुलंद आवाज़ें’ शृंखला में जिस पहले मुद्दे पर हम बात करने जा रहे हैं, वो है – भारत में लड़कियों की शादी की तय की गई कानूनन उम्र में किया जा रहा बदलाव.
बुलंद आवाज़ें का पहला खण्ड, भारतीय महिलाओं की शादी की वैधिक उम्र में किए जा रहे बदलाव की पड़ताल करता है.
इस कॉलम को अंकुर संस्था के साथ साझेदारी में शुरू किया गया है. अंकुर संस्था द्वारा बनाई जा रही विरासत, संस्कृति और ज्ञान की गढ़न से तैयार सामाग्री की है और इसी विरासत की कुछ झलकियां हम इस कॉलम के ज़रिए आपके सामने पेश कर रहे हैं.
जुबान ने, जो एक नारीवादी प्रकाशक है, ‘द पोस्टर वीमेन प्रोजेक्ट’ के अंतर्गत भारत के सभी राज्यों से महिला आंदोलनों के पोस्टर जमा किए. इन पोस्टरों में से ‘महिला और काम’ पर जमा हुए पोस्टर हमने सद्भावना ट्रस्ट की बेबाक लड़कियों को दिखाए.
द थर्ड आई प्रस्तुत करती है खबर लहरिया की पूजा पांडे और सुनीता प्रजापति के बीच बातचीत.
‘चंबल मीडिया’ के सहयोग से, हम ले कर आए हैं ‘लिटिल फ़िल्म शृंखला’ जो हर दिखाई देने वाली चीज़ का दूसरा पहलू तलाशती है.
जहां हम देश की अलग अलग जगहों के शिक्षकों से मिलते हैं, जो बताते हैं कि वे भाव और शिक्षा शैली के स्तर पर किस तरह कोविड 19 की नई ‘हकीकत’ के साथ बदल रहे हैं.
चंबल मीडिया के सहयोग से हम लेकर आए हैं ‘लिटिल फ़िल्म शृंखला’. यह शृंखला हर दिखाई देने वाली चीज़ का दूसरा पहलू तलाशती है.