*कशिश लेखक का बदला हुआ नाम है.
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मुझे याद है जब मैं, सारा के साथ बनारस गई थी. उस वक्त मैं इतनी डरपोक हुआ करती थी. शाम ढलने से पहले रूम पर आ जा जाती. सारा और ईशा कभी रात में अपने दोस्तों के साथ बाहर पार्टी करने निकलती लेकिन मैं उनके साथ नहीं जाती थी. किसी से ज़्यादा बात नहीं करती.
वो दोनों बनारस में रहकर पढ़ाई कर रही थीं और मैं किसी तरह कन्नौज से बाहर निकलना चाहती थी, तो मैंने यहां इनके पास आकर एक कोचिंग क्लास में अपना नाम लिखवा लिया था.
उस साल ईशा के जन्मदिन पर उसका बॉयफ्रेंड भी बनारस आया था और हमारे कमरे पर ही रुका था. पहले मुझे थोड़ा अजीब लगा. पता नहीं क्यों मुझे ईशा के ब्वॉयफ्रेंड की बातों पर यकीन ही नहीं होता था. पर जन्मदिन के अगले दिन हम साथ घूमने गए और पूरा दिन घूमने के बाद मुझे उसका व्यवहार बहुत अच्छा लगा. मैंने सारा से कहा भी, “मुझे लगता है कि मुझे ही गलतफहमी हुई थी. ये तो बहुत अच्छा है.”
उस दिन हम सबने बहुत मस्ती की थी. जब से बनारस आई थी, पहली बार था कि मैं इतनी रात को बाहर घूम रही थी. भीतर से डर भी लग रहा था, पर मज़ा भी आ रहा था. मैंने देखा, कितनी सारी लड़कियां बाहर अकेले घूम रही थीं. मेरे लिए ये सब बहुत नया था. उस वक्त बार-बार मेरे मन में यही ख्याल आ रहा था कि क्यों मैं रात को बाहर निकलने से डरती रही? मैं सोच रही थी कि
बचपन से अभी तक रात की जो तस्वीर मेरे दिमाग में ठूंस-ठूंस कर भरी गई थी, वो इस असलियत से कितनी अलग है.
हम देर रात घर लौटे.
उस दिन के बाद से अब ईशा और सारा जब भी रात में बाहर घूमने निकलती, मैं भी उनके साथ बाहर जाने लगी. हम तीनों साथ में बहुत मस्ती करते. जिस घर में हम रहते थे वो दो फ्लोर का घर था. ग्राउन्ड फ्लोर पर जिनका घर था वो पति-पत्नी रहते थे. फर्स्ट फ्लोर पर हम तीनों रहते थे. सेकंड फ्लोर पर एक फैमिली रहती थी – अंकल, आंटी और उनकी 2 बेटियां. बिल्डिंग के पास ही आंटी का पार्लर था, जहां हम जाया करते थे. वहीं बाहर लाल रंग की एक बाइक खड़ी रहती थी. रोज़ घर से निकलते-लौटते मेरे दिमाग में यही खटकता रहता था कि आखिर ये बाइक किसकी है!? ये हमेशा खड़ी रहती है, कोई इसको चलाता क्यों नहीं है? एक बार मैंने अंकल को बाइक की चाभी एक लड़के को देते हुए देखा. अब ये कंफर्म हो गया कि बाइक, अंकल की है.
एक दिन मैं अंकल के पास गई और पूछा, “आपकी बाइक यहां हमेशा खड़ी रहती है, क्या मैं इसको चला सकती हूं?” मेरी बात सुनते ही अंकल हंसने लगे. कहा, “तुम्हें चलाना आता है?” मैंने बहुत ही शांत भाव से कहा, “जी बिल्कुल. आप एक बार चाभी तो देकर देखिए.” बहुत देर तक मिन्नतें करने के बाद अंकल ने चाभी दे दी. लेकिन शर्त ये कि पहले मैं उनके सामने बाइक चलाकर दिखाऊं. मैंने शर्त मंज़ूर कर ली. मैं बहुत खुश थी और मैंने उनके सामने बाइक चला कर दिखा दी.
अब जब भी बाइक चलाने का मन होता मैं, अंकल से चाभी मांगकर ले आती.
***
बाइक सीखने और चलाने का शौक मुझे नौंवी क्लास में आया. उस वक्त मैं अपने भाइयों या अपने ट्यूशन टीचर की बाइक लेकर भाग जाया करती थी.
मुझे ऐसा कोई भी काम जिसको समाज बोलता है कि लड़कियां नहीं कर सकतीं वो करने में बहुत मज़ा आता था.
एक शाम हम तीनों ने शहर की सबसे मशहुर झील पर जाने का प्लान बनाया और जैसा हर शहर में होता है, यहां भी ये झील लवर्स प्वाइंट या सुसाइड प्वाइंट के नाम से ही मशहूर थी. हमने बहुत कोशिश की ऑटो ढूंढने की लेकिन नहीं मिला. मैंने प्रस्ताव रखा कि अंकल की बाइक लेकर चलते हैं? पहले तो सारा और ईशा को लगा कि मैं मज़ाक कर रही हूं. उन्होंने मुझसे पूछा, “हम दोनों को बिठाकर तुम बाइक चला लोगी?” मैंने पूरे कॉन्फिडन्स से जवाब दिया, “हां. बाइक चलाने में क्या है, जब स्कूटी में तीन-तीन लोगों को बिठा लेती हूं तो बाइक पर भी बिठा लूंगी.”
सच बताऊं तो ये कहते हुए मैं अंदर ही अंदर डर से भरी हुई थी. अगर मैंने इन लोगों को गिरा दिया तो? फिर लगा कोशिश करने में क्या है. मज़ा आएगा! और कुछ न हुआ तो तजुर्बा तो होगा…मैं भाग कर अंकल के पास गई. उनसे कहा कि कुछ ज़रूरी सामान लेने जाना है और चाभी लेकर आ गई. अब हम तीनों बाइक पर बैठकर शहर की सैर करने निकल पड़ते हैं. जिस सड़क से हम गुज़रते वहां हर कोई हमें ही देखता. स्कूटी में तीन लड़कियों को तो सबने देखा होगा, लेकिन बाइक पर तीन लड़कियां. न बाबा न! वो भी शाम ढलने के बाद ऐसे आज़ाद होकर घूम रही हैं, ‘उफ्फ! तौबा, तौबा. इन लड़कियों को किसी का डर ही नहीं!’
खैर, लोगों को चिढ़ाते-जलाते, देर तक इधर-उधर तफरी मारते आखिर हम अपने गंतव्य यानी झील के किनारे पहुंच गए. झील पर एक ब्रिज बना है. ब्रिज पर बाइक को चढ़ाते ही ईशा और सारा ज़ोर-ज़ोर से चिल्लाने लगीं, “ऐ विलन, ऐ विलन…” अब यहां भी हर एक शक्स की निगाह हम पर ही थी. मैं लगातार बोलती रही, “बाइक पर हिलो नहीं. हम तीनों गिर जाएंगे.” लेकिन उन्हें फर्क ही नहीं पड़ रहा था. उनके चक्कर में अलग ही ‘खतरों का खिलाड़ी चल रहा था.’ वैसे, मज़ा भी बहुत आ रहा था. पता नहीं कैसे मुझे खुद पर इतना यकीन था कि मैं अपने दोस्तों को गिरने नहीं दूंगी. और ये हमारी इज़्ज़त का भी तो सवाल था. ऐसे कैसे हम गिर जाते!
वो शाम मैं कभी नहीं भूल सकती…
***
एक दिन अचानक सारा ने कहा कि उसे कुछ रोमांचक करना है. “क्या?” मैंने और ईशा ने एक साथ पूछा, “चल क्या रहा है तुम्हारे खुराफाती दिमाग में ?” इसपर सारा ने कहा, “शादियों का सीज़न चल रहा है, तुम दोनों जल्दी तैयार हो जाओ हम किसी शादी में जा रहे हैं.” “तुम पागल हो गई हो, नहीं?! पकड़े गए तो गज़ब की बेइज़्ज़ती होगी.” एक बार फिर हम दोनों ने एक साथ कहा. लेकिन सारा तो सारा है! जो उसने बोल दिया तो फिर वो किसी की नहीं सुनती.
आधे घंटे में हम तैयार-शैयार होकर, ऑटो में बैठ एक मैरेज हॉल के पास पहुंचे. वहां पहुंचकर तो ऑटो से उतरने में ही डर लग रहा था. किसी तरह डर-डर कर हम ऑटो से उतरे. हमने चारों और देखा और फिर एक दूसरे को देखा. चुप्पी तोड़ते हुए सारा ने कहा, “हम एक-एक करके अंदर जाएंगे. अंदर एक-दूसरे से कोई बात नहीं करेगा. हम एक साथ गए तो लोगों को शक हो सकता है.” हम तीनों अंदर जाते हैं और सीधे खाने के पास जाकर प्लेट उठाते हैं. उस समय तो लग रहा था जैसे सबकी नज़रें हम पर हैं. कोई भी इंसान जो हमारे पास से गुज़र रहा था उसे देखकर ऐसा लग रहा था कि वो हसमे पूछने ही वाला है, “आप किसकी साइड से हैं?”
इस डर से हलक से खाना भी अंदर नहीं जा रहा था. मैं फटाफट खाना खत्म कर इन दोनों का इंतज़ार करने लगती हूं. थोड़ी देर में सारा मेरे करीब आती है. वो एक अजनबी की तरह मुझसे पूछती है, “आप किसकी साइड से हैं? आपने खाना खा लिया?” मैं अभी भी बहुत डरी हुई थी. मैंने उससे कहा, “तुम खुद भी मरोगी और हमको भी मरवाओगी.”
वो कहती है , “बेटा यही दिन याद करोगी बाद में कि थी मेरी एक दोस्त जिसने इतने मज़े कराए. वैसे मैं तो ये कहने आई थी कि मूंग कि दाल का हलवा ट्राई कर लो, बहुत टेस्टी है, फिर निकलते हैं. जल्दी करना क्योंकि कुछ लोगों ने शायद नोटिस कर लिया है.”
उफ्फ! ये बातें लिखते हुए आज भी रौंगटें खड़े हो जाते हैं.
लेकिन सारा ने सही कहा था, “याद रखोगी कि इन खतरों में भी कितना मज़ा है और खासकर मेरे साथ!”
पर, जब सब कुछ अच्छा चल रहा हो, तो बुरा होना बहुत लाज़िमी हो जाता है. और हम तीनों के बीच कुछ ऐसा ही हुआ कि एक दिन सारा ने हमारा कमरा छोड़ दिया और पास ही अलग कमरा लेकर रहने लगी. बात इतनी बढ़ गई थी कि सामने मिलने पर भी हम एक-दूसरे से नज़रें चुराकर निकल जाते. बनारस में रहते ये सब झेलना मेरे लिए बहुत मुश्किल था. एक दिन मैं अपना सामान पैक करके अपने घर कन्नौज लौट आई.
मुझे समझ आया कि मैं सारा के बिना नहीं रह सकती. पर उसे कॉल भी नहीं कर सकती थी क्योंकि वो भी मुझसे बात नहीं कर रही थी. पर कब तक? आखिर मैंने उसे कॉल कर ही दिया. उधर से आवाज़ आई, “हैलो,”
इतने दिन बाद जैसे ही उसकी आवाज़ मेरे कानों मे पड़ी मेरा दिल सुकून से भर गया. तभी उसने कहा,
“क्या काम है? क्यों कॉल किया? आ गई मेरी याद?”
मैंने जवाब दिया, “याद तो उनको किया जाता है जिनको भुला दिया जाता है.”
इतना कहना था कि उसने गालियों की बौछार कर दी. फोन पर हमने बहुत सारी बातें की, बहुत रोए. हमें समझ आ गया था कि हम दोनों बहुत अलग पर्सनैलिटी हैं. और यही वजह है कि हम दोनों इतने अच्छे दोस्त हैं!
**
मेरे लिए दिल्ली आने की वजह भी सारा थी. शुरुआत में मेरे पास जॉब नहीं थी. दूसरा, मैं घर पर झूठ बोल कर आई थी. दिल्ली में सारा ने अपने दोस्तों को बोल रखा था कि मुझे जॉब की ज़रूरत है. उसके किसी दोस्त की मदद से मुझे इंटरव्यूह का कॉल भी आ गया था. सारा ने मुझसे कहा कि मैं वहां चली जाऊं. मैं डरी हुई थी और चाहती थी कि वो मेरे साथ चले. पर उसने साफ-साफ कह दिया “मैं बनारस की तरह हर जगह तुम्हें हाथ पकड़कर नहीं ले जा सकती. मैं अपने ऑफिस में हूं. मैं नहीं जा सकती. तुम्हें अकेले ही जाना होगा.”
मैं तैयार होकर इंटरव्यूह के लिए घर से निकलने ही वाली थी कि उस ऑफिस से फोन आया. उन्होंने इंटरव्यूह का टाइम 7 बजे कर दिया. इस बीच सारा भी दफ्तर से लौट आई. जब उसे पता चला कि सात बजे का समय है तो वो कहती है, “ये कौन सा टाइम होता है इंटरव्यू के लिए बुलाने का! रुको, मैं भी तुम्हारे साथ चलूंगी.”
मैंने कहा, “सुबह तो तुम बोल रही थी अकेले जाना सीखो. अब ये कह रही हो. तुम परेशान मत हो मैं चली जाऊंगी.” उसने कहा, “रात को कौन सा इंटरव्यू होता है मैं भी देखना चाहती हूं.”
अब हम दोनों ऑटो में बैठकर उस पते की ओर चल देते हैं. मेन रोड से अंदर गली और उसके बाद एक और गली…सारा को कुछ ठीक नहीं लगा. उसने हमारी लाइव लोकेशन एक दोस्त को शेयर कर दी. अब वहां पहुंचकर हम एक केबिन में बैठे हैं. कमरे में तंबाकु की महक फैली हुई है. एक लड़का आकर पूछता है कि हमें चाय-कॉफी कुछ चाहिए. सारा तो चाय, कॉफी नहीं पीती. उसने मुझसे कहा कि तुम पी लो. मैंने लड़के से मना कर दिया कि हमें कुछ नहीं चाहिए. लड़के के जाते ही सारा ने कहा, “तुमने क्यों मना किया?” “यार, यहां तो डर लग रहा है और उसने कुछ मिला कर दे दिया तो?”, मैंने कहा.
अब हमें इंतज़ार करते हुए आधे घंटे से ऊपर हो चुका है. हम उस लड़के से जब भी पूछते कि जिनको इंटरव्यू लेना है वो कब आएंगे? वो लड़का यही जवाब देता कि आने वाले हैं. हमने रिक्वेस्ट की कि जब तक बॉस नहीं आ रहे हमें ऑफिस ही दिखा दे. उसने ऐसा करने से इंकार कर दिया. इस बातचीत के दो घंटे बाद दो लड़के कमरे में आए, उनके हाथ में शराब की बोतल थी. उन्हें देखते ही सारा ने मुझे इशारा किया और हम वहां से फौरन निकले और तेज़ी से भागकर मेन रोड पर पहुंचे.
उसके बाद सारा ने अपने दोस्त को फोन करके बहुत डांटा. जब वह उसे डांट रही थी, पता नहींं क्यों ऐसा लग रहा था- सारा, खुद में मेरा अपना घर है, वो ही मेरी सेफ स्पेस!
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हम दोनों को डांस करना बहुत पसंद था. दिल्ली में रहते हुए हर 15 दिन में हम क्लब पहुंच जाते. जब हम डांस करते तब एक-दूसरे में इतना खो जाते कि हमको किसी कि परवाह नहीं रहती. एक-दूसरे के ऊपर से हमारी नज़रें हटती ही नहीं थी. सारा के साथ हर एक चीज़ में जैसे जान आ जाती थी.
उसके साथ न एक अलग कॉन्फिडेंस आता था. एक बार का वाकया है. हम एक क्लब में डांस कर रहे थे. एक लड़का बार-बार मेरे नज़दीक आकर डांस करने लगता. मैं बहुत असहज महसूस कर रही थी और सारा को ये पता चल चुका था. उसने उस लड़के से कुछ नहीं कहा, बस उसके पास आकर डांस करने लगी. डांस करते-करते वो उस लड़के के पैरों पर बार-बार अपनी हील से मारने लगी. जितनी बार उसके पैर पर हील मारती, उतनी बार सॉरी बोलती और फिर डांस करने लगती. वो लड़का इतना परेशान हो गया कि खुद ही वहां से दूर चला गया. मतलब किसी भी सिचुएशन से कैसे निपटना है ये उसे बखूबी आता था. मेरा हर बार उससे यही सवाल होता था, “तुम कैसे कर लेती हो ये सब? तुमको डर नहीं लगता है क्या?”
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सारा के साथ रहते हुए मुझे किसी की भी ज़रूरत महसूस नहीं होती थी. हम अचानक कभी दिल्ली से बाहर पहाड़ों पर घूमने का प्लान बना लेते. मसूरी, ऋषिकेश जैसी जगहों पर पहुंचकर रिज़ॉर्ट बुक करते. नदी में पैर रख घंटों बातें करते, आसपास घूमने निकल जाते, खुले आसमान के नीचे अलाव जलाकर डिनर करते, डांस करते-करते थक जाते तो फिर से आधी रात में नदी के पास जाकर बेठ जाते. नदी का किनारा, आसमान में तारे, दूर-दूर तक कोई नहीं. हम दोनों एक दूसरे के हाथों मे हाथ पकड़े, उसके कंधे पर मैं अपना सर देती और बहुत सारी बातें. ये पल मेरी ज़िंदगी के बेहतरीन और यादगार लम्हों में से एक थे.
मैं हमेशा ये सारे अनुभव अपने पार्टनर के साथ करना चाहती थी जो मैं अपनी बेस्ट फ्रेंड के साथ कर रही थी.
सारा मेरे लिए क्या है या मैं सारा के लिए क्या थी…ये शब्दों में बांध पाना शायद मुश्किल है या शायद ये ज़िंदगी भर की एक खोज है जिसमें जितना गहरा मैं उतरती हूं, उतना ही वो मुझे खींच लेती है. मेरी बेस्ट फ्रेंड थी या बेस्ट पार्टनर…!?
कशिश उत्तर प्रदेश की रहने वाली हैं. उन्हें प्यार, दोस्ती और रोज़मर्रा की ज़िंदगी जैसे विषयों पर लेखन करना पसंद है.