निरंतर वीडियो

जहां हम मिलकर वीडियो बनाते हैं, उसे संजोते हैं और सीखने-सिखाने की प्रक्रिया के ज़रिए हिन्दुस्तान के छिपे और अनदेखे पहलुओं को सामने लाते हैं.

टीचर टॉक्स: सीज़न 2. एपिसोड 1

टीचर टॉक्स के दूसरे सीज़न में मिलिए ऐसी शिक्षिकाओं से जो अपने परिवार में शिक्षा प्राप्त करने वाली पहली पीढ़ी से हैं. वीडियो में वे बतौर विद्यार्थी शिक्षा प्राप्त करने के अपने अनुभवों के साथ, वर्तमान में अनौपचारिक शिक्षण केंद्रों में बच्चों को पढ़ाने के अनुभव साझा कर रही हैं.

बेबी हालदार के साथ एक बातचीत

साल 2002 बहुत सारी घटनाओं के लिए इतिहास में दर्ज है. उन्हीं में से एक असाधारण घटना थी ‘आलो आंधारि’ किताब का प्रकाशन. इस किताब के शब्दों ने घरेलू कामगारों के साथ होने वाली हिंसा और गरीबी में डूबी एक ऐसी दुनिया का दरवाज़ा खोलने का काम किया जिसके बारे में शायद ही कभी कोई बात होती थी.

मेड इन बेलदा: रूमी, दीदी और उनका परिवार

युवा फ़िल्ममेकर रफीना खातून को उसके माता-पिता “आज़ाद पक्षी” कहते हैं. एक दिन ये आज़ाद पक्षी पलटकर अपने उस घोंसले की तरफ लौटती है जहां से उसने उड़ना सीखा था. वह उन सारी कहानियों को अपने कैमरे में कैद कर लेना चाहती है जिनकी नींव पर उसका घर रूपी घोंसला खड़ा है.

मेरी कीमती चीज़

क्या आपने कभी ठहरकर उस कलम की ओर देखने की कोशिश की है जो किसी न किसी तरह से हर वक्त आपके आसपास होती है? कलम ही क्यों, कोई बैग, डायरी, झोला, दुपट्टा रोज़मर्रा की भाग-दौड़ में कभी ठहरकर देखें तो एक मीठा आश्चर्य होता है कि कैसे और कब कोई एक चीज़ इतनी खास हो जाती है कि वो हर वक्त हमारे पास होती है.

मेकिंग टेक्स्ट्बुक फेमिनिस्ट: किताबों को नारीवादी बनाने की ओर

2005, में निरंतर संस्था ने केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (सीबीएसई) के आग्रह पर बच्चों की पाठ्य- पुस्तिकाओं को ‘जेंडर संवेदनशील’ बनाने का काम किया था. निरंतर संस्था द्वारा तैयार की गई किताबें 15 साल से भारतीय स्कूलों में पढ़ाई जा रही हैं. इस साल 2022 में इनमें से जाति पर कुछ पाठ्यक्रमों को हटा दिया गया है.

सिटी गर्ल्स

उत्तर-प्रदेश के बांदा ज़िले से आई दो लड़कियां उमरा और कुलसुम, झोला उठाकर दिल्ली महानगर में ठसक से अपना रास्ता बनाती हुई चलती हैं. कैमरा उनके पीछे-पीछे चलता है. 28 मिनट की इस डॉक्यूमेंट्री फिल्म में वे सारी दकियानूसी बातें जो लड़कियों को अक्सर सुनने को मिलती हैं, कांच की तरह टूटकर गिरते हुए दिखाई देती हैं.

फिल्मी शहर एपिसोड 3: सिनेमा में समलैंगिकता

इस मास्टरक्लास के दो भागों में – सिनेमा में समलैंगिकता – विषय पर बातचीत करते हुए फिल्म निर्देशक अविजित मुकुल किशोर ने सिनेमा की भाषा, सही एवं सम्मानजनक शब्दावलियों का अभाव, LGBTQI+ से जुड़े लोगों के संघर्ष एवं अपमान से पहचान की उनकी यात्रा को फिल्मी पर्दे पर उनकी प्रस्तुति के क्रम में देखने की कोशिश की है.

सेक्स [वर्क] एंड द सिटी

कोलकाता, एक ऐसा शहर जिसके आधुनिक स्वरूप में उसका इतिहास गहरे समाहित है. कोलकाता शहर के आकार को बनाने में उसके स्थान, उसके बंदरगाहों के माध्यम से लड़े गए युद्धों, सीमाओं के पार से आने वाले प्रवासियों और निश्चित रूप से, ब्रिटिश उपनिवेशवाद एवं लगातार बदलती उनकी नैतिकता और उसके प्रभाव की अहम भूमिका है.

वापसी

साल 2020 में कोविड के दौरान देशभर में लगे लॉकडाउन की वजह से ज्योति अपने गांव सवाऊ मूलराज वापस लौटती हैं. उन्होंने गांव में रहते हुए वहां के परिदृश्य, लोगों औऱ घटनाओं को अपने कैमरे में कैद करना शुरू किया.

फिल्मी शहर एपिसोड 2: जाति और सिनेमा

फिल्मी शहर के दूसरे एपिसोड ‘जाति और सिनेमा’ में हम, सिनेमा के ज़रिए हमारे आसपास की दुनिया की पड़ताल कर रहे हैं. हमारी कोशिश है बड़े पर्दे की सुनहरी दुनिया की परतों को उघाड़कर ये देखना कि हमारा सिनेमा जाति के सवालों पर क्या और किस तरह की बात करता है?

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