बोलती कहानियां Ep 2: बेटा किसका?
बोलती कहानियां के इस एपिसोड में अनीता से सुनिए कहानी ‘बेटा किसका?’ और जानें कि जब वीरमति से ये सवाल पूछा गया तो कैसे उसने सबकी बोलती बंद की.
द थर्ड आई होम » अंक 001: काम
सामाजिक, राजनीतिक, बौद्धिक विचार के रूप में काम. इसके इतिहास और विकास की नारीवादी नज़रिए से छानबीन
बोलती कहानियां के इस एपिसोड में अनीता से सुनिए कहानी ‘बेटा किसका?’ और जानें कि जब वीरमति से ये सवाल पूछा गया तो कैसे उसने सबकी बोलती बंद की.
बोलती कहानियां के इस एपिसोड में अनीता से सुनिए कहानी ‘रोटी बनाए टंटू’ और जानें क्या होता है जब पति और पत्नी एक दिन के लिए अपनी ज़िम्मेदारियों की अदला-बदली कर लेते हैं.
नारीवादी अर्थशास्त्रियों द्वारा लंबे समय से श्रम को मापने के लिए काम के घंटों, ख़ासकर, महिलाओं के काम के घंटों की गणना को मापदंड के रूप में पैमाना बनाने पर ज़ोर दिया गया है. इस महामारी के दौरान ये नज़रिया और भी महत्त्वपूर्ण हो गया है.
स्वास्थ्य सेवाओं के भीतर छूत-अछूत का मसला ही नहीं जेंडर भी यहां अपना रंग दिखाता है। ज़्यादातर नर्स महिलाएं हैं और इसके कारण कई तरह की जाति और जेंडर से जुड़ी दर्जाबंदी साफ़ दिखाई देती है।
एक टीचर ने जब स्टूडेंट्स को एकांतवास (अकेले रहने) या फिर सीमाओं के भीतर रहने के पहलुओं पर सोचने को कहा तो उसने सोचा नहीं था कि क्लास में आधे से ज़्यादा विद्यार्थी अपनी मांओं को अपनी छवियों का केंद्र बनाएंगे.
क्या एक लड़की ये चुन सकती है कि वह किस से और कब प्यार करेगी? क्या एक लड़का किससे शादी करेगा इसका चुनाव कर सकता है? अगर एक लड़की या लड़का अपने साथी को ‘हां’ बोलते हैं तो क्या उनके प्यार के अस्तित्व में रहने, फलने-फूलने के लिए समाज में जगह है?
सिनेमा में, कामकाजी महिलाएं अक्सर शर्म और गर्व की दोधारी तलवार को संभालती नज़र आती हैं. उन्हें क्या काम करना चाहिए या क्या नहीं करना चाहिए? हमने दो फिल्में ली हैं जो औरत और काम पर हैं…
गौरव ओगाले ने लॉकडाउन के दौरान अन्य कलाकारों के साथ मिलकर 12 शॉर्ट फिल्मों की शृंखला बनाई है. ‘टुगेदर वी कैन’ इसी शृंखला का हिस्सा है. इसके लिए राजकुमार राव ने अपनी आवाज़ दी है…
एनी राजा नेशनल फेडरेशन ऑफ इंडियन विमेन (NFIW) की महासचिव हैं. अपने वजूद में आने के 65 से अधिक सालों में यह फेडरेशन उन मुद्दों के साथ लामबंद होता रहा है जो कामगार के तौर पर महिलाओं के अधिकारों को प्रभावित करते हैं.
2020 दुनिया भर में सबके लिए एक ऐसा साल है जो भूलना मुमकिन नहीं होगा. मार्च 2020 में कोविड 19 के कहर से जूझने के लिए भारत में दुनिया का सबसे बड़ा लॉकडाउन लगाया गया. लॉकडाउन यानी शहरबंदी – भीतर और बाहर का फर्क ख़त्म सा हो गया.