अंक 003: शहर

शहर अकेला है, लाख हैं गलियां

शहर की सड़कों पर परचम फहराती लड़कियां

कोंकणी में हम एक कहावत का इस्तेमाल करते हैं, ‘वह शहर में इतना ज़्यादा घूमी कि उसने गर्दा उड़ा दिया.’ कॉलेज से ग़ायब होने, किसी लड़के की बाइक पर उसके पीछे बैठने और शहर में घूमने पर हमारी मांएं हमें शर्मिंदा करने के लिए यह कहा करती थीं. मैंने इस कहावत के बारे में अक्सर सोचा है.

कितकित

कितकित का खेल. सब आंखें तुम पर टिकी हैं. और तुम खड़े हो एक खाने के बीच, एक टांग पर. झुककर उठाते हुए गोटी. कंगारू की छलांग. टक, टक, टक. अपने आप को गिरने मत देना, झुको, उठाओ गोटी, और फिर से लौट जाओ, जहां से शुरुआत की थी.

गुलाबी टॉकीज़

एक सिनेमाघर, मल्टीप्लेक्स, सिंगल स्क्रीन पर्दे की किसी शहर के बनने में क्या भूमिका होती है? क्या ये सिर्फ़ बड़े पर्दे पर किसी कहानी को हमारे लिए जीवित भर करते हैं या ये शहर के भीतर रह रहे किरदारों की ज़िन्दगियां भी बदलते हैं.

आईने-सी विनम्र किताब

आदिवासी विल नॉट डांस के लेखक कथाकार हांसदा सोवेंद्र शेखर को एक किताब उनका हाथ पकड़कर अपने घर की तरफ़ वापस ले जाती है, जहां वे पले-बढ़े थे, लेकिन जिसकी बहुत सारी सच्चाइयां किताब के ज़रिए उनके सामने खुल रही थीं.

बोलती कहानियां: आटे सने हाथ

अनीता ज़मीन से जुड़े मुद्दों की कहानियां फ़ील्ड के बारास्ते हमारे लिए लेकर आती हैं. इस ऑडियो प्रस्तुति के तीसरे एपिसोड में आइए सुनते हैं – आटे सने हाथ. शिक्षा का अधिकार सबको है मगर एक लड़की को अपनी पढ़ाई पूरी करने के लिए क्या-क्या मुश्किलें झेलनी पड़ सकती हैं? आइए मिलकर इस कहानी के ज़रिए जानते हैं.

कोरोना वायरस और वैक्सीन: जानें और समझें.

लॉकडाउन में घर के अंदर पूरी तरह बंद होने के बाद आज, लगभग 18 महीने के बाद हम धीरे-धीरे घर से बाहर निकलकर अपने दफ़्तर जा रहे हैं, दोस्तों-रिश्तेदारों से मिल रहे हैं. कैसे? इसकी एक बड़ी वजह है कोरोना की वैक्सीन.

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