दर्द के नक्शे
हमारे डिजिटल एजुकेटर्स ने ऑनलाइन एक कार्यशाला के ज़रिए अपने शरीर के और अपने आसपास के दर्द को समझने का प्रयास किया. कार्यशाला में क्या बातें हुईं और कैसे साथियों ने अपने दर्द का नक्शा बनाया इस वीडियो के ज़रिए देखें.
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हमारे डिजिटल एजुकेटर्स ने ऑनलाइन एक कार्यशाला के ज़रिए अपने शरीर के और अपने आसपास के दर्द को समझने का प्रयास किया. कार्यशाला में क्या बातें हुईं और कैसे साथियों ने अपने दर्द का नक्शा बनाया इस वीडियो के ज़रिए देखें.
कर्नाटक के कार्यकर्ता, क्लिफ्टन डी’रोज़ारियो, ने यह साफ़ किया कि खाद्य सुरक्षा के बिना कोई सार्वजनिक स्वास्थ्य व्यवस्था टिक ही नहीं सकती. वे मंथन लॉ, बंगलुरू से जुड़े एक अधिवक्ता हैं और अखिल भारतीय केंद्रीय ट्रेड यूनियन परिषद (AICCTU) के राष्ट्रीय सचिव और सीपीआई (ML) लिबरेशन, कर्नाटक के राज्य सचिव हैं.
स्वास्थ्य सेवाओं के भीतर छूत-अछूत का मसला ही नहीं जेंडर भी यहां अपना रंग दिखाता है। ज़्यादातर नर्स महिलाएं हैं और इसके कारण कई तरह की जाति और जेंडर से जुड़ी दर्जाबंदी साफ़ दिखाई देती है।
क्या एक लड़की ये चुन सकती है कि वह किस से और कब प्यार करेगी? क्या एक लड़का किससे शादी करेगा इसका चुनाव कर सकता है? अगर एक लड़की या लड़का अपने साथी को ‘हां’ बोलते हैं तो क्या उनके प्यार के अस्तित्व में रहने, फलने-फूलने के लिए समाज में जगह है?
सिनेमा में, कामकाजी महिलाएं अक्सर शर्म और गर्व की दोधारी तलवार को संभालती नज़र आती हैं. उन्हें क्या काम करना चाहिए या क्या नहीं करना चाहिए? हमने दो फिल्में ली हैं जो औरत और काम पर हैं…
एनी राजा नेशनल फेडरेशन ऑफ इंडियन विमेन (NFIW) की महासचिव हैं. अपने वजूद में आने के 65 से अधिक सालों में यह फेडरेशन उन मुद्दों के साथ लामबंद होता रहा है जो कामगार के तौर पर महिलाओं के अधिकारों को प्रभावित करते हैं.
2020 दुनिया भर में सबके लिए एक ऐसा साल है जो भूलना मुमकिन नहीं होगा. मार्च 2020 में कोविड 19 के कहर से जूझने के लिए भारत में दुनिया का सबसे बड़ा लॉकडाउन लगाया गया. लॉकडाउन यानी शहरबंदी – भीतर और बाहर का फर्क ख़त्म सा हो गया.
द थर्ड आई प्रस्तुत करती है ब्लैक बॉक्स, एक नई वीडियो शृंखला जो कलाकारों और थिएटर अदाकारों के ज़रिए महिलाओं के लेखन और हाशिए पर खड़ी आवाज़ों को दर्ज करती है.
शिवम को इंस्टाग्राम पर 16 mm फ़िल्टर मिला जिसे इस्तेमाल करके उन्होने अपनी मां के काम करते छोटे-छोटे वीडियो बनाने शुरू किए, खासकर उनके हाथों के. “मेरी मां हमेशा से ही ऑफिस जा रही हैं. लॉकडाउन पहला ऐसा मौका था जब वे लगातार हमारे साथ थीं.”
देश के 25 लोग हमें बता रहे हैं कि वे कैसा महसूस करते हैं, क्या सोचते हैं, उन्हें क्या ध्यान आता है जब वे इन दो शब्दों को एक साथ सुनते हैं: नारीवादी शिक्षा.