फ्रंटलाइन वर्कर्स: ग्रामीण औरतें और उनकी दुनियां
‘चंबल मीडिया’ के सहयोग से, हम ले कर आए हैं ‘लिटिल फ़िल्म शृंखला’ जो हर दिखाई देने वाली चीज़ का दूसरा पहलू तलाशती है.
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‘चंबल मीडिया’ के सहयोग से, हम ले कर आए हैं ‘लिटिल फ़िल्म शृंखला’ जो हर दिखाई देने वाली चीज़ का दूसरा पहलू तलाशती है.
जहां हम देश की अलग अलग जगहों के शिक्षकों से मिलते हैं, जो बताते हैं कि वे भाव और शिक्षा शैली के स्तर पर किस तरह कोविड 19 की नई ‘हकीकत’ के साथ बदल रहे हैं.
चंबल मीडिया के सहयोग से हम लेकर आए हैं ‘लिटिल फ़िल्म शृंखला’. यह शृंखला हर दिखाई देने वाली चीज़ का दूसरा पहलू तलाशती है.
पहली महिला पत्रकार पर फोटो आलेख, जिन्होंने फोटोग्राफी को काम के रूप में स्वीकार किया, अपनी ज़िंदगी का हिस्सा बनाया.
हमने तालाबंदी के दौरान घरेलू हिंसा बहुत अधिक बढ़ जाने के बारे में सुना है. ‘स्टे होम, कितना सुरक्षित’ के पहले एपिसोड में हम मिल रहे हैं…
जिसमें हम भारत के अलग-अलग राज्यों के शिक्षकों से मिलेंगे और जानेंगे कि कैसे वे इस ‘नए सामान्य’ के अनुरूप अपने आप को और अपने पढ़ने-पढ़ाने के तरीके को ढाल रहे हैं.
डिजिटल इंडिया के संवाद में हम ‘किसी को भी पीछे न छोड़ने’ की शपथ लेते तो हैं, मगर इस डिजिटल युग में सत्ता तक पहुंच किसकी है?
नारीवादी कल्पना, एक्टिविज़्म के काम और कैसे पोस्टरों का संग्रह आंदोलनों का इतिहास बयान करता है, इस सब पर उर्वशी बुटालिया से बातचीत.
द थर्ड आई कवियों और कलाकारों के साथ एक नई शृंखला पेश करने जा रही है जिसमें वे एक−दूसरे के संसार की व्याख्या करेंगे.
पीएलडी की मदद से हमारी मुलाकात बिहार, झारखंड, महाराष्ट्र और उत्तर प्रदेश राज्यों से 18 से 20 साल की 4 लड़कियों से हुई.