एपिसोड 1: छोटा शहर
चर्चित फिल्मकार अविजित मुकुल किशोर की फिल्में बदलते शहर, कस्बे और उनमें रहने वाले लोगों और जगहों की बात करती हैं. अपने कैमरे के ज़रिए वे यहां होने वाले बदलाव को बहुत ही खूबसूरती से कैद करते हैं. ‘फिल्मी शहर’ ऑनलाइन मास्टरक्लास में हम अविजित मुकुल किशोर के साथ मिलकर सिनेमा की भाषा एवं उसके नज़रिए की पड़ताल करेंगे.
द थर्ड आई की इस पहल के ज़रिए हमारी कोशिश है कि हिन्दी भाषा में फिल्मों एवं उनके द्वारा गढ़ी जा रही छवियों पर बात कर सकें. साथ ही यह पता लगा सकें कि हमारा सिनेमा तेज़ी से बदल रहे हमारे गांव और शहर को कैसे देख रहा है.
इस मास्टरक्लास के पहले एपिसोड का विषय है- छोटा शहर.
‘फिल्मी शहर’ में सिनेमा के भीतर मौजूद वर्ग, जाति, जेंडर, यौनिकता और विभिन्न तरह की असमानताओं की परतें एक के बाद एक खुलती जाती हैं.
मास्टर क्लास के पहले एपिसोड में अविजित मुकुल किशोर हमारे सामने बॉलीवुड फ़िल्मों के भीतर दिखाई देने वाले छोटे शहर, महानगर और गांव के बीच में कहीं हिंसा, भ्रष्टाचार, यौनिकता के उग्र प्रदर्शन पर सवाल करते हैं. जिस तरह हमारी फिल्में बंदूक-गोली और मर्दानगी को पर्दे पर दिखाती हैं असल में हमारा शहर वैसा ही है क्या?
गांव फिल्मों में कई रूपों मे दिखाई देता है. क्या असल में हमारे गांव ऐसे ही हैं. अगर, नहीं, तो ये किसकी कल्पनाओं के गांव को हम सिनेमा में देखते हैं. क्या छोटे शहर पर आधारित ये फिल्में और इनके नायक सच में हमारे शहर का प्रतिबिम्ब खड़ा कर पा रहे हैं? इसमें क्या वास्तविक है और क्या निर्मित लगता है? अपनी मास्टर क्लास में अविजित मुकुल किशोर दर्शकों का ध्यान इस ओर आकर्षित करते हैं कि इन फिल्मों को कौन बना रहा है और वे किसे लाभ पहुंचा रही हैं?
अविजित दर्शकों से सवाल करते हैं कि – छोटे शहरों और उनमें रहने वाले लोगों पर कौन सा विचार अंततः हमारे दिमाग और दिल में मान्य है?
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