अंक 003: शहर

शहर अकेला है, लाख हैं गलियां

कमरा और उसके भीतर की कहानियां

इस नक्शा ए मन में एक ट्रैवल लेखक के साथ एक कलाकार, लेखक के मन के नक्शे को सामने लाने का प्रयास कर रही हैं. “किसी का कमरा बहुत ही व्यक्तिगत जगह होती है. हम चाहते थे कि कुछ ऐसी चीज़ें हों जो किसी को भी दुविधा में डाल दें, किसी को पता न चल पाए कि इस कमरे में रहने वाले का जेंडर, उसकी उम्र, सेक्सुएलिटी क्या है, ऐसे कमरों में किस तरह की बातें होती हैं!”

बदलती निगाहों का शहर

प्रयागराज एक्सप्रेस ने जैसे ही अपनी रफ़्तार धीमी की, मैंने ट्रेन की खिड़की से बाहर का जायज़ा लिया. रेल की पटरियों के दोनों तरफ़ जुगनूओं जैसी टिमटिमाती रौशनी की कतारों को देखकर सर्दी में सुस्त पड़े दिल ने मानो फ़िर से धड़कना शुरू कर दिया.

फिल्मी शहर – जाति और सिनेमा

फ़िल्म निर्देशक अविजित मुकुल किशोर के साथ ‘सिनेमा में जाति’ मास्टरक्लास के दो भागों में, हम उन स्पष्ट और सूक्ष्म तरीकों की खोज करते हैं, जिन रास्तों से मुख्यधारा का सिनेमा समाज का निर्माण करता है.

फिल्मी शहर एपिसोड 2: जाति और सिनेमा

फिल्मी शहर के दूसरे एपिसोड ‘जाति और सिनेमा’ में हम, सिनेमा के ज़रिए हमारे आसपास की दुनिया की पड़ताल कर रहे हैं. हमारी कोशिश है बड़े पर्दे की सुनहरी दुनिया की परतों को उघाड़कर ये देखना कि हमारा सिनेमा जाति के सवालों पर क्या और किस तरह की बात करता है?

दूसरी लहर में कैसा था गांव का माहौल?

हमारा देश भी अजब-गजब का देश है. कुछ महीने पहले अख़बारों और सोशल मीडिया पर एक 84 साल के बुज़ुर्ग की तस्वीर बहुत दिखाई दे रही थी. कारण उन्होंने 10 महीने में 11 बार कोरोना का टीका लगवाया था और 12वीं बार टीका लगवाने के प्रयास में वो स्थानीय प्रशासन द्वारा पकड़ लिए गए.

“मैं उनके घर में घुसकर उनका काम कर रही हूं, ये उनको मंज़ूर है. पर मैं उनकी लिफ्ट में जाऊं ये उन्हें मंज़ूर नहीं है.”

“आप तो एक महिला ज़ोमैटोकर्मी की तलाश में थीं न, और मैं वह नहीं हूं, तो क्या मैं अभी भी आपकी कहानी का हिस्सा हूं?” कुछ ही मिनट पहले ट्रांसमैन की अपनी असल पहचान को मेरे सामने ज़ाहिर करने बाद बनी ने मुझसे ये सवाल पूछा.

कहानी घर घर की

पटना में रहनेवाली स्वाती रोज़मर्रा की ठेठ कहानियों को अपने बिहारी तड़के के साथ हमारे सामने ला रही हैं. पटनावाली की तीसरी क़िस्त में वे हमें सुना रही हैं कहानी घर घर की.

दिल्ली की सड़कों पर घूमते हुए

शहर जहां अपने लोगों को पहचान देता है वहीं इसकी भीड़ में बहुत आसानी से गुम हुआ जा सकता है. पर, क्या ये सभी के लिए संभव है? क्या होता है जब शहर किसी को अलग-थलग कर दे? क्या शहर का नक्शा हर तरह के व्यवहार और नज़रियों को ज़ेहन में रखकर तैयार किया जाता है?

लाइफ इन फाइव: संगीता जोगी

संगीता जोगी कलाकार हैं. वे मज़दूरी भी करती हैं. अपने दो बच्चों और परिवार के साथ संगीता राजस्थान के माउंटआबू ज़िले के काचौरी गांव में रहती हैं. हाल ही में तारा बुक्स से प्रकाशित उनकी चित्रात्मक किताब ‘द विमेन आई कुड बी’ पढ़ी-लिखी आज़ाद ख़्याल महिलाओं की कहानी चित्रों के ज़रिए उकेरती है.

वे कौन सी जगहें हैं जहां मैं सबसे ज़्यादा क्वियर होता हूं?

अचल, द थर्ड आई शहर संस्करण के ट्रैवल फेलो प्रोग्राम का हिस्सा हैं. उनके द्वारा बनाया गया तीन हिस्सों में बंटा यह कॉमिक्स सीरीज़ एक क्वियर की नज़र से शहर को देखने का प्रयास है.

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