हम

जहां हम खोजते हैं सत्ता का हमसे, हमारी सोच, हमारे अस्तित्व, हमारी देह और आत्मीयता से क्या रिश्ता है. हम जो अपने अंदर असीम अभिलाषाएं, आकांक्षाएं समेटे हुए हैं. हमारे भीतर कुछ चाहतें भी हैं, कुछ छोटेमोटे विरोध भी हैं. हम जिनमें मुहब्बतों की ख्वाहिशें भी हैं और हिंसा की संभावनाएं भी. हम जिसके ज़रिए राष्ट्र अपनी अलग पहचान बनाने की कोशिश करता है. हमारा यह तन और मन हमारी बनती बिगड़ती पहचानों का महल है और यादों का मकबरा भी. आए दिन इसमें कला और खूबसूरती की रासलीला भी खेली जाती है.

लव, सेक्स और क्‍लासरूम

पढ़ाई के दौरान हमें पांच बार फोटोसिंथेसिस के बारे में पढ़ना पड़ा. छठी क्लास से ग्यारहवीं तक हर साल लगातार मैं उसकी परिभाषा भूल जाता था इसलिए मुझे फिर से रटना पड़ता था, बावजूद इसके कि फोटोसिंथेसिस का मतलब मैं अच्छे से समझता था. इसी तरह हर साल मुझे बार-बार सीखना पड़ता था कि मेरी क्‍लास के लड़के दूर से ही मेरी हकीकत सूंघ लेते थे.

चाह और फ़र्ज़ के बीच फैला नूर

वह 2006 का एक यादगार दिन था. रियाध में मेरे अब्बा के चचेरे भाई जुमे की नमाज़ के बाद घर आए हुए थे. अम्मी  ने उस दिन कोरमा बनाया था. दस्तरख्वान पर बैठकर हम सब ने कोरमा खाने के बाद कहवा पिया.

छेड़खानी

हमारे पहले दो सत्र खेलकूद के साथ एक दूसरे को जानने की कोशिश थे. पहले सत्र में, बहुत सारे खेल खेलने के बाद जब हम बातचीत के लिए बैठे, तो टोली की एक 18 या उससे कम उम्र की लड़की ने झट से कहा कि इस सत्र ने उसे उसके बचपन की याद दिला दी.

टिंडर

“अनौपचारिक क्षेत्र में यौनकर्म करने वाली महिलाओं के अनुभव गिग इकॉनमी वर्कर्स की तरह हैं”

मंजिमा भट्टाचार्य एक नारीवादी शोधकर्त्ता, लेखिका और सामाजिक कार्यकर्ता हैं. ऑनलाइन डेटिंग एप्प ‘टिंडर’ जैसे अन्य एप्स के आगमन से कुछ ही पहले, डिजिटल आत्मीयता और निजी रिश्तों (इंटिमेसी) को इंटरनेट कैसे बदल रहा था. इनकी किताब इसपर एक दिलचस्प अंतर्दृष्टि प्रदान करती है.

टिंडर

“मेरी किताब इंटरनेट का टिंडर से पहले का इतिहास है”

अपनी 2021 में प्रकाशित पुस्तक, ‘इंटिमेट सिटी’ में भट्टाचार्य ने वैश्वीकरण और तकनीक ने कैसे यौन वाणिज्य (सेक्सुअल कॉमर्स) को बदला है, इसकी तहकीकात की है. ऑनलाइन डेटिंग एप्प ‘टिंडर’ जैसे अन्य एप्स के आगमन से कुछ ही पहले, डिजिटल आत्मीयता और निजी रिश्तों (इंटिमेसी) को इंटरनेट कैसे बदल रहा था.

दाम्पत्य और असंतोषः एक कहानी तस्वीरों की ज़ुबानी

1870 और 1920 के बीच की अवधि को पूरे भारत में दाम्पत्य/नव दाम्पत्य परियोजना (विवाहित जोड़े की एक नई कल्पना) को आगे बढ़ाने का उत्तम समय माना जा सकता है और यह महाराष्ट्र में भी बहुत अच्छी तरह से दिखाई देता है.

रात वाली वह बस

आगरा से चलकर निज़ामुद्दीन स्टेशन आने वाली ताज एक्सप्रेस उस दिन फिर लेट हो गई थी. अब प्रगति मैदान से कनॉट प्लेस और वहां से विश्वविद्यालय की मेट्रो फिर नहीं मिलेगी. रात के 11.30 बज रहे हैं. इतनी रात में तो कोई ऑटोवाला भी विश्वविद्यालय की तरफ़ जाने को तैयार नहीं होता.

बदलती निगाहों का शहर

प्रयागराज एक्सप्रेस ने जैसे ही अपनी रफ़्तार धीमी की, मैंने ट्रेन की खिड़की से बाहर का जायज़ा लिया. रेल की पटरियों के दोनों तरफ़ जुगनूओं जैसी टिमटिमाती रौशनी की कतारों को देखकर सर्दी में सुस्त पड़े दिल ने मानो फ़िर से धड़कना शुरू कर दिया.

कहानी घर घर की

पटना में रहनेवाली स्वाती रोज़मर्रा की ठेठ कहानियों को अपने बिहारी तड़के के साथ हमारे सामने ला रही हैं. पटनावाली की तीसरी क़िस्त में वे हमें सुना रही हैं कहानी घर घर की.

लाइफ इन फाइव: संगीता जोगी

संगीता जोगी कलाकार हैं. वे मज़दूरी भी करती हैं. अपने दो बच्चों और परिवार के साथ संगीता राजस्थान के माउंटआबू ज़िले के काचौरी गांव में रहती हैं. हाल ही में तारा बुक्स से प्रकाशित उनकी चित्रात्मक किताब ‘द विमेन आई कुड बी’ पढ़ी-लिखी आज़ाद ख़्याल महिलाओं की कहानी चित्रों के ज़रिए उकेरती है.

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