“डिजिटल, भला ये है क्या?”
डिजिटल इंडिया के संवाद में हम ‘किसी को भी पीछे न छोड़ने’ की शपथ लेते तो हैं, मगर इस डिजिटल युग में सत्ता तक पहुंच किसकी है?
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सामाजिक, राजनीतिक, बौद्धिक विचार के रूप में काम. इसके इतिहास और विकास की नारीवादी नज़रिए से छानबीन
डिजिटल इंडिया के संवाद में हम ‘किसी को भी पीछे न छोड़ने’ की शपथ लेते तो हैं, मगर इस डिजिटल युग में सत्ता तक पहुंच किसकी है?
घरेलू कामगार औरतों के अधिकारों के लिए संघर्ष करती, उत्तरी दिल्ली स्थित ‘राष्ट्रीय घरेलू कामगार यूनियन’ की संस्थापक, सुनीता रानी से बातचीत.
मगर कैसे किसी को कहानी के बारे में सोचना, उसको महसूस करना, समझना, सुनाना और अंत में लिखना सिखाया जाता है?
नारीवादी कल्पना, एक्टिविज़्म के काम और कैसे पोस्टरों का संग्रह आंदोलनों का इतिहास बयान करता है, इस सब पर उर्वशी बुटालिया से बातचीत.
क्या एक महिला की कोख अपने घर परिवार को आगे बढ़ाने के अलावा कोई और भूमिका निभा सकती है? क्या उसकी कोख उसकी आजीविका का माध्यम भी बन सकती है?
ज़्यादातर लोग अपने आपको स्त्री-पुरुष के दो खानों में बंटे जेंडर की पहचान से जोड़ते हैं. वे या तो स्त्री की पहचान रखते हैं या पुरुष की.
द थर्ड आई कवियों और कलाकारों के साथ एक नई शृंखला पेश करने जा रही है जिसमें वे एक−दूसरे के संसार की व्याख्या करेंगे.
द थर्ड आई टीम को लॉकडाउन के पहले से ही घर पर होने वाले काम के बंटवारे को लेकर कई सवालों के जवाब पाने की धुन सवार है.
हमने तालाबंदी के दौरान घरेलू हिंसा बहुत अधिक बढ़ जाने के बारे में सुना है. ‘स्टे होम, कितना सुरक्षित’ के पहले एपिसोड में हम मिल रहे हैं, CEHAT संस्था (मुंबई) की संगीता रेगे और नज़रिया संस्था (दिल्ली) की ऋतुपर्णा बॉरा से. वे हमें बता रही हैं कि कैसे उन्हें रातों-रात एक नया तंत्र विकसित करना पड़ा ताकि वे घर में प्रताड़ित करने वालों के साथ फंसी औरतों और क्वीयर लोगों की सहायता कर सकें.